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AMU के अल्पसंख्यक दर्जे का क्या होगा, 3 जजों की बेंच क्या करेगी? 5 पॉइंट्स में समझें SC का फैसला

सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा अज़ीज़ बाशा केस में 1967 के फैसले को खारिज कर दिया और कहा कि कोई संस्था अपना अल्पसंख्यक दर्जा सिर्फ इसलिए नहीं खो सकती क्योंकि उसका गठन एक कानून के तहत हुआ है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कोर्ट को इस बात की जांच करनी चाहिए कि विश्वविद्यालय की स्थापना किसने की और इसके पीछे किसका 'ब्रेन' था.

AMU के अल्पसंख्यक दर्जे का क्या होगा? AMU के अल्पसंख्यक दर्जे का क्या होगा?
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 08 नवंबर 2024,
  • अपडेटेड 2:10 PM IST

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के अल्पसख्यंक दर्जे पर अपना फैसला सुनाते हुए AMU को अल्पसंख्यक दर्जे की हकदार माना है. कोर्ट ने इस मामले में अपना ही 1967 का फैसला बदल दिया है जिसमें कहा गया था कि AMU अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थान का दर्जे का दावा नहीं कर सकती है. अन्य समुदायों को भी इस संस्थान में बराबरी का अधिकार है. 

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यह फैसला सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच ने दिया है. इस बेंच में 7 जज शामिल थे जिसमें से 4 ने पक्ष में और 3 ने विपक्ष में फैसला सुनाया. इस फैसले को देते हुए मामले को 3 जजों की रेगुलर बेंच को भेज दिया गया है. इस बेंच को यह जांच करनी है कि एएमयू की स्थापना अल्पसंख्यकों ने की थी क्या?

क्या फैसला है सुप्रीम कोर्ट का?

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि तीन जजों की एक नई बेंच आज के जजमेंट के आधार पर इस बात पर विचार करेगी कि क्या AMU को अल्पसंख्यक दर्जा दिया जाना चाहिए या नहीं. अदालत ने आज अल्पसंख्यक दर्जे के लिए मापदंड तय कर दिए हैं. याचिकाकर्ता के वकील शादान फरासत ने कहा कि आज वो मापदंड तय कर दिए गए हैं जिनके आधार पर यह तय किया जाएगा कि AMU अल्पसंख्यक संस्थान है या नहीं. जो मापदंड तय किए गए हैं उन्हें करीब-करीब AMU पूरा करता है लेकिन इसका फैसला एक छोटी बेंच करेगी, जब भी मामला सूचीबद्ध होगा.

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AMU पर क्या कहा सुप्रीम कोर्ट ने?

फैसला सुनाते हुए सीजेआई चंद्रचूड़ ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा अज़ीज़ बाशा केस में 1967 के फैसले को खारिज कर दिया और कहा कि कोई संस्था अपना अल्पसंख्यक दर्जा सिर्फ इसलिए नहीं खो सकती क्योंकि उसका गठन एक कानून के तहत हुआ है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कोर्ट को इस बात की जांच करनी चाहिए कि विश्वविद्यालय की स्थापना किसने की और इसके पीछे किसका 'ब्रेन' था. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर यह निर्धारित हो जाता है कि विश्वविद्यालय की स्थापना अल्पसंख्यक समुदाय ने की थी तो संस्थान अनुच्छेद 30 के तहत अल्पसंख्यक दर्जे का दावा कर सकता है.

1967 के फैसले के खारिज होने का क्या मतलब?

कोर्ट ने 1967 में अज़ीज़ बाशा केस में अपने ही द्वारा दिए गए फैसले को खारिज कर दिया. वकील शादान फरासत ने इसका मतलब समझाते हुए कहा, 'सुप्रीम कोर्ट ने 1967 का अजीज बाशा जजमेंट खारिज कर दिया है जिसमें कहा गया था कि AMU को अल्पसंख्यक का दर्जा नहीं दिया जा सकता. अब चूंकि वो फैसला ही खारिज हो गया है तो उसे बदलने के लिए जो 1981 का संशोधन आया था वो भी अमान्य हो गया है.' 

दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने 1967 में कहा था कि एएमयू एक सेंट्रल यूनिवर्सिटी है. लिहाजा इसे अल्पसंख्यक संस्थान नहीं माना जा सकता. सर्वोच्च अदालत के इस फैसले ने एएमयू की अल्पसंख्यक चरित्र की धारणा पर सवाल उठाया. इसके बाद देशभर में मुस्लिम समुदाय ने विरोध प्रदर्शन किए जिसके चलते साल 1981 में एएमयू को अल्पसंख्यक का दर्जा देने वाला संशोधन हुआ.

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एएमयू और बाकी यूनिवर्सिटीज का आगे क्या होगा?

सर्वोच्च अदालत ने मामले को 3 जजों की रेगुलर बेंच को भेज दिया गया है. इस बेंच को यह निर्धारित करना है कि AMU अल्पसंख्यक दर्जे के लिए तय मापदंड पूरा करती है या नहीं. अगर AMU को अल्पसंख्यक का दर्जा मिलता है तो यह इसी तरह की अन्य यूनिवर्सिटीज के लिए एक बेंचमार्क जजमेंट साबित होगा.

3 जजों की नई बेंच क्या करेगी

सुप्रीम कोर्ट ने AMU के अल्पसंख्यक दर्जे को नए सिरे से निर्धारित करने का काम तीन जजों की बेंच पर छोड़ दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सिर्फ संस्थान की स्थापना ही नहीं बल्कि प्रशासन कौन कर रहा है, यह भी निर्णायक कारक है. इसी आधार पर नियमित बेंच करेगी सुनवाई.

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