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कोलकाताः प्रवासी मजदूरों के संघर्षपूर्ण यात्रा को सलाम करता एक दुर्गा पंडाल

अब देश धीरे-धीरे खुद को अनलॉक करता जा रहा है, लेकिन इस बीच कोलकाता में एक दुर्गा पूजा पंडाल प्रवासी लोगों के इस संघर्षपूर्ण यात्रा को प्रतिमा के जरिए चित्रित कर रहा है.

प्रवासी मजदूरों के संघर्ष को दिखाता पंडाल (फोटो- प्रबीर विश्वास/इंडिया टुडे) प्रवासी मजदूरों के संघर्ष को दिखाता पंडाल (फोटो- प्रबीर विश्वास/इंडिया टुडे)
इंद्रजीत कुंडू
  • कोलकाता,
  • 15 अक्टूबर 2020,
  • अपडेटेड 11:04 PM IST

करीब 7 महीने पहले कोरोना संकट की वजह से देशभर में लगे लॉकडाउन ने लाखों की संख्या में प्रवासी लोग बच्चों और परिवार के अपने घरों की ओर सैकड़ों किलोमीटर पैदल चलने को मजबूर हो गए थे. हाइवे से गुजरने वाले हजारों पुरुष, महिलाएं और बच्चे सैकड़ों किलोमीटर की दूरी नापे जा रहे थे. अब कोरोना संकट के बीच कोलकाता में दुर्गा की प्रतिमाओं के अलावा प्रवासी मजदूरों के संघर्षगाथा को बयां करते पंडाल सजाए जा रहे हैं जिनसे इन गरीबों और संघर्षरत मजदूरों को मदद मिल सके.  

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हालांकि अब देश धीरे-धीरे खुद को अनलॉक करता जा रहा है, लेकिन इस बीच कोलकाता में एक दुर्गा पूजा पंडाल प्रवासी लोगों के इस संघर्षपूर्ण यात्रा को प्रतिमा के जरिए चित्रित करना चाहता है. 

साल्ट लेक में एके ब्लॉक दुर्गा पूजा समिति ने इस साल अपने विषय के रूप में "मानवता" को चुना है. जबकि कोरोना महामारी की वजह से आयोजको ने इस साल समारोहों को कम कर दिया है, उनका कहना है कि सामाजिक संदेश भेजना उनका कर्तव्य है.

प्रवासी मजदूरों के संघर्ष को दिखाता पंडाल (फोटो- प्रबीर विश्वास/इंडिया टुडे)

पंडाल बनाने वाले कलाकार सम्राट भट्टाचार्य कहते हैं कि वे सभी दूसरे शहरों में अपनी नौकरी छोड़कर वापस आने को मजबूर हुए. वे अब आजीविका के लिए संघर्ष कर रहे हैं. अब उनकी मदद करना हमारा कर्तव्य है, चाहे वह रिक्शा चालक हो, गोलगप्पे बेचने वाला हो या दिहाड़ी मजदूरी करने वाला हो. हम चाहते हैं कि लोग महसूस करें कि उनका काम हमारे जीवन को सुचारू रूप से चलाने के लिए कितना महत्वपूर्ण है.

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फोटो- प्रबीर विश्वास/इंडिया टुडे

कलाकार इस दिनों प्रवासी श्रमिकों के संघर्ष को चित्रित करने वाले प्रतिमाओं को अंतिम रूप देने में व्यस्त हैं. मजदूरों के हाथों को उजागर करते तैयार प्रतिमाओं को रखने के लिए विशेष व्यवस्था की गई है. 

आयोजक राजा बानिक कहते हैं कि पंडाल को खड़ा करने में मदद करने वालों में कई कारीगर प्रवासी श्रमिक भी हैं. वे लॉकडाउन के दौरान घर लौट आए और बेहद तनाव में हैं. इसलिए हमने सोचा कि हम पूजा को रोक नहीं सकते, भले ही हमें इसे छोटे स्तर पर आयोजित करना पड़े ताकि ये लोग जीविकोपार्जन कर सकें.

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