
हाल ही में प्रयागराज में महाकुंभ के दौरान हुई भगदड़ में 30 लोगों की मौत हो गई और 60 से ज्यादा घायल हो गए. इस घटना के बाद उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने न्यायिक जांच के आदेश दिए हैं. यह जांच तीन सदस्यीय पैनल करेगा, जिसकी अध्यक्षता इलाहाबाद हाईकोर्ट के सेवानिवृत्त जस्टिस हर्ष कुमार कर रहे हैं.
इस पैनल का मकसद घटना के कारणों की जांच करना और भविष्य में ऐसी घटनाएं रोकने के उपाय सुझाना है. लेकिन यह पहली बार नहीं है जब कुंभ मेले में इस तरह की भगदड़ हुई हो. 1954 और 2013 में भी ऐसी ही दर्दनाक घटनाएं हुई थीं, जिनमें कई लोगों की जान गई थी. इन घटनाओं की जांच रिपोर्ट्स में प्रशासनिक लापरवाही और भीड़ प्रबंधन में कमियों को उजागर किया गया था.
आइए, 1954 और 2013 की उन भगदड़ की घटनाओं को फिर से देखें और जानें कि उन जांचों में क्या निष्कर्ष निकले थे.
1954 कुंभ भगदड़
1954 का कुंभ मेला 14 जनवरी से 3 मार्च तक प्रयागराज (तब इलाहाबाद) में आयोजित हुआ था. यह आजादी के बाद का पहला कुंभ था और इसमें करीब 50 लाख लोग संगम पर एकत्र हुए थे. 3 फरवरी को मौनी अमावस्या के दिन इस मेले में भीषण भगदड़ मच गई, जिसमें बड़ी संख्या में लोगों की मौत हो गई.
इस हादसे की जांच के लिए उत्तर प्रदेश सरकार ने तीन सदस्यीय समिति बनाई थी. इसमें इलाहाबाद हाईकोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश कमलकांत वर्मा, यूपी सरकार के पूर्व सलाहकार डॉ. पन्ना लाल और सिंचाई विभाग के मुख्य अभियंता ए.सी. मित्रा शामिल थे. इस समिति का काम था हादसे के कारणों की पड़ताल करना और भविष्य में ऐसी घटनाओं से बचने के उपाय सुझाना.
लेकिन इस जांच पर शुरू से ही सवाल उठे. रिपोर्ट में इस बात का कोई सही अनुमान नहीं लगाया गया कि भगदड़ में कितने लोग मारे गए. साथ ही यह भी कहा गया कि मेले में वीआईपी की मौजूदगी और उनके लिए किए गए सुरक्षा इंतजामों से भगदड़ नहीं हुई. रिपोर्ट ने इसे 'कल्पना पर आधारित' बताया.
हालांकि, रिपोर्ट में प्रशासन की लापरवाही जरूर मानी गई. इसमें कहा गया कि वहां कम से कम 1,000 और पुलिसकर्मी और 300 घुड़सवार पुलिस तैनात होनी चाहिए थी. जस्टिस वर्मा ने रिपोर्ट में लिखा कि मेले की तैयारी में देरी हुई और भीड़ नियंत्रण का इंतजाम सही नहीं था.
रिपोर्ट के मुताबिक, हादसा महावीर मंदिर रोड और रैंप नंबर 1 के पास हुआ, जहां अखाड़ों की शोभायात्रा संगम से लौट रही थी और उधर से स्नान करने जा रही भीड़ का रास्ता टकरा गया. इस बीच, महा निर्वाणी अखाड़े के साधुओं ने भगदड़ में फंसे लोगों पर अपने चिमटे से हमला कर दिया, जिससे स्थिति और बिगड़ गई. कई लोग नीचे गिर गए और कुचलकर मर गए.
इतिहासकार कामा मैकलीन ने अपनी किताब 'Pilgrimage and Power: The Kumbh Mela in Allahabad, 1765-1954' में इस घटना का जिक्र किया है. उन्होंने लिखा कि सरकार को इस हादसे के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया गया. उनका कहना था कि प्रशासन की व्यवस्था इतनी बड़ी भीड़ को संभालने के लिए पर्याप्त नहीं थी. एकतरफा रास्ते दोतरफा हो गए और लोग बिना किसी व्यवस्था के इधर-उधर घूमने लगे.
मैकलीन ने यह भी बताया कि जब सरकार की जांच रिपोर्ट से लोग संतुष्ट नहीं हुए तो इलाहाबाद के कुछ नागरिकों ने खुद इसकी जांच की और 'कुंभ त्रासदी तथ्य अन्वेषण समिति' बनाई. इस समिति की रिपोर्ट में खुलासा किया गया कि हादसे के लिए मंत्री, वीआईपी और प्रशासन जिम्मेदार थे.
रिपोर्ट में लिखा गया, 'यह हादसा अचानक नहीं हुआ था, इसे रोका जा सकता था. लेकिन प्रशासन जनता की सेवा करने की बजाय सत्ताधारी दल को खुश करने में लगा रहा. हजारों निर्दोष लोग मारे गए... सच्चाई छिपाने के लिए मौतों की संख्या कम बताई गई और झूठी जानकारी फैलाई गई.'
2013 कुंभ भगदड़
10 फरवरी 2013 को प्रयागराज रेलवे स्टेशन पर कुंभ मेले के दौरान भीषण भगदड़ मच गई, जिसमें 40 से ज्यादा लोगों की जान चली गई. चश्मदीदों के मुताबिक, रेलवे ने आखिरी वक्त में ट्रेन का प्लेटफॉर्म बदलने की घोषणा कर दी, जिससे अफरातफरी मच गई.
17 फरवरी को उत्तर प्रदेश सरकार ने इस घटना की जांच के लिए इलाहाबाद हाईकोर्ट के सेवानिवृत्त जज ओंकारेश्वर भट्ट के नेतृत्व में एक जांच आयोग बनाया. आयोग ने 14 अगस्त 2014 को अपनी रिपोर्ट राज्यपाल राम नाईक को सौंपी. इस रिपोर्ट में रेलवे, उत्तर प्रदेश परिवहन विभाग, इलाहाबाद प्रशासन और पुलिस को जिम्मेदार ठहराया गया.
रिपोर्ट में कहा गया कि रेलवे ने सही तरीके से यह अंदाजा नहीं लगाया कि मौनी अमावस्या पर कितने यात्री आएंगे और उन्हें संभालने के लिए कितनी व्यवस्था करनी होगी. जनवरी 2019 में खबर आई कि योगी आदित्यनाथ सरकार ने इस रिपोर्ट को विधानसभा में पेश करने की मंजूरी दे दी है. लेकिन इसके बाद इस रिपोर्ट पर कोई कार्रवाई नहीं हुई.
इसी बीच जुलाई 2014 में कैग (CAG) ने उत्तर प्रदेश विधानसभा में एक रिपोर्ट पेश की, जिसमें कई गड़बड़ियों का खुलासा हुआ. रिपोर्ट के अनुसार, मेले की 59% निर्माण योजनाएं और 19% जरूरी सुविधाएं मेले के शुरू होने के बाद भी अधूरी थीं. 111 में से 81 निर्माण कार्य बिना तकनीकी जांच के किए गए थे. कैग ने बताया, 'मेले के लिए कोई वैज्ञानिक योजना नहीं बनाई गई, विभागों के बीच सही तालमेल नहीं था और न ही कोई विस्तृत प्रोजेक्ट रिपोर्ट तैयार की गई.'