
अधिकतम शहर प्रति दिन औसतन 9000 टन म्यूनिसिपल सॉलिड वेस्ट पैदा करते हैं. देवनार डंपिंग ग्राउंड लगभग 132 हेक्टेयर क्षेत्र के साथ मुंबई में सबसे बड़ा और सबसे पुराना डंपिंग ग्राउंड है. डंपिंग ग्राउंड में पिछले कुछ वर्षों में आग लगने की कई छोटी और बड़ी घटनाएं सामने आई हैं, जिसके कारण बीएमसी को स्लोप स्टेबिलाइजेशन, बंद करने के लिए क्षेत्र की पहचान, मीथेन की मात्रा का अनुमान लगाने, अंतिम कवर के डिजाइन, डिजाइन के बारे में सुझाव देने के लिए आईआईटी बॉम्बे को नियुक्त करने के लिए मजबूर होना पड़ा.
इस डंपिंग ग्राउंड में 2016 और 2018 में कई बड़ी आग लग चुकी हैं. 2016 में आग पर एक सप्ताह के बाद ही काबू पाया जा सका था और स्थिति यह थी कि आसपास के क्षेत्रों में घने धुंध के कारण क्षेत्र में स्कूलों को बंद करना पड़ा था. विशेषज्ञों का मानना है कि गर्मी के दिनों में आग लगना एक आम बात है, जब कार्बनिक पदार्थ टूट जाते हैं. उत्पादित अत्यधिक ज्वलनशील मीथेन उच्च तापमान के कारण आग पकड़ लेती है. क्षेत्र में कई झुग्गी बस्तियाँ हैं और वर्षों से कई रिपोर्टों ने क्षेत्र में रहने वाले लोगों के लिए स्वास्थ्य संबंधी चिंताएँ बढ़ा दी हैं.
चेन्नई
जहां तक तमिलनाडु का संबंध है, 4 लैंडफिल का निर्माण किया गया है और इसे कैप किया गया है. राज्य में लगभग 210 डंप साइट हैं. तमिलनाडु प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुसार पुराने कचरे के लिए बायो माइनिंग का काम 69 जगहों पर पूरा हो चुका है और 32 लाख घन मीटर पुराना कचरा साफ किया जा चुका है. 360 एकड़ भूमि का भी पुनर्ग्रहण किया गया है. 111 स्थानों पर कार्य प्रगति पर है. चेन्नई के मामले में, दो मुख्य लैंडफिल हैं- एक पेरुंगुडी में स्थित है और दूसरा कोडुंगैयूर में है.
चेन्नई निगम के अनुसार, पेरुंगुडी डंप यार्ड का क्षेत्रफल लगभग 200 एकड़ है और यह 30 से अधिक वर्षों से उपयोग में है. पेरुंगुडी लैंडफिल में दैनिक आधार पर 2400 से 2600 मीट्रिक टन कचरे का निपटान किया जाता है.
दिल्ली- भलस्वा लैंडफिल साइट
भलस्वा लैंडफिल साइट राजधानी दिल्ली में कई सालों से विवाद का कारण बना हुआ है. पिछले कई सालों से भलस्वा लैंडफिल साइट को हटाने के लिए कई प्रयास हुए. भलस्वा लैंडफिल साइट के 5 से 6 किलोमीटर के दायरे में करीब 50000 लोग रहते हैं. यहां हर गर्मी के सीजन में भीषण आग लगती है.
राजधानी दिल्ली का भलस्वा लैंडफिल साइट दिल्ली चंडीगढ़ हाईवे के किनारे पर बना हुआ है. सालों से इस लैंडफिल साइट को हटाने के लिए राजनीतिक वादे और आंदोलन तक किए गए लेकिन अभी भी कूड़े का यह पहाड़ आसपास से करीब 10 किलोमीटर तक के दायरे में रहने वाले लोगों के लिए सबसे बड़ी समस्या का कारण बना हुआ है. यहां से निकलने वाली जहरीला धुआं कई बड़ी खतरनाक बीमारियों का कारण भी बनता है. भलस्वा लैंडफिल साइट पर कई बार आग लगने की घटनाएं हुई जिसकी वजह से यहां के लोगों का सांस लेना तक मुश्किल हो जाता है. स्थानीय निगम पार्षदा टिम्सी शर्मा से हमारी टीम में बातचीत की तो उन्होंने जानकारी दी कि भलस्वा लैंडफिल साइट की ऊंचाई लगभग 65 मीटर है. पिछले 5 सालों मे यहाँ पर कई बार आग लग चुकी है. गर्मी मे लगभग हर बार आग लगती है, जिससे जान माल की हानि होती रहती है.
दिल्ली- ओखला लैंडफिल साइट
दिल्ली के 3 बड़े लैंडफिल साइट में से एक ओखला का लैंडफिल साइट है . इस लैंडफिल साइट को कम करने को लेकर सरकारी तौर पर कई कार्य किए जा रहे हैं. नगर निगम चुनाव से पहले एक प्लांट यहां पर बनाया गया था जिसका उद्घाटन केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने किया था. रूस प्लांट के जरिए ओखला लैंडफिल साइट के कूड़े को निष्पादन कर खाद बनाया जा रहा है. इस प्लांट के लगने के बाद दावा है कि ओखला लैंडफिल साइट की ऊंचाई में कमी आई है वहीं नगर निगम चुनाव के बाद बीते 3 मार्च को मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भी ओखला लैंडफिल साइट का दौरा किया था और तब उन्होंने मीडिया से बात करते हुए कहा था कि शाहपुरा हटाने का कार्य शुरू हुआ है.
दिल्ली- गाजीपुर लैंडफिल साइट
पूर्वी दिल्ली गाजीपुर इलाके में लैंडफिल साइट मैं लगातार पिछले 5 सालों में कई बार आग लग चुकी है आखिरी आग पिछले 5से 6 महीने पहले लगी थी स्थानीय लोगों का कहना है कि यहां पर जब भी आग लगती है तो हम लोगों का काले धुंए से सांस लेने में भी काफी दिक्कत आती है और लोगों का यह कहना भी है कि अब इस कूड़े के पहाड़ ऊंचाई पिछले 1 साल से कम होती जा रही है और कूड़े के पहाड़ से मात्र 300 400 मीटर की दूरी पर रिहायशी इलाका है और इस इलाके में हजारों घर हैं और लाखों की संख्या में लोग रहते हैं वहीं स्थानीय निवासियों का कहना है कि हम सभी लोग यह चाहते हैं कि जल्द से जल्द कूड़े के पहाड़ को खत्म किया जाए और हमें साफ-सुथरी हवा और अच्छा वातावरण मिले वहीं बीजेपी के नेता प्रदीप भटनागर ने कहा की हम शुक्रिया अदा करते हैं यहां के सांसद का जिन्होंने यह बीड़ा उठाया की इस पहाड़ को खत्म करना है इससे पहले की सरकारों ने पहाड़ तो बनाया ही बनाया साथ में अवैध कॉलोनियों को भी जमा दिया.
बेंगलुरू
TOI के 2021 के एक लेख के अनुसार, बेंगलुरू में सात लैंडफिल हैं और उनमें से तीन बंद हैं. जहां सुब्बारायनपाल्या और सीगहल्ली लैंडफिल स्थानीय लोगों के विरोध के बाद कई वर्षों से बंद हैं, वहीं एनजीटी द्वारा इस मुद्दे पर विचार किए जाने के कारण लिंगदीरानहल्ली लैंडफिल को बंद कर दिया गया था. हालांकि, मित्तगनहल्ली में लैंडफिल तेजी से भर रहा है. कन्नहल्ली, डोड्डाबिदरकल्लू और चिक्कनगमंगला में अन्य लैंडफिल इकाइयों से सुसज्जित हैं. मंडूर, सीगहल्ली, बेलाहल्ली, मित्तगनहल्ली, मवल्लीपुरा और लैंडफिल हैं.
2022 के द हिंदू के लेख के अनुसार शहर को दक्षिण और बोम्मनहल्ली क्षेत्रों द्वारा उत्पन्न कचरे के लिए हुल्लाहल्ली में लैंडफिल मिलेगा. TOI के एक अन्य लेख में, शहर को महादेवपुरा निर्वाचन क्षेत्र द्वारा उत्पन्न कचरे के लिए कन्नूरू में लैंडफिल दिया जाएगा.
हैदराबाद
CPCB के अनुसार, राज्य में केवल दो दूषित स्थल हैं, कटेदन में नूर मोहम्मद कुंता और पाटनचेरु में नाका वागु. राज्य सरकार पहले ही 146 करोड़ रुपये खर्च कर चुकी है और डंप यार्ड को बंद कर चुकी है. इसके अलावा साइट पर नगरपालिका सॉलिड वेस्ट बिजली परियोजना से बिजली पैदा करना शुरू कर चुकी है. यह 19.8MW का इस तरह का पहला वेस्ट-टू-एनर्जी (WTE) प्लांट दक्षिण भारत में कमीशन किया गया है. बात करें कि विशेष लैंडफिल में कितनी बार आग लगने की सूचना मिली है तो हाल के दिनों में आग लगने की कोई दुर्घटना नहीं हुई है.
इनपुट- अमरजीत सिंह, अशुतोष कुमार, अनाघा