
पिछले चार महीने से हिंसा का आग में झुलस रहे मणिपुर की राजधानी इंफाल में रह रहे 10 परिवार को 24 सदस्यों को मणिपुर सरकार ने वहां से निकाल दिया है. जानकारी के मुताबिक इन 10 कुकी परिवार को इंफाल के न्यू लाम्बुलेन इलाके से निकालकर पहाड़ों में शिफ्ट किया गया है. ये कुकी परिवार यहां दशकों से रह रहे थे. 4 महीने पहले मणिपुर में जातीय हिंसा भड़कने के बाद भी कहीं और नहीं गए थे.
एक अधिकारी ने कहा कि इन परिवारों को शनिवार सुबह इंफाल घाटी के उत्तरी किनारे पर कुकी बहुल कांगपोकपी जिले में ले जाया गया. क्योंकि ये परिवार टारगेट पर थे. उन्होंने कहा कि 10 कुकी परिवारों को इंफाल से लगभग 25 किमी दूर कांगपोकपी जिले के मोटबुंग तक सुरक्षित तरीके से पहुंचा दिया गया है.
हालांकि कुकी परिवारों ने आरोप लगाया कि उन्हें न्यू लाम्बुलेन क्षेत्र में मोटबुंग में उनके आवासों से जबरन बेदखल कर दिया गया है.
इंफाल में कुकी इलाके की सुरक्षा करने वाले स्वयंसेवक एस प्राइम वैफेई ने कहा कि गृह विभाग के निर्देशों के तहत काम करने का दावा करने वाले सशस्त्र कर्मियों की एक टीम 1 और 2 सितंबर की रात इंफाल के न्यू लाम्बुलेन में आई थी. उन्होंने इम्फाल में कुकी इलाके में रहने वाले आखिरी 10 कुकी परिवारों को भी उनके घरों से जबरन बेदखल कर दिया.
न्यू लाम्बुलेन क्षेत्र में रहने वाले लगभग 300 आदिवासी परिवार 3 मई को जातीय हिंसा शुरू होने के बाद से चरणबद्ध तरीके से जगह छोड़ चुके थे. वैफेई ने कहा कि हममें से 24 लोगों को अपना सामान पैक करने का भी समय नहीं दिया गया और हमें केवल पहने हुए कपड़ों के साथ गाड़ियों में ले जाया गया.
मणिपुर में कब भड़की थी हिंसा?
मणिपुर में 3 मई को सबसे पहले जातीय हिंसा की शुरुआत हुई थी. मैतेई समुदाय की अनुसूचित जनजाति (एसटी) में शामिल किए जाने की मांग के विरोध में पहाड़ी जिलों में 'आदिवासी एकजुटता मार्च' आयोजित किया था. तब पहली बार मणिपुर में जातीय झड़पें हुईं. हिंसा में अब तक 150 लोगों की जान चली गई और सैकड़ों लोग घायल हो गए. मणिपुर की आबादी में मैतेई समुदाय की संख्या लगभग 53 प्रतिशत है और वे ज्यादातर इम्फाल घाटी में रहते हैं. कुकी और नागा समुदाय की आबादी 40 प्रतिशत से ज्यादा है. ये लोग पहाड़ी जिलों में रहते हैं.