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शांति भूषण: पूर्व कानून मंत्री और वकील ही नहीं, एक्टिविस्ट और नेता के तौर पर भी मिली पहचान

पूर्व कानून मंत्री शांति भूषण का 97 साल की उम्र में निधन हो गया. उनके बड़े बेटे और वकील प्रशांत भूषण के मुताबिक शांति भूषण गुर्दे की बीमारी के साथ-साथ उम्र संबंधित स्वास्थ्य समस्याओं से भी पीड़ित थे. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनको श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए ट्वीट किया कि शांति भूषण जी को कानूनी क्षेत्र में उनके योगदान और समाज के हाशिए पर आए वंचितों के लिए आवाज उठाने के जुनून के लिए याद किया जाएगा.

पूर्व कानून मंत्री शांति भूषण का निधन (फाइल फोटो) पूर्व कानून मंत्री शांति भूषण का निधन (फाइल फोटो)
संजय शर्मा
  • नई दिल्ली,
  • 31 जनवरी 2023,
  • अपडेटेड 11:54 PM IST

देश के पूर्व विधि और न्याय मंत्री शांति भूषण का 97 साल की उम्र में निधन हो गया. उन्होंने अपने नोएडा स्थित आवास पर अंतिम सांस ली. पिछले कुछ दिनों से शांति भूषण काफी बीमार थे. उनके बड़े बेटे और वकील प्रशांत भूषण के मुताबिक शांति भूषण गुर्दे की बीमारी के साथ-साथ उम्र संबंधित स्वास्थ्य समस्याओं से भी पीड़ित थे.
 
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनको अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए ट्वीट किया कि शांति भूषण जी को कानूनी क्षेत्र में उनके योगदान और समाज के हाशिए पर आए वंचितों के लिए आवाज उठाने के जुनून के लिए याद किया जाएगा. उनके निधन से दुख हुआ है. उनके परिवार के प्रति संवेदनाएं. 

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शांति भूषण के तीन रूप

शांति भूषण को निकट से जानने वालों के लिए उनके व्यक्तित्व में तीन अद्भुत गुणों का मिश्रण था. एक प्रखर वकील, एक राजनेता और एक सामाजिक कार्यकर्ता यानी एक्टिविस्ट. वकील हुए तो देश की प्रधानमंत्री के चुनाव को शून्य करवा दिया. समाजवादी नेता राजनारायण के वकील होकर अपने अकाट्य तर्कों की बदौलत अदालत से इंदिरा गांधी का चुनाव अवैध घोषित करवा दिया. इसका नतीजा ये हुआ कि देश में आपातकाल की घोषणा कर दी गई. 

कई मामलों में दिखी मुखरता

हालांकि शांति भूषण ने 1993 में मुंबई बम धमाकों के अभियुक्तों और बाद में संसद पर हमला करने वाले आतंकी शौकत हुसैन की पैरवी भी की. अरुंधति रॉय के खिलाफ जब कोर्ट की अवमानना का मुकदमा चला तो शांति भूषण रॉय की पैरवी करते दिखे. चर्चित पीएफ घोटाला सामने आया तो भी शांति भूषण आरोपियों के खिलाफ मुखर थे. आरोपियों में न्यायपालिका के कई जजों के भी नाम सवालों और शक के घेरे में थे. बिरला परिवार के संपत्ति विवाद में वो राजेंद्र एस लोढ़ा की पैरवी में अदालत की चौखट पर दिखे तो पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा की भी पैरवी की.

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इसके बाद आपातकाल खत्म हुआ और जनता पार्टी की सरकार आई. हालांकि जनता पार्टी बनी तो शांति भूषण कांग्रेस को छोड़कर जनता पार्टी में शामिल हो गए. इसके साथ शांतिभूषण के करियर का नया रूप सामने आया. वे नया रूप राजनेता का था. उनहें देश का कानून मंत्री भी बनाया गया. ढाई साल तक वो इस पद पर रहे 1977 से 1979 तक. राज्यसभा के सदस्य के तौर पर वो केंद्रीय मंत्रिमंडल के सदस्य रहे.

नेता से एक्टिविस्ट बने शांति भूषण

साल 1980 में वे भारतीय जनता पार्टी में शामिल हुए थे. लेकिन 1986 में जब भारतीय जनता पार्टी ने एक चुनाव याचिका पर उनकी सलाह नहीं मानी तो उन्होंने भाजपा से त्यागपत्र दे दिया था. इसके बाद 1980 के दशक से शांति भूषण का एक और रूप दिखा. वो रूप था एक्टिविस्ट का. सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन यानी CPIL के संस्थापकों की कतार में सबसे आगे शांति भूषण ही थे. इसमें जस्टिस तारकुंडे और जस्टिस सच्चर भी थे. 

इसके बाद अन्ना हजारे के लोकपाल आंदोलन में भी शांति भूषण सक्रिय दिखे. उन्हीं ने लोकपाल का पूरा मसौदा ड्राफ्ट किया था. आंदोलन के बाद जब राजनीतिक दल बनाने की बात आई तो शांतिभूषण ने अरविंद केजरीवाल को सलाह और हौसला दिया. इसके अलावा उन्होंने एक करोड़ रुपए नकद भी दिए. हालांकि सरकार किसी की भी हो खरी-खरी सुनाने, आलोचना करने और दिल की बात जुबान पर ले आने की आदत के चलते शांति भूषण की हर एक भूमिका का पटाक्षेप जल्दी होता गया. क्योंकि शांति भूषण की ऐसी छवि नेताओं को पसंद आई.

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देश के जाने-माने विधि न्याय शास्त्र और संविधान विशेषज्ञ शांति भूषण अपनी शर्तों पर जिए और अपनी मर्जी से गए! उत्तर प्रदेश के संगम नगरी इलाहाबाद में 11 नवंबर 1925 को जन्मे शांति भूषण को 2009 में इंडियन एक्सप्रेस की ओर से जारी भारत के सौ शक्तिशाली हस्तियों में 74 वें नंबर पर स्थान दिया था. लेकिन किसी भी विषय पर मुखरता से अपनी बात रखने में वो हमेशा अव्वल नंबर पर रहे.

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