
सेना में महिलाओं को लेकर सेना की 17वीं कोर के कॉर्प्स कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल राजीव पुरी ने सेना के ईस्टर्न आर्मी के कमांडर को भेजे गए फीडबैक में सेना में महिलाओं को लेकर चिंता जताई है.
उन्होंने एक अक्टूबर 2024 को लिखे गए इस पत्र में कहा है कि महिला अधिकारियों को सेना की यूनिट कमांड करते हुए एक साल से ज्यादा का वक्त हो गया है. जरूरी है कि उनकी परफॉर्मेंशन का प्रैक्टिकल तरीके से मूल्यांकन किया जाए. बीते एक साल से जो यूनिट महिला अधिकारी कमांड कर रही हैं उनमें ऑफिसर मैनेजमेंट के मामले बढ़े हैं, यह गंभीर चिंता का विषय है.
इस चिट्ठी में सेना में महिला कमांडर्स की अगुवाई में चुनौतियों के विश्लेषण के आधार पर फीडबैक दिया गया है. चिट्ठी में कहा गया है कि महिला कमांडिंग ऑफिसर (सीओ) में अविश्वास और पूर्वाग्रह साफ दिखाई दिया है.
चिट्ठी में कहा गया है कि महिला सीओ बार-बार अपनी अथॉरिटी की अवहेलना किए जाने की शिकायत करती हैं. इसमें कहा गया है कि अपने सबऑर्डिनेट की शिकायत मिलने पर उसे अपने लेवल पर सुलझाने के बजाय महिला सीओ इसे सीनियर कमांडर के पास ले जाती हैं. महिला सीओ में फैसले लेने में सबको साथ लेकर चलने की भावना की कमी भी है. कुछ जगहों पर महिला सीओ के भीतर 'My Way or Highway' की अप्रोच भी दिखाई देती है.
लेफ्टिनेंट जनरल पुरी ने अपनी चिट्ठी में लिखा है कि महिला अफसरों में उनको मिली सुविधाओं का गलत इस्तेमाल करने की प्रवृत्ति भी दिखाई दी. एक महिला सीओ ने ये निर्देश दिए कि जब भी वो यूनिट पहुंचे तो उनकी गाड़ी का गेट सूबेदार मेजर खोलें. इसी तरह के दूसरे मामले में एक महिला सीओ ने आदेश दिए कि जब सुबह 6 बजे वो मॉर्निंग वॉक पर निकलें तो उनके घर का दरवाजा खोलने के लिए किसी शख्स को भेजा जाए.
चिट्ठी में कहा गया है कि महिला अफसरों को सेना में सपोर्ट कैडर के तौर पर भर्ती किया गया था और उन्हें कमांडिंग अफसर जैसे रोल के लिए न ही ग्रूम किया गया और न ही इसकी ट्रेनिंग दी गई. उनकी अब तक जो भी पोस्टिंग रही, उनमें उन्हें कमांडिंग रोल के लिए तैयार होने का कोई मौका नहीं मिला. सीओ की भूमिका अहम होती है और इस स्तर पर हाथ पकड़कर न तो सिखाया जा सकता है और न ही इसकी उम्मीद की जा सकती है. महिला सीओ में हार्डशिप की कमी दिखाई दी है.
उन्होंने लिखा कि महिला अफसरों का मानना है कि उनके साथ भेदभाव होता है. इसलिए जब कभी किसी बात पर सहमति नहीं बन पाती तो वो इसे मेल सुप्रीमेसी की तरह देखती है और बहुत तीखी प्रतिक्रिया देती हैं.
चिट्ठी में उन्होंने सुझाव दिया कि एजी ब्रांच को जेंडर न्यूट्रैलिटी की पॉलिसी बनानी चाहिए. पोस्टिंग और सिलेक्शन प्रोफाइल में भी जेंडर न्यूट्रैलिटी का ध्यान रखना चाहिए. उन्होंने ये भी सुझाव दिया कि पति-पत्नी की एक जगह पर पोस्टिंग वाली पॉलिसी का भी रिव्यू किया जाए.