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ये 12 रक्षक न होते तो नष्ट हो जाता प्रयागराज! महाकुंभ-2025 में जरूर करें इन माधव मंदिरों के दर्शन

सृष्टि की रचना के बाद ब्रह्मा जी ने प्रयागराज में 12 माधव (द्वादश माधव) की स्थापना की थी. इन मंदिरों की परिक्रमा से व्यक्ति को पवित्रता का फल और मोक्ष मिलता है, ऐसा माना जाता है. माना जाता है कि संगम में कल्पवास और स्नान का पूर्ण फल तभी प्राप्त होता है, जब श्रद्धालु इन 12 माधव मंदिरों की परिक्रमा करते हैं.

प्रयागराज में महाकुंभ 2025 की तैयारियां हो चुकी हैं, संगमतट का एरियल व्यू प्रयागराज में महाकुंभ 2025 की तैयारियां हो चुकी हैं, संगमतट का एरियल व्यू
विकास पोरवाल
  • नई दिल्ली,
  • 08 जनवरी 2025,
  • अपडेटेड 7:51 PM IST

उत्तर प्रदेश के प्रयागराज महाकुंभ-2025 के आयोजन के लिए तैयार है. गंगा-यमुना और प्राचीन अदृश्य सरस्वती के संगम तट पर होने वाला यह अध्यात्मिक आयोजन न सिर्फ युगों-युगों से चली आ रही परंपरा का निर्वहन है, बल्कि यह आस्था के जरिए एकता के ध्येय को स्थापित करने का लक्ष्य भी है. जहां गंगा-यमुना की बहती अविरल धारा में ऊंच-नीच, अमीर-गरीब और बड़े-छोटे की भावना का विष दूर बह जाता है और इस निर्मल जल से साफ हुए तन-मन में रह जाता है वो अमृत, जो हमें बताता है कि हम सब एक हैं और एक ही ईश्वर की संतान हैं. इस धारणा से ईशोपनिषद की वह सूक्ति सिद्ध हो जाती है, जिसमें कहा गया है कि, ईश्वर का निवास हर जगह और हर किसी में है. हर प्राणी और चेतना उसकी अविभाजित होने वाला हिस्सा है. 

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'ईशावास्यमिदं सर्वं यत्किञ्च जगत्यां जगत्, 
तेन त्यक्तेन भुञ्जीथा मा गृधः कस्यस्विद्धनम्.' 

कुंभ में जीवंत हो उठती हैं प्राचीन परंपराएं
प्रयागराज, जो सदियों से आध्यात्मिकता और धार्मिक आस्था का प्रमुख केंद्र रहा है, यहां कुंभ मेले के दौरान प्राचीन परंपराएं जो लुप्त हो गई थीं, या समय के फेर में भुला दी जाती हैं, वह भी जीवंत हो उठती हैं. इन्हीं परंपराओं में से एक है द्वादश माधव परिक्रमा, जो कुंभ मेले के दौरान धार्मिक और ऐतिहासिक दृष्टि से और भी अधिक महत्वपूर्ण हो जाती है.

क्या है प्रयाग शब्द का अर्थ?
पौराणिक मान्यता के अनुसार, प्रयाग शब्द का अर्थ है, प्रथम यज्ञ. कहते हैं सृष्टि के आरंभ में यहां ब्रह्म देव ने प्रथम यज्ञ किया था, इसलिए इसी आधार पर इस स्थान का नाम प्रयाग पड़ा. उन्होंने उस दौरान यहां 12 वेदियां बनाई थीं. यज्ञ भूमि बहुत विशाल थी और यही 12 वेदियां आगे चलकर तीर्थराज की सीमाएं बनीं.

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प्रयाग के रक्षक हैं द्वादश माधव
इन्हीं 12 वेदियों पर 12 माधव की स्थापना ब्रह्म देव ने ही की, जिन्हें बाद में महर्षि भारद्वाज ने फिर से स्थापित किया था. ब्रह्माजी के किस कल्प या मन्वंतर में यज्ञ किया था, इसका स्पष्ट प्रमाण नहीं मिलता है, लेकिन स्कंदपुराण में एक ब्रह्म यज्ञ का जिक्र जरूर मिलता है, जिसमें सभी देवी-देवताओं को स्थापित कर उन्हें उनके कार्य भी बांटे गए थे. संभवतः यह यज्ञ ही प्रयाग में होने वाला यज्ञ रहा होगा. 

सदियों से होती आ रही है माधव परिक्रमा, बीच में हो गई थी बंद
खैर, 12 माधव की स्थापना पर लौटते हैं. सृष्टि की रचना के बाद ब्रह्मा जी ने प्रयागराज में 12 माधव (द्वादश माधव) की स्थापना की थी. इन मंदिरों की परिक्रमा से व्यक्ति को पवित्रता का फल और मोक्ष मिलता है, ऐसा माना जाता है. माना जाता है कि संगम में कल्पवास और स्नान का पूर्ण फल तभी प्राप्त होता है, जब श्रद्धालु इन 12 माधव मंदिरों की परिक्रमा करते हैं. त्रेतायुग में महर्षि भारद्वाज के निर्देशन में द्वादश माधव परिक्रमा की परंपरा प्रारंभ हुई थी, जो कि 14वीं शताब्दी तक अनवरत जारी रही. हालांकि यह सिर्फ संत समाज तक सीमित रही और आम आदमी द्वारा सिर्फ कठिन अनुष्ठानों के रूप में ही जानी गई. उस समय तक इनके मंदिरों के स्थान पर छोटे-छोटे पीठ स्थापित थे.

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आजादी के बाद फिर से शुरू हुई द्वादश माधव की परिक्रमा
बाद में मुगल और ब्रिटिश शासन के दौरान जब मंदिर तोड़ अभियान चले तो यह द्वादश माधव भी इसकी जद में आए और इन मंदिरों-पीठों को भी काफी क्षति पहुंची, जिससे यह परंपरा लुप्तप्राय हो गई. स्वतंत्रता के बाद, संत प्रभुदत्त ब्रह्मचारी, शंकराचार्य निरंजन देवतीर्थ और स्वामी करपात्री महाराज ने 1961 में माघ मास में इस परिक्रमा की फिर से शुरुआत की थी. 1987 तक यह परंपरा चलती रही, लेकिन बाद में यह फिर से बंद हो गई. वजह कोई भी रही हो, लेकिन प्रमुख कारण तो यही रहा कि इनके वास्तविक स्थानों की पहचान पूरी तरह नहीं हो सकी थी और इस परिक्रमा बहुत प्रचार भी नहीं मिला. 

1991 में फिर से शुरू हुई परंपरा
1991 में झूंसी के टिकरमाफी पीठ के स्वामी हरिचैतन्य ब्रह्मचारी ने इसे फिर से शुरू किया था, तब से यह परंपरा फिर से चल पड़ी, लेकिन सीमित और लुप्तप्राय ही रही. 2019 के कुंभ मेले में अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के महासचिव महंत हरि गिरी के प्रयासों से द्वादश माधव परिक्रमा को एक बार फिर से जीवंत किया गया, और इसके प्राचीन स्थानों को फिर से खोजकर चिह्नित किया गया. कुंभ मेले की आध्यात्मिक ऊर्जा और प्रशासन के सहयोग से यह परिक्रमा अब एक स्थायी परंपरा बन चुकी है. हालांकि इनमें से वेणी माधव, बिंदु माधव, अक्षयवट माधव और संकष्टहर माधव तो प्राचीन काल से लोगों की आस्था का केंद्र रहे हैं और यहां सदियों पुराने मंदिर भी स्थापित हैं. यह पुराने समय से लोगों के बीच लोकप्रिय रहे हैं. बाकी अन्य को भी अब पहचान मिल रही है. इनमें से वेणी माधव सबसे प्रमुख हैं. 

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वेणी माधव को प्रयागराज की सुरक्षा का देवता, उसका अधिष्ठाता और प्रथम पूज्य माना जाता है. दारागंज में स्थापित वेणी माधव सदियों से लोगों की आस्था का केंद्र रहे हैं और वैष्णव पीठ के तौर पर भी जाने जाते हैं. वहीं, द्रौपदी घाट पर स्थित बिंदु माधव भी पूज्य रहे हैं. स्नान के बाद यहां दीप दान और दान की परंपरा रही है.

द्वादश माधव के प्रमुख स्थल
प्रयागराज में द्वादश माधव मंदिर विभिन्न स्थानों पर स्थित हैं. इनका धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व अत्यंत गहरा है:

वेणी माधव: दारागंज में स्थित, यह प्रयागराज के अधिष्ठाता देवता के रूप में पूजित हैं.
अक्षयवट माधव: यह गंगा-यमुना के संगम के केंद्र में स्थित बताए जाते हैं.
श्रीआदि माधव : संगम के मध्य जल रूप में आदिमाधव विराजमान हैं.
अनंत माधव और असी माधव: नागवासुकी मंदिर के निकट दारागंज में स्थित हैं.
मनोहर माधव: जॉनस्टन इलाके में विराजमान हैं.
बिंदु माधव: द्रौपदी घाट के पास स्थित हैं.
चक्र माधव: अरेल में स्थित.
श्रीगदा माधव: चिवकी रेलवे स्टेशन के पास.
पद्म माधव: देवरिया गांव में.
संकठार माधव और शंख माधव: झूंसी के छतनाग स्थित मुनशी के बाग में पाए जाते हैं.

कुंभ और परिक्रमा का महत्व
कुंभ मेले में संगम पर स्नान और कल्पवास करने वाले श्रद्धालु जब द्वादश माधव परिक्रमा करते हैं, तो यह न केवल उनकी आस्था को प्रबल करता है, बल्कि उन्हें पवित्रता और मोक्ष का मार्ग भी प्रदान करता है. यह परिक्रमा कुंभ के दौरान आध्यात्मिकता और परंपराओं का अनूठा संगम प्रस्तुत करती है. महाकुंभ 2025 में भी द्वादश माधव परिक्रमा को एक बार फिर श्रद्धालुओं के बीच जीवंत करने की तैयारी है. यह उनके लिए दिव्य अनुभव लेकर आएगा. यह मौका प्रयागराज की धार्मिक ऊर्जा में डुबकी लगाने और अपनी आत्मा को पवित्र करने का सुंदर मौका भी है.

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