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मराठा आरक्षण पर क्यों उबल रहा है जालना, अनशन पर बैठे मनोज जरांगे को सरकार ने बातचीत के लिए बुलाया

मनोज जारांगे के नेतृत्व में प्रदर्शनकारी मंगलवार से गांव में मराठा समुदाय के लिए आरक्षण की मांग को लेकर भूख हड़ताल कर रहे थे. डॉक्टरों की सलाह पर पुलिस मनोज जारांगे को अस्पताल में भर्ती कराने के लिए पहुंची. इसके बाद भीड़ ने पुलिस को उन्हें अस्पताल ले जाने से रोक दिया. इसके बाद हिंसा फैल गई.

जालना में शुक्रवार को हुई थी हिंसा जालना में शुक्रवार को हुई थी हिंसा
aajtak.in
  • जालना,
  • 04 सितंबर 2023,
  • अपडेटेड 4:02 PM IST

महाराष्ट्र के जालना में मराठा आरक्षण को लेकर तनाव है. यहां शुक्रवार को मराठा आरक्षण की मांग कर रहे आंदोलनकारियों और पुलिस के बीच में भीषण झड़प हो गई थी. इस झड़प में 40 पुलिसकर्मी और कुछ आंदोलनकारी जख्मी हो गए थे. इसके बाद पुलिस ने यहां 360 लोगों के खिलाफ FIR दर्ज की है. 16 की पहचान भी हो चुकी है. उधर, महाराष्ट्र सरकार ने अनशन पर बैठे मनोज जरांगे पाटिल को भी बातचीत के लिए बुलाया है. 

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दरअसल, मनोज जारांगे के नेतृत्व में प्रदर्शनकारी मंगलवार से गांव में मराठा समुदाय के लिए आरक्षण की मांग को लेकर भूख हड़ताल कर रहे थे. पुलिस के मुताबिक, परेशानी तब शुरू हुई, जब डॉक्टरों की सलाह पर पुलिस ने जारांगे को अस्पताल में भर्ती कराने की कोशिश की. इसके बाद प्रदर्शनकारियों ने पुलिस को ऐसा करने से रोका. इसके बाद स्थिति बिगड़ गई और हिंसा शुरू हो गई. हिंसा में 40 पुलिसकर्मियों समेत कई लोग घायल हो गए और 15 से अधिक सरकारी बसें फूंक दी गई थीं. हिंसा के सिलसिले में करीब 360 लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया गया है. 

मनोज जरांगे को सरकार ने बातचीत के लिए बुलाया

मराठा आरक्षण के मुद्दे पर बातचीत के लिए महाराष्ट्र सरकार ने मनोज जरांगे को बुलाया है. जारांगे पाटिल मंगलवार से जालना के अंतरवाली सारथी गांव में मराठा समुदाय के लिए आरक्षण की मांग को लेकर भूख हड़ताल कर रहे हैं. शुक्रवार को डॉक्टरों की सलाह पर पुलिस ने जब उन्हें अस्पताल में शिफ्ट करने की कोशिश की, तो स्थिति बिगड़ गई. इसके बाद हिंसा फैल गई. पुलिस को हिंसा पर काबू करने के लिए लाठीचार्ज करना पड़ा और आंसू गैस के गोले दागे. इस लाठीचार्ज के विरोध में शनिवार को ठाणे, नासिक और लातूर में प्रदर्शन किए गए. 

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एसपी को छुट्टी पर भेजा गया

हिंसा के बाद महाराष्ट्र के सीएम एकनाथ शिंदे ने रविवार को जालना एसपी को अनिवार्य छुट्टी पर भेज दिया है. शिंदे ने कहा कि अपर पुलिस महानिदेशक कानून व्यवस्था (एडीजीपी) संजय सक्सेना लाठी चार्ज की घटना की जांच करेंगे और अगर जरूरत पड़ी तो पूरे मामले की न्यायिक जांच कराई जाएगी. शिंदे ने बताया कि दो डिप्टी एसपी रैंक के अधिकारियों का भी जालना से बाहर ट्रांसफर किया गया है. 

शिंदे ने कहा कि वे एक साधारण मराठा परिवार में पैदा हुए हैं, इसलिए वह समुदाय के दर्द को समझ सकते हैं. उन्होंने आश्वासन दिया कि राज्य सरकार मराठों को आरक्षण देने का प्रयास कर रही है, जो कानूनी परीक्षा में भी पास हो.  

विपक्ष हुआ हमलावर

कई विपक्षी नेताओं ने पुलिस कार्रवाई की निंदा की और राज्य के गृह मंत्री देवेंद्र फडणवीस के इस्तीफे की मांग की है. शिवसेना (यूबीटी) सांसद संजय राउत ने सोमवार को पूछा, वे जानना चाहते हैं कि पिछले हफ्ते महाराष्ट्र के जालना में मराठा आरक्षण की मांग कर रहे प्रदर्शनकारियों पर लाठीचार्ज का आदेश किसने दिया था? 

राउत ने पूछा, शीर्ष अधिकारियों के आदेश के बिना मुख्यमंत्री और राज्य के गृह मंत्री के कार्यालय से किसने फोन किया? स्थानीय पुलिस कभी भी लाठीचार्ज और गोलीबारी का इस्तेमाल नहीं करती. हम जानना चाहते हैं कि किसने फोन पर ऐसा आदेश दिया.  

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संजय राउत ने कहा, मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और दोनों उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस और अजीत पवार जनरल डायर की मानसिकता के साथ काम कर रहे हैं. उन्होंने शांतिपूर्वक भूख हड़ताल पर बैठे मराठा प्रदर्शनकारियों पर लाठीचार्ज और गोलीबारी का आदेश दिया. 

क्या है मराठा आरक्षण का मुद्दा

महाराष्ट्र की राजनीति में मराठाओं का बड़ा प्रभाव माना जाता है. राज्य में मराठा समुदाय की आबादी 30 प्रतिशत से ज्यादा है. 2018 में महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण के लिए बड़ा आंदोलन हुआ था. इसके बाद महाराष्ट्र सरकार ने विधानसभा में बिल पास किया था. इसके तहत राज्य की सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थाओं में मराठाओं को 16 फीसदी आरक्षण देने का प्रावधान किया गया था. 

इस बिल के खिलाफ बॉम्बे हाईकोर्ट में याचिका लगाई गई. बॉम्बे हाईकोर्ट ने आरक्षण रद्द नहीं किया था. हालांकि, इसे घटाकर शिक्षण संस्थानों में 12 फीसदी और सरकारी नौकरियों में 13 प्रतिशत कर दिया. 

इस बिल के खिलाफ मेडिकल छात्र बॉम्बे हाई कोर्ट चले गए. हाईकोर्ट ने आरक्षण को रद्द तो नहीं किया, लेकिन 17 जून 2019 को अपने एक फैसले में इसे घटाकर शिक्षण संस्थानों में 12 फीसदी और सरकारी नौकरियों में 13 प्रतिशत कर दिया. HC ने कहा था कि अपवाद के तौर पर 50 फीसदी आरक्षण की सीमा पार की जा सकती है. इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी. 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने मराठा आरक्षण के फैसले को असंवैधानिक बताते हुए रद्द कर दिया था. 

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