
महाराष्ट्र और कर्नाटक का सीमा विवाद गहराता जा रहा है. मामला सुप्रीम कोर्ट में है. गृह मंत्री अमित शाह ने भी कुछ दिन पहले महाराष्ट्र के सीएम एकनाथ शिंदे और कर्नाटक के मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई से मुलाकात की थी और सलाह दी थी जब तक विवाद का हल नहीं हो जाता तब तक कोई दावे न किए जाएं. हालांकि, दोनों राज्यों के नेताओं की ओर से दावे किए जा रहे हैं.
इस बीच महाराष्ट्र के पूर्व सीएम उद्धव ठाकरे ने मांग की है कि विवादित इलाकों को केंद्रशासित प्रदेश घोषित किया जाए. उन्होंने विवादित इलाकों को कर्नाटक 'अधिकृत' बताया है.
उद्धव ठाकरे इससे पहले भी ये मांग कर चुके हैं. जब उद्धव सीएम थे, तब उन्होंने कहा था कि जब तक सुप्रीम कोर्ट से ये मसला नहीं सुलझ जाता, तब तक विवादित इलाकों को केंद्रशासित प्रदेश बना देना चाहिए. इतना ही नहीं, जनवरी 2021 में उन्होंने विवादित इलाकों को 'कर्नाटक अधिकृत महाराष्ट्र' तक कह दिया था.
इससे पहले कर्नाटक सरकार ने विधानसभा में एक प्रस्ताव किया है. ये प्रस्ताव कहता है कि एक इंच भी महाराष्ट्र को नहीं देंगे.
महाराष्ट्र-कर्नाटक में विवाद क्या है? किसी इलाके या क्षेत्र को केंद्रशासित प्रदेश कब और कैसे बनाया जाता है? समझते हैं...
विवाद की जड़ क्या?
1947 में आजादी मिलने के बाद देश में भाषाई आधार पर राज्यों के बंटवारे की मांग उठने लगी. पहले श्याम धर कृष्ण आयोग बना. इस आयोग ने भाषाई आधार पर राज्यों के गठन को देशहित के खिलाफ बताया.
लेकिन लगातार उठ रही मांगों के बाद 'जेवीपी' आयोग बना. यानी जवाहर लाल नेहरू, वल्लभ भाई पटेल और पट्टाभि सीतारमैया. इस आयोग ने भाषाई आधार पर राज्यों के गठन का सुझाव दिया.
इसके बाद 1953 में पहले राज्य पुनर्गठन आयोग का गठन हुआ. 1956 में राज्य पुनर्गठन कानून बना और इस आधार पर 14 राज्य और 6 केंद्रशासित प्रदेश बने. महाराष्ट्र को उस समय बंबई और कर्नाटक को मैसूर के नाम से जाना जाता था.
विवाद क्या है?
आजादी से पहले महाराष्ट्र को बंबई रियासत के नाम से जाना जाता था. आज के समय के कर्नाटक के विजयपुरा, बेलगावी, धारवाड़ और उत्तर कन्नड़ पहले बंबई रियासत का हिस्सा थे.
आजादी के बाद जब राज्यों के पुनर्गठन का काम चल रहा था, तब बेलगावी नगर पालिका ने मांग की थी कि उसे प्रस्तावित महाराष्ट्र में शामिल किया जाए, क्योंकि यहां मराठी भाषी ज्यादा है.
इसके बाद 1956 में जब भाषाई आधार पर राज्यों के पुनर्गठन का काम चल रहा था, तब महाराष्ट्र के कुछ नेताओं ने बेलगावी (पहले बेलगाम), निप्पणी, कारावार, खानापुर और नंदगाड को महाराष्ट्र का हिस्सा बनाने की मांग की.
जब मांग जोर पकड़ने लगी तो केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज मेहर चंद महाजन की अध्यक्षता में एक आयोग का गठन किया.
इस आयोग ने 1967 में अपनी रिपोर्ट सौंपी. 1970 में इस रिपोर्ट को संसद में पेश किया गया. आयोग ने जाट, अक्कलकोट और सोलापुर समेत 247 गांव कर्नाटक को देने का सुझाव दिया. जबकि निप्पणी, खानापुर और नंदगाड समेत 262 गांव महाराष्ट्र को सौंपने की सिफारिश की. इस पर महाराष्ट्र ने आपत्ति जताई, क्योंकि वो बेलगावी सहित 814 गांवों की मांग कर रहा था.
महाराष्ट्र-कर्नाटक की मांग क्या है?
महाराष्ट्र बेलगावी पर अपना दावा करता है. इसके अलावा वो कर्नाटक के हिस्से के 814 गांवों पर भी अपना दावा करता है. उसका कहना है कि कर्नाटक के हिस्से में शामिल उन गांवों को महाराष्ट्र में मिलाया जाए, क्योंकि वहां मराठी बोलने वालों की आबादी ज्यादा है.
वहीं, कर्नाटक बेलगावी को अपना अटूट हिस्सा बताता है. वहां सुवर्ण विधान सौध का गठन भी किया गया है, जहां हर साल विधानसभा सत्र होता है.
इतना ही नहीं, कर्नाटक के मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मबई ने हाल ही में महाराष्ट्र के अक्कलकोट और सोलापुर में कन्नड़ भाषी इलाकों के विलय की मांग की थी. साथ भी ये भी दावा किया था कि सांगली जिले के जाट तालुका के कुछ गांव कर्नाटक में शामिल होना चाहते हैं.
2004 में महाराष्ट्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में 1956 के राज्य पुनर्गठन एक्ट को चुनौती दी थी. उसने कर्नाटक के पांच जिलों के 814 गांवों और इलाकों को महाराष्ट्र में विलय करने की मांग की थी.
कर्नाटक सरकार तर्क देती है कि राज्यों की सीमाओं पर फैसला सिर्फ संसद ही कर सकती है, अदालत नहीं. इसके लिए वो संविधान के अनुच्छेद 3 का हवाला देता है. जबकि, महाराष्ट्र सरकार अनुच्छेद 131 का हवाला देते हुए कहती है कि विवादों का निपटारा करना सुप्रीम कोर्ट के अधिकार क्षेत्र में है.
2010 में केंद्र सरकार ने कहा था कि संसद और केंद्र सरकार, दोनों ने राज्य पुनर्गठन बिल 1956 और बॉम्बे पुनर्गठन एक्ट 1960 लाते समय सभी प्रासंगिक कारकों का ध्यान रखा था.
क्या विवादित इलाके केंद्रशासित प्रदेश बन सकते हैं?
महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे विवादित इलाकों को केंद्रशासित प्रदेश घोषित करने की मांग करते रहे हैं.
किसी भी इलाके या क्षेत्र को केंद्रशासित प्रदेश घोषित करने का अधिकार सिर्फ केंद्र सरकार के पास है. वो भी तब, जब संसद में उसपर मुहर लगती है.
किसी भी इलाके या क्षेत्र को केंद्रशासित प्रदेश बनाते समय कई बातों का ध्यान रखा जाता है. मसलन, ऐसे इलाके जो भारत के हिस्सा तो होते हैं लेकिन वो मेनलैंड से बहुत दूर होते हैं. इसलिए किसी पड़ोसी राज्य का हिस्सा नहीं बन सकते. लक्षद्वीप और अंडमान-निकोबार इसका उदाहरण हैं. दोनों ही भारत के हिस्से हैं, लेकिन मेनलैंड से दूर हैं.
इसके अलावा अगर कोई इलाका या क्षेत्र आबादी और क्षेत्रफल के हिसाब से बहुत छोटा होता है और उसे अलग राज्य का दर्जा देना मुश्किल होता है तो उसे केंद्रशासित प्रदेश बना दिया जाता है.
वहीं, किसी इलाके की खास सांस्कृतिक पहचान को बनाए रखने के लिए भी उन्हें केंद्रशासित प्रदेश बना दिया जाता है. इसके अलावा राजनैतिक और प्रशासनिक कारणों से भी केंद्रशासित प्रदेश बनाया जाता है.
अभी कितने केंद्रशासित प्रदेश हैं?
देश में 28 राज्य और 8 केंद्रशासित प्रदेश हैं. पहले सात केंद्रशासित प्रदेश थे. फिर अगस्त 2019 में जम्मू-कश्मीर और लद्दाख को भी अलग-अलग कर केंद्रशासित प्रदेश बना दिया गया. इस तरह इनकी संख्या नौ हो गई.
बाद में दादरा नगर हवेली और दमन दीव को मिलाकर एक ही केंद्रशासित प्रदेश बना दिया गया. इस कारण इनकी संख्या आठ हो गई.
अभी, अंडमान-निकोबार, दादरा नगर हवेली और दमन दीव, जम्मू-कश्मीर, लक्षद्वीप, चंडीगढ़, दिल्ली, लद्दाख और पुडुचेरी केंद्रशासित प्रदेश हैं.
इनमें से दिल्ली, जम्मू-कश्मीर और पुडुचेरी की अपनी विधानसभा भी है. केंद्रशासित प्रदेशों पर सीधे-सीधे राष्ट्रपति का शासन होता है. लेकिन राष्ट्रपति कोई भी काम मंत्रिपरिषद की सलाह पर करते हैं, इसलिए इसका मतलब हुआ कि यहां केंद्र सरकार का शासन होता है.
केंद्र शासित प्रदेशों में राष्ट्रपति एक सरकारी प्रशासक (एडमिनिस्ट्रेटर) या उपराज्यपाल (लेफ्टिनेंट गवर्नर) की नियुक्ति करते हैं. राष्ट्रपति इन्हीं प्रशासकों या उपराज्यपाल के जरिए यहां शासन करते हैं.