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महाराष्ट्र की सियासत के लिए आज बड़ा दिन, शिंदे गुट के विधायकों की अयोग्यता पर स्पीकर का आएगा फैसला

महाराष्ट्र विधानसभा के स्पीकर राहुल नार्वेकर के सामने सबसे बड़ा सवाल ये है कि असली शिवसेना कौन सी है? बड़ी बात ये है कि अगर एकनाथ शिंदे अयोग्य ठहराए जाते हैं, तो उन्हें मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ सकता है.

एकनाथ शिंदे एकनाथ शिंदे
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 10 जनवरी 2024,
  • अपडेटेड 7:44 AM IST

महाराष्ट्र की सियासत में आज बड़ा दिन है. विधानसभा स्पीकर राहुल नार्वेकर शिवसेना विधायकों की अयोग्यता से जुड़े मामले में अपना फैसला सुनाएंगे. स्पीकर का ये फैसला बुधवार शाम चार बजे आ सकता है. 

जून 2022 में शिवसेना में टूट के बाद विधायकों की अयोग्यता को लेकर दोनों गुटों की तरफ से 34 याचिकाएं दायर की गई थीं. इन याचिकाओं को छह हिस्सों में बांटा गया था. इनमें से चार शिवसेना (उद्धव ठाकरे गुट) और दो शिंदे गुट की हैं. 

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महाराष्ट्र विधानसभा के स्पीकर राहुल नार्वेकर के सामने सबसे बड़ा सवाल ये है कि असली शिवसेना कौन सी है? बड़ी बात ये है कि अगर एकनाथ शिंदे अयोग्य ठहराए जाते हैं, तो उन्हें मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ सकता है.

ठाकरे गुट ने दी थी ये दलील

ठाकरे गुट की ओर से सीनियर एडवोकेट देवदत्त कामत ने दलीलें दी थीं. उन्होंने संविधान की 10वीं अनुसूची के तहत एकनाथ शिंदे और बागी विधायक अयोग्य करने की मांग की थी.

उन्होंने दलील दी थी कि शिंदे और शिवसेना के 38 विधायक 20 जून 2022 को मुंबई से बाहर चले गए थे. बाद में उन्होंने महा विकास अघाड़ी की सरकार गिराने में बीजेपी की मदद की थी. 

शिंदे उस समय न सिर्फ पार्टी के नेता थे, बल्कि राष्ट्रीय कार्यकारिणी और प्रतिनिधि सभा के सदस्य भी थे. उन्होंने इससे पहले कोई आपत्ति नहीं जताई थी, लेकिन 30 जून 2022 को उद्धव ठाकरे की मर्जी के खिलाफ जाकर बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बना ली.

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कामत ने ये भी दलील दी थी कि विधानसभा स्पीकर को सिर्फ शिवसेना का चेहरा तय करना है. उनके फैसले का असर सुप्रीम कोर्ट और चुनाव आयोग के आदेश पर नहीं पड़ेगा. चुनाव आयोग ने शिवसेना का नाम और सिंबल शिंदे गुट को देने का आदेश दे दिया था.

उन्होंने ये भी दलील दी थी कि पार्टी का नाम और सिंबल शिंदे गुट को देने का आदेश देते समय चुनाव आयोग ने कहा था कि शिवसेना का संविधान 1999 का है और उस समय पार्टी में पक्षप्रमुख नाम का कोई पद नहीं था. कामत ने दावा किया था कि पार्टी में आखिरी चुनाव 2018 में हुआ था.

कामत ने ये भी कहा कि व्हिप की नियुक्ति का मुद्दा भी स्पीकर के फैसले से तय होगा. शिंदे गुट की ओर से विधायक भरत गोगावले को व्हिप नियुक्त किया था, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने गैरकानूनी करार दिया था.

शिंदे गुट ने रखी थी ये दलीलें

शिंदे गुट की ओर से पेश हुए वकील महेश जेठमलानी ने 2018 में हुए पार्टी चुनाव को फर्जी बताया था. उन्होंने ये भी दलील दी कि 2018 में चुनाव ही नहीं हुए. 

जेठमलानी ने 2018 का एक पत्र दिखाते हुए कहा था कि इसे चुनाव आयोग के पास भेजा गया था, लेकिन आयोग ने इसका संज्ञान नहीं लिया था. आयोग ने अपने आदेश में कहा था कि 1999 का संविधान उनके पास आखिरी रिकॉर्ड है. इसलिए उसके बाद जो हुआ, वो सब गैरकानूनी है. 

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उन्होंने दलील दी कि चुनाव आयोग ने 2018 के संशोधन का संज्ञान नहीं लिया था और उसी आधार पर फैसला लिया था. स्पीकर भी इसपर विचार कर सकते हैं.

जेठमलानी ने एक और दलील देते हुए कहा था कि 2018 के संविधान में शिवसेना अध्यक्ष को पक्षप्रमुख कहा गया है, जबकि 1999 में अध्यक्ष को शिवसेना प्रमुख कहा गया था. 

इस पर ठाकरे गुट के वकील कामत ने कहा था कि शिवसेना प्रमुख का पद सिर्फ दिवंगत बालासाहेब ठाकरे के पास है. उन्होंने तर्क दिया कि पार्टी अध्यक्ष को कैसे संबोधित किया जाता है, ये जरूरी नहीं है, बल्कि पार्टी अध्यक्ष कौन है, ये ज्यादा जरूरी है.

किसी बैठक में शामिल नहीं हुए थे शिंदे

सीनियर एडवोकेट महेश जेठमलानी ने दावा किया कि जून 2022 में उद्धव ठाकरे की शिवसेना की दो बैठकों में एकनाथ शिंदे शामिल नहीं हुए थे. उन्होंने ये भी तर्क दिया कि 20 जून 2022 को भी कोई बैठक नहीं बुलाई गई थी, क्योंकि इसका पत्र शिंदे को नहीं मिला. 

उन्होंने 25 जून 2022 को बुलाई गई राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक को भी चुनौती दी, जिसमें फैसला लिया गया था कि शिंदे गुट के विधायकों के खिलाफ अयोग्यता का प्रस्ताव लाया जाना चाहिए.

जेठमलानी ने दलील देते हुए कहा कि एकनाथ शिंदे को अयोग्य नहीं ठहराया जा सकता, क्योंकि उन्होंने चुनाव के समय वोटर्स से किए गए वादे का सम्मान किया था. 

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चीफ व्हिप की नियुक्ति के मामले पर जेठमलानी ने कहा कि इसकी नियुक्ति शिवसेना विधायक दल के नेता करते हैं. 2019 में भी सुरेश प्रभु को विधायक दल ने चीफ व्हिप नियुक्त किया था. उन्होंने दावा किया कि शिवसेना के संविधान में भी चीफ व्हिप की नियुक्ति का जिक्र नहीं है.

किन विधायकों पर मंडरा रहा अयोग्यता का खतरा?

शिंदे गुट: एकनाथ शिंदे, संजय शिरसत, भरत गोगावले, संदीपन भुमरे, तानाजी सावंत, अब्दुल सत्तार, लता सोनावाने, यामिनी जाधव, प्रकाश सूर्वे, अनिल बाबर, बालाजी किन्नीकर, महेश शिंदे, चिमनराव पाटिल, रमेश बोरनारे, संजय रायमुल्कर और बालाजी कल्याणकर. इनके अलावा और भी कई विधायकों के खिलाफ ठाकरे गुट ने अयोग्यता की मांग की है.

ठाकरे गुटः सुनील प्रभु, रविंद्र वाईकर, सुनील राउत, वैभव नाइक, अजय चौधरी, संजय पटनीस, प्रकाश फाटेरपेकर, रमेश कोरगांवकर, राजन विचारे, नितिन देशमुख, कैलाश पाटिल और राहुल पाटिल. सिर्फ दो विधायकों- आदित्य ठाकरे और रुतुजा लाटके के खिलाफ ही अयोग्यता का प्रस्ताव नहीं आया है.

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