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पंजाब में मिले 282 नरकंकालों की पहचान के लिए ब्रिटिश हाई कमीशन से लिस्ट मांगेंगे शोधकर्ता

पंजाब के अजनाला कस्बे के एक पुराने कुएं से 2014 में 282 नर कंकाल मिले थे. डीएनए और आइसोटोप एनालिसिस से ये राज खुला है कि ये कंकाल 165 साल पहले ब्रिटिश क्रूरता का शिकार हुए यूपी, बिहार, बंगाल और ओडिशा के रहने वाले 26वीं मूल बंगाल इन्फैंट्री बटालियन के सैनिकों के हैं.

पुराने कुएं से मिले थे नर कंकाल पुराने कुएं से मिले थे नर कंकाल
रोशन जायसवाल
  • वाराणसी,
  • 01 मई 2022,
  • अपडेटेड 12:05 AM IST
  • अजनाला कस्बे के पुराने कुएं से मिले थे नर कंकाल
  • डीएनए और आइसोटोप एनालिसिस से खुला राज

पंजाब के अजनाला कस्बे में एक पुराने कुएं से साल 2014 में 282 नर कंकालों के अवशेष निकाले गए थे. अब इसकी गुत्थी DNA और आइसोटोप एनालिसिस के माध्यम से सुलझ गई है. ये नर कंकाल पहले स्वतंत्रता संग्राम के दौरान अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ बगावत करने वाले 26वीं मूल बंगाल इन्फैंट्री बटालियन के सैनिक थे जिन्हें अंग्रेज अधिकारियों ने न केवल बेरहमी से तड़पाकर मार डाला, बल्कि उनकी मौत का सबूत तक मिटा डाला था.

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आज 282 नर कंकालों ने 165 साल बाद अपनी पहचान खुद बता दी है. दरअसल, 2014 की शुरुआत में पंजाब के अजनाला कस्बे के एक पुराने कुएं से 282  नर कंकालों के अवशेष निकले थे. इसे लेकर कुछ इतिहासकारों ने कहा था कि ये कंकाल भारत-पाकिस्तान विभाजन के दौरान दंगों में मारे गए लोगों के हैं. एक धारणा ये भी थी कि ये कंकाल उन भारतीय सैनिकों के हैं जिनकी हत्या 1857 स्वतंत्रता संग्राम के विद्रोह के दौरान अंग्रेजों ने कर दी थी.

वैज्ञानिक प्रमाणों की कमी के कारण इन सैनिकों की पहचान और भौगोलिक उत्पत्ति पर गहन बहस चल रही थी. वास्तविकता पता करने के लिए पंजाब विश्वविद्यालय के एन्थ्रोपोलाजिस्ट डॉ जेएस सेहरावत ने इन कंकालों का डीएनए और आइसोटोप अध्ययन किया. इस अध्ययन में सीसीएमबी हैदराबाद, बीरबल साहनी इंस्टीट्यूट लखनऊ और काशी हिंदू विश्विद्यालय के वैज्ञानिकों का भी सहयोग लिया गया. वैज्ञानिको की दो अलग-अलग टीम ने डीएनए और आइसोटोप एनालिसिस किया जिसमें निष्कर्ष निकला की ये कंकाल गंगा घाटी क्षेत्र के रहने वाले लोगों के हैं.

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डीएनए और आइसोटोप अध्ययन के बाद निष्कर्ष पर पहुंचे वैज्ञानिक

इस अध्ययन में अहम भूमिका निभाने वाले काशी हिंदू विश्वविद्यालय के जंतु विज्ञान विभाग के जीन वैज्ञानी प्रोफेसर ज्ञानेश्वर चौबे ने बताया कि 1 अगस्त 1857 को पंजाब के अजनाला में एक घटना हुई थी लेकिन इसकी सभी जानकारियों को मिटा दिया गया. इस घटना में  मियां मीर जो लाहौर का कैंटोनमेंट एरिया है, वहां हिंदू-मुस्लिम सैनिक तैनात थे. 1857 का जब स्वतंत्रता संग्राम शुरू हुआ तब अंग्रेजों ने डर के चलते इनके हथियार छीन लिए थे. वहां भी चिंगारी भड़की और सैनिकों ने अंग्रेजों को मारकर 26वीं मूल बंगाल इन्फैंट्री बटालियन के सैनिक वापस जाने के निकल गए.

बीएचयू के जीन विज्ञानी प्रोफेसर ज्ञानेश्वर चौबे

प्रोफेसर ज्ञानेश्वर चौबे बताते हैं कि जैसे ही इन सैनिकों ने रावी नदी पार किया, अंग्रेज फौज को ये जानकारी मिल गई और गोलीबारी हुई जिसमें 288 सैनिक जिंदा पकड़े गए. बाकी सैनिक मारे जा चुके थे. पकड़े गए सैनिकों को अंग्रेजों ने एक छोटी जगह ले जाकर बंद कर दिया और अगले दिन से 10-10 का ग्रुप बनाकर गोली मारने का क्रम शुरू किया. इस दौरान इतनी क्रूरता हुई कि जहां इनको बंद किया गया था, वहीं 44 स्वतंत्रता सेनानियों की मौत सांस रुकने की वजह से हो गई और बचे हुए लोगों को अंग्रेजों ने गोली मार दी.

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पंजाब सरकार ने शोधकर्ताओं को सौंपे थे कंकाल

बीएचयू के जीन विज्ञानी ने बताया कि सभी के शव अंग्रेजों ने कुएं में फिकवा दिया और ऊपर से चूना डलवा दिया. इस वीभत्स घटना को दबाने के लिए अंग्रेजों ने वहां एक गुरुद्वारा भी बनवा दिया लेकिन पंजाब के इतिहासकार और खोजी सुरेंद्र कोचर ने 2014 में जानकारी इकट्ठा करके अजनाला के उस गुरुद्वारे और कुंए को खोज निकाला. कुएं की खुदाई हुई तो नर कंकाल निकले. 2014 में पंजाब सरकार ने पंजाब विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं को कंकाल सौंप दिया और फिर इन्हें जांच के लिए CCMB हैदराबाद भेजा गया. इसके बाद वे भी इस काम से जोड़े गए जिसमें बीरबल साहनी इंस्टीट्यूट के शोधकर्ता नीरज राय को भो जोड़ा गया. उन्होंने आगे बताया कि इस शोध में 50 सैंपल डीएनए एनालिसिस और 85 सैंपल आइसोटोप एनालिसिस के लिए इस्तेमाल किए गए.

अंग्रेज कमीशन से मांगी जाएगी मारे गए लोगों की लिस्ट

प्रोफेश्वर ज्ञानेश्वर चौबै ने बताया कि डीएनए विश्लेषण लोगों के आनुवांशिक संबंध को समझने में मदद करता है जबकि आइसोटोप विश्लेषण भोजन की आदतों पर प्रकाश डालता है. इन दोनों शोध विधियों के विश्लेषण से ये बात साफ हो गई कि कुएं में मिले मानव कंकाल पंजाब या पाकिस्तान में रहने वाले लोगों के नहीं, यूपी, बिहार, पश्चिम बंगाल और ओडिसा के थे. उन्होंने बताया कि अब अंग्रेज कमीशन से ये मांग रहेगी कि जिन लोगों को उन्होंने मारा था, उनकी डिटेल लिस्ट दें जिससे उनका अंतिम संस्कार कराया जा सके.

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पीएमओ को भी लिखेंगे पत्र

प्रोफेसर ज्ञानेश्वर चौबे ने कहा है कि इन गुमनाम स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को न्याय दिलाने के लिए ब्रिटिश हाई कमीशन के साथ ही प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) को भी पत्र लिखा जाएगा. हम ब्रिटिश सरकार से इस घटना के लिए माफी मांगने की भी मांग करेंगे. उन्होंने बताया कि जिस समय की ये घटना है, उस सम फेड्रिक कूपर अमृतसर के डिप्टी कमिश्नर थे. कूपर ने ही ये हत्याएं करवाई थीं. सब कुछ उसी अंग्रेज अधिकारी के नेतृत्व में हुआ था और उसने इसका उल्लेख अपनी किताब में भी कर दिया लेकिन घटनास्थल का जिक्र नहीं किया था.

 

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