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विपक्षी इंडिया गठबंधन की मंगलवार को नई दिल्ली में हुई बैठक के दौरान ममता बनर्जी ने मल्लिकार्जुन खड़गे को गठबंधन का प्रधानमंत्री चेहरा बनाए जाने का प्रस्ताव रखा. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने बनर्जी के इस प्रस्ताव का समर्थन भी किया.
लेकिन जब खड़गे से इस बारे में पूछा गया तो उन्होंने दोटूक कहा कि पहले 2024 का चुनाव जीतने दीजिए. पीएम चेहरे पर बाद में विचार किया जाएगा. ऐसे में विपक्षी गठबंधन के प्रधानमंत्री उम्मीदवार के तौर पर मल्लिकार्जुन खड़गे की ताकत, उनकी कमजोरी और संभावित चुनौतियों को जान लेना जरूरी है क्योंकि अगर वे आधिकारिक तौर पर विपक्षी गठबंधन के पीएम उम्मीदवार बनते हैं तो उनका मुकाबला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से होगा.
मल्लिकार्जुन खड़गे का SWOT (Strength, Weakness, Opportunity and Threats) एनालिसिस...
- स्ट्रेंथ (ताकत)
देश के सबसे बड़े दलित नेताओं में से एक हैं. उनका संगठनात्मक और प्रशासनिक अनुभव बहुत है. वह लगातार 10 बार चुनाव जीत चुके हैं. उन्हें गांधी परिवार का करीबी माना जाता है. गांधी परिवार का उन पर अटूट भरोसा है. इतना ही नहीं, वह दक्षिण भारत में कांग्रेस के सबसे बड़े नेताओं में से एक हैं. साथ ही उन्हें आठ भाषाओं की जानकारी है और हिंदी धाराप्रवाह बोलते हैं.
- वीकनेस (कमजोरी)
मल्लिकार्जु खड़गे का अपने क्षेत्र कर्नाटक के गुलबर्गा के बाहर कोई चुनावी आधार नहीं है. वह 2019 चुनाव में अपनी लोकसभा सीट हार चुके हैं. वह कोई करिश्माई नेता भी नहीं है. इसके अलावा राजनीति में उम्र को बहुत बड़ा फैक्टर माना जाता है. लेकिन यह फैक्टर उनके पक्ष में जाता नहीं दिख रहा क्योंकि उनकी उम्र 81 साल है. वहीं, कांग्रेस के अध्यक्ष के तौर पर उन्हें गांधी परिवार की कठपुतली भी कहा जाता है.
-अपॉर्च्युनिटी (अवसर)
विपक्षी गठबंधन के पीएम चेहरे के तौर पर कई चीजें उनके पक्ष में जाती दिख रही हैं. जैसे- लगभग सभी विपक्षी पार्टियों का उन्हें समर्थन मिल सकता है. वह डार्क हॉर्स के तौर पर भी उभरकर सामने आ सकते हैं. इंडिया गठबंधन के लिए वह दलित वोट बटोरने में मदद कर सकते हैं. वहीं, गांधी परिवार पर परिवारवाद का आरोप लगाने वाली बीजेपी खड़गे पर इस तरह का आरोप नहीं लगा सकती.
- थ्रेट (चुनौती)
हालांकि, खड़गे के समक्ष कई चुनौतियां भी हैं. सबसे बड़ी चुनौती ये है कि उनका खुद का कोई मजबूत वोटबैंक नहीं है. एक चुनौती ये भी है कि कांग्रेस पार्टी में अपने समानांतर किसी भी ताकत के उभरने को पसंद नहीं करेगी. हो सकता है कि कांग्रेस विरोधी पार्टियां खड़गे का समर्थन नहीं करे.
किसे मिलता है दलितों का वोट?
बीते पांच लोकसभा चुनाव के नतीजों पर गौर करें तो पता चलेगा कि दलित वोट अब धीरे-धीरे बीजेपी की तरफ शिफ्ट हो रहा है. 2014 और 2019 के चुनाव में बीजेपी को कांग्रेस की तुलना में दलितों का वोट ज्यादा मिला. जबकि इसके पहले तक दलित कांग्रेस को वोट करते थे.
देशभर में 84 सीटें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं. 2019 में बीजेपी ने इनमें से 46 सीटों पर जीत दर्ज की थी जबकि कांग्रेस छह सीटें ही जीत सकी थी.
4 प्वॉइंट में समझें खड़गे का पूरा सफर
मल्लिकार्जुन खड़गे का जन्म 21 जुलाई 1942 को कर्नाटक के बीदर जिले में हुआ था. उन्होंने गुलबर्ग के नूतन विद्यालय से पढ़ाई की. वहीं के सरकारी कॉलेज से कानून की डिग्री ली. वकालत की प्रैक्टिस के दौरान मजदूरों के हक के लिए कई मुकदमे लड़े.
वह कॉलेज में मजदूर आंदोलन से जुड़े रहे. छात्र संघ के महासचिव बने. 1969 में कांग्रेस से जुड़े और उसी साल गुलबर्ग कांग्रेस के जिला अध्यक्ष बने. 1972 में पहला चुनाव लड़ा. वो 8 बार विधायक और 2 बार लोकसभा सांसद रहे हैं. फिलहाल राज्यसभा में विपक्ष के नेता हैं.
उन्होंने 13 मई 1968 को उन्होंने राधाबाई से शादी की. दोनों की तीन बेटियां और दो बेटे हैं. उनके एक बेटे प्रियंक खड़गे कर्नाटक सरकार में मंत्री भी रहे हैं.
2019 के लोकसभा चुनाव के समय एफिडेविट में खड़गे ने बताया था कि उनके पास 15.77 करोड़ रुपये की संपत्ति है. उनपर एक भी क्रिमिनल केस दर्ज नहीं है.