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'गंदा धर्म', ईदगाह और इफ्तार पार्टी... ममता से लेकर अखिलेश और नीतीश तक, किसे मिलेगी मुस्लिम वोटों की ईदी?

कांग्रेस जो यूपी में बेहद कमजोर हालत में है, वहां संभव है कि कांग्रेस दलित और मुस्लिम के गणित पर खुद आगे मजबूत होना चाहे. ऐसे में पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक यानी पीडीए वाला फॉर्मूला जो अखिलेश यादव लेकर चलते हैं, उसी में कटाव हो सकता है. संभव है कि इसीलिए अखिलेश मुस्लिम वोट की ईदी अपने साथ चाहेंगे.

किसे मिलेगी मुस्लिम वोटों की ईदी? (फोटो: PTI) किसे मिलेगी मुस्लिम वोटों की ईदी? (फोटो: PTI)
आजतक ब्यूरो
  • कोलकाता/लखनऊ/पटना,
  • 31 मार्च 2025,
  • अपडेटेड 6:45 AM IST

आज ईद का त्योहार है. ईद के दिन पर मित्रों और संबंधियों को दी जानेवाली सौगात को 'ईदी' कहा जाता है. आज बात मुस्लिम वोट वाली ईदी की तलाश करती सियासत की करेंगे. 2025 यानी इसी साल होने वाले चुनाव में बिहार के 18 प्रतिशत मुस्लिम वोटों की 'ईदी' की चाहत में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार नमाजियों के बीच पहुंचते हैं. 2026 यानी अब से करीब 11 से 12 महीने बाद पश्चिम बंगाल में होने वाले विधानसभा चुनाव में हर दस में से तीन मुस्लिम वोटों वाली 'ईदी' की चाहत में ममता बनर्जी भी ईद की नमाज के बीच से मुस्लिमों को संबोधित करती हैं.

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वो जो बयान देती हैं, उसका संबंध सिर्फ वोट की सियासी ईदी से है. इसी तरह तीसरा अहम चुनाव देश में 2027 में उत्तर प्रदेश विधानसभा का होना है, जहां लखनऊ के ईदगाह मैदान में अखिलेश यादव पहुंचते हैं. उत्तर प्रदेश में हर पांच वोटर में एक वोट मुस्लिम का है. क्या अखिलेश यादव को 2027 में वोट की ईदी मिलेगी? 

ममता ने किसे कहा 'गंदा धर्म'?

शुरुआत पश्चिम बंगाल से करेंगे, जहां आरोप लग रहा है कि मुस्लिमों के बीच मु्ख्यमंत्री ममता बनर्जी ने हिंदू धर्म को 'गंदा धर्म' कहा. महाकुंभ को 'मृत्युकुंभ' कहने के बाद क्या ममता बनर्जी ने हिंदू धर्म को 'गंदा धर्म' कहा है? मीठी सेवइयों के त्योहार ईद के दिन सियासत में क्या वोट की ईदी की चाहत ने कड़वाहट वाला बयान घोल दिया? 

यह भी पढ़ें: ममता बोलीं, बीजेपी ने 'गंदा धर्म' बनाया, BJP नेताओं ने किया पलटवार

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कोलकाता में मुस्लिम नागरिकों के बीच ईद का त्योहार मनाने पहुंचीं ममता बनर्जी ने जो बयान दिया उससे सवाल खड़ा होता है कि आखिर ममता बनर्जी ने 'गंदा धर्म' किसे कहा? बीजेपी के आरोप पर तृणमूल कांग्रेस का दावा सुनकर लगेगा कि क्या बीजेपी वालों का हिंदू धर्म अलग है और टीएमसी का हिंदू धर्म अलग?

ममता बनर्जी के लिए आसान नहीं होगा 2026 का चुनाव

धर्म को राजनीति के मुताबिक अलग-अलग करने के पीछे वजह क्या है? क्या ममता बनर्जी इसलिए मुस्लिम वोट पर ज्यादा ध्यान दे रही हैं क्योंकि 2011 से सत्ता में लगातार काबिज ममता बनर्जी के लिए अबकी 2026 का चुनाव बहुत आसान नहीं होगा, जैसे 2021 तक रहा.

दो विधानसभा चुनावों के बीच ममता बनर्जी का हिंदू वोट 4 फीसदी घटा है और बीजेपी का हिंदू वोट 38 फीसदी बढ़ा है. लेकिन इन्हीं दो चुनाव के बीच ममता बनर्जी की पार्टी का मुस्लिम वोट 24 फीसदी बढ़ जाता है. 

ईदगाह पहुंचे अखिलेश यादव

वोट वाली ईदी तो राजनीति के ईदगाह में समाजवादी पार्टी को जमकर मिलती आई हैं लेकिन अभी अखिलेश यादव यही चाहते होंगे जो मुस्लिम वोट ज्यादातर उन्हें मिल रहा है, उसको बांधकर रखें क्योंकि बीएसपी से मुस्लिम वोट छिटका है. लेकिन मुस्लिम वोटर का कुछ हिस्सा चंद्रशेखर आजाद को, ओवैसी की पार्टी को या मजबूत निर्दलीय उम्मीदवारों के हिस्से में चला जाता है. ऐसे में समाजवादी पार्टी चाहती है कि ये वोट उसका छिटकने ना पाए क्या इसीलिए अखिलेश यादव को साल भर ईद की सेवइयों का इंतजार रहता है.

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राजनीति में मुस्लिम वोट की ईदी अल्पसंख्यक वोटर हमेशा से अखिलेश यादव को देते आए हैं. फिर भी क्या समाजवादी पार्टी को ये लगता है कि मुस्लिम वोट का जो जुड़ाव अभी ऐतिहासिक रूप से जुड़ा है, वो कांग्रेस के दांव से अलग हो सकता है? 

अखिलेश को मिलता रहा है 70 प्रतिशत मुस्लिम वोटर्स का साथ

ईद तो शांति से उत्तर प्रदेश में बीत गई लेकिन अखिलेश यादव ने एक बयान दिया जिसका सियासी मकसद ये बताना है कि मुस्लिमों की तरह उन्हें भी प्रशासन की तरफ से बंदिशों का सामना करना पड़ा है. अखिलेश यादव इस तरह उत्तर प्रदेश में हर पांच वोटर में एक मतदाता की ताकत वाले मुस्लिम वोट से अपना जुड़ाव दिखाना चाहते हैं लेकिन क्यों, जबकि उन्हें 70 फीसदी तक मुस्लिम लंबे वक्त से वोट देते आ रहे हैं.

लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी-कांग्रेस साथ चुनाव लड़े लेकिन उसके बाद कई मुद्दों पर दोनों दलों का स्टैंड अलग रहा है. 2027 में भले अभी वक्त है लेकिन अखिलेश यादव जानते हैं कि अगर कांग्रेस अलग होकर लड़ी तो मुस्लिम वोट बंटेगा. शायद इसीलिए वोट की ईदी पर ईद के दिन वो पहले की ही तरह ईदगाह मैदान पहुंचे. 

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कैसे घटा और फिर बढ़ा सपा का मुस्लिम वोट?

अगर आंकड़ें देखें तो 1996 और 1998 के लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी को 70 फीसदी तक मुस्लिमों ने वोट किया यानी तब मुस्लिमों की पहली पसंद समाजवादी पार्टी रही. लेकिन 2009 के लोकसभा चुनाव से पहले मुलायम सिंह ने कल्याण सिंह से हाथ मिला लिया. कट्टर हिंदुत्व छवि वाले कल्याण सिंह के मुलायम सिंह के साथ आने से मुस्लिम वोट छिटक गया और घटकर 30 फीसदी तक आ गया. कांग्रेस को 25 फीसदी मुस्लिम वोट मिले, जिसकी वजह से लोकसभा में कांग्रेस की सीट भी 9 से बढ़कर 21 हो गई थी और एसपी की घटकर 35 से 23 हो गई थी.

2014 में एसपी को 58 प्रतिशत और कांग्रेस को 11 फीसदी मुस्लिम वोट मिले थे. 2019 में एसपी-बीएसपी और आरएलडी के महागठबंधन को 74 फीसदी वोट मिले. कांग्रेस को 15 फीसदी मुस्लिम वोट मिले. 2024 में कांग्रेस और एसपी एकसाथ चुनाव लड़े और दोनो पार्टियों को मिलाकर 92 फीसदी मुस्लिम वोट मिले. 

कांग्रेस जो यूपी में बेहद कमजोर हालत में है, वहां संभव है कि कांग्रेस दलित और मुस्लिम के गणित पर खुद आगे मजबूत होना चाहे. ऐसे में पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक यानी पीडीए वाला फॉर्मूला जो अखिलेश यादव लेकर चलते हैं, उसी में कटाव हो सकता है. संभव है कि इसीलिए अखिलेश मुस्लिम वोट की ईदी अपने साथ चाहेंगे.

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नीतीश को भी मुस्लिम वोट की ईदी की तलाश  

वोट की ईदी नीतीश कुमार को भी बिहार में चाहिए, जहां इसी साल अक्टूबर-नवंबर में चुनाव हो जाना है. लेकिन मुस्लिम वोट की ईदी नीतीश कुमार शायद तभी पाएंगे जब वो इस हाथ दे, उस हाथ ले के तराजू पर वक्फ बिल को लेकर अपना स्टैंड साफ कर पाएंगे. जहां आज नीतीश कुमार ने केंद्र सरकार के सामने वक्फ बिल पर शर्तें लागू वाला मोड ऑन कर दिया है, ऐसा सूत्र बताते हैं तो क्या नीतीश वक्फ पर पलट सकते हैं?

यह भी पढ़ें: बिहार में क्या नीतीश कुमार होंगे NDA के सीएम कैंडिडेट, अमित शाह के बयान को क्या समझा जाए?

वक्फ बिल को लेकर साफ करना होगा रुख

रमजान के महीने में खुद इफ्तार देने से लेकर दूसरों की इफ्तार में जमकर पहुंचे नीतीश कुमार ईद के दिन भी नमाजियों के बीच मौजूद होते हैं. इस बीच अहम ये है कि जब वक्फ बिल के पेश होने की तारीख तय मानी जा रही है. कहा जा रहा है कि वक्फ संशोधन बिल दो अप्रैल को लोकसभा में पेश हो सकता है. तब क्या ईद के दिन ही वोट की ईदी की चिंता करते नीतीश कुमार ने कुछ शर्तें सुझाव के तौर पर रख दी हैं.

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सूत्रों के हवाले से खबर है कि वक्फ बिल को लेकर जेडीयू ने सरकार से कहा कि नए कानून को पिछली तारीख से लागू नहीं करना चाहिए. यानी जेडीयू चाहती है कि मौजूदा पुरानी मस्जिद, दरगाह या अन्य मुस्लिम धार्मिक स्थान से साथ कोई छेड़छाड़ न हो. वक्फ कानून में इसका स्पष्ट प्रावधान होना चाहिए. सूत्रों के मुताबिक जेडीयू ने ये भी कहा था कि जमीन राज्यों का विषय है, लिहाजा वक्फ की जमीन के बारे में किसी भी फैसले में राज्यों की स्पष्ट राय भी ली जानी चाहिए. वक्फ बिल पर मुस्लिम संगठन ही नहीं बल्कि विपक्षी दलों की निगाह भी नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू पर लगी है.

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