
मणिपुर में जारी हिंसा थमने का नाम नहीं ले रही. वहां स्थिति अभी भी तनावपूर्ण बनी हुई है. बिष्णुपुर में प्रदर्शनकारियों और सुरक्षाबलों के बीच हिंसक झड़प के बाद अब राजधानी इम्फाल में भी प्रदर्शन हो रहे हैं. यहां प्रदर्शनकारियों को तितर-बितर करने के लिए पुलिस ने आंसू गैस के गोले दागे. प्रशासन ने इम्फाल पूर्व और इम्फाल पश्चिम में कर्फ्यू में ढील तुरंत प्रभाव से वापस ले ली है.
इम्फाल पश्चिम जिला की ओर से जारी आदेश में कहा गया कि जिले में कानून एवं व्यवस्था बिगड़ने की आशंका है. किसी भी अप्रिय घटना से बचाव के लिए एहतियात के तौर पर जिले से तुरंत प्रभाव से कर्फ्यू में दी गई ढील वापस ले ली गई है.
हालांकि, यह साफ किया गया कि बिष्णुपुर में लोगों पर गोलीबारी नहीं की गई. सिर्फ भीड़ को तितर-बितर करने के लिए पुलिस ने आंसू गैस के गोले दागे गए थे.
इंडिया टुडे/आज तक की टीम मणिपुर के हिंसाग्रस्त इलाकों के बीच से रिपोर्टिंग कर रहा है. बिष्णुपुर में सशस्त्रबलों और मैतेई प्रदर्शनकारियों के बीच हिंसक झड़प हुई. इस झड़प में 17 लोग घायल हो गए. भीड़ को तितर-बितर करने के लिए सशस्त्रबलों और मणिपुर पुलिस ने भारी गोलीबारी की. भारी गोलीबारी की गई.
इस अफरा तफरी में कई लोग घायल हो गए. दरअसल मैतेई महिलाएं बिष्णुपुर में बफर जोन को पार करना चाहती थीं. लेकिन असम राइफल्स और आरएफ ने उन्हें रोक लिया. मैतेई समुदाय की महिलाएं और पुरुष ने पथराव किया और बफर जोन की तरफ पत्थर फेंके. जब स्थिति हिंसक हुई और भारी गोलीबारी हुई. इलाकों में तनाव बना हुआ है. विष्णुपुर में स्थानीय लोग और पुलिस भारी संख्या में जुटे हुए हैं.
मणिपुर में तीन मई से हिंसा जारी है. इस हिंसा में अब तक 160 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है. जबकि, सैकड़ों घायल हुए हैं.
तीन महीने से जल रहा है मणिपुर
तीन मई को ऑल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन मणिपुर (ATSUM) ने 'आदिवासी एकता मार्च' निकाला. ये रैली चुरचांदपुर के तोरबंग इलाके में निकाली गई.
ये रैली मैतेई समुदाय की अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिए जाने की मांग के खिलाफ निकाली गई थी. मैतेई समुदाय लंबे समय से अनुसूचित जनजाति यानी एसटी का दर्जा देने की मांग हो रही है.
इसी रैली के दौरान आदिवासियों और गैर-आदिवासियों के बीच हिंसक झड़प हो गई. भीड़ को तितर-बितर करने के लिए पुलिस ने आंसू गैस के गोले दागे. शाम तक हालात इतने बिगड़ गए कि सेना और पैरामिलिट्री फोर्स की कंपनियों को वहां तैनात किया गया.
मैतेई क्यों मांग रहे जनजाति का दर्जा?
मणिपुर में मैतेई समुदाय की आबादी 53 फीसदी से ज्यादा है. ये गैर-जनजाति समुदाय है, जिनमें ज्यादातर हिंदू हैं. वहीं, कुकी और नगा की आबादी 40 फीसदी के आसापास है.
राज्य में इतनी बड़ी आबादी होने के बावजूद मैतेई समुदाय सिर्फ घाटी में ही बस सकते हैं. मणिपुर का 90 फीसदी से ज्यादा इलाकी पहाड़ी है. सिर्फ 10 फीसदी ही घाटी है. पहाड़ी इलाकों पर नगा और कुकी समुदाय का तो घाटी में मैतेई का दबदबा है.
मणिपुर में एक कानून है. इसके तहत, घाटी में बसे मैतेई समुदाय के लोग पहाड़ी इलाकों में न बस सकते हैं और न जमीन खरीद सकते हैं. लेकिन पहाड़ी इलाकों में बसे जनजाति समुदाय के कुकी और नगा घाटी में बस भी सकते हैं और जमीन भी खरीद सकते हैं.
पूरा मसला इस बात पर है कि 53 फीसदी से ज्यादा आबादी सिर्फ 10 फीसदी इलाके में रह सकती है, लेकिन 40 फीसदी आबादी का दबदबा 90 फीसदी से ज्यादा इलाके पर है.