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डेढ़ साल से अधिक समय से जातीय हिंसा से प्रभावित मणिपुर में अब राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया है. मणिपुर के मुख्यमंत्री पद से एन बीरेन सिंह ने 9 फरवरी को इस्तीफा दे दिया था. इसके चार दिन बाद ही केंद्र ने मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लागू करने के फैसले पर मुहर लगा दी. गृह मंत्रालय की ओर से इस संबंध में जारी अधिसूचना में कहा गया है कि राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की राय है कि मणिपुर में ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गई है कि राज्य सरकार संविधान के प्रावधानों के मुताबिक नहीं चल सकतीं.
ऐसा 11वीं बार हुआ है जब मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लागू किया गया है. अब सवाल है कि मणिपुर में राष्ट्रपति शासन की नौबत क्यों आई और राष्ट्रपति शासन में प्रशासन कैसे चलता है.
मणिपुर में क्यों आई राष्ट्रपति शासन की नौबत?
मणिपुर में राष्ट्रपति शासन की नौबत आने के पीछे कई कारक हैं. जातीय हिंसा, बीरेन सिंह के इस्तीफे के बाद बीजेपी में किसी एक चेहरे पर आम सहमति नहीं बन पाना वजह हैं ही, एक संवैधानिक संकट भी था.
1- विधानसभा का एक सत्र समाप्त होने के बाद अधिकतम छह महीने के भीतर ही दूसरा सत्र बुलाना होता है. मणिपुर विधानसभा का पिछला सत्र 12 अगस्त को समाप्त हुआ था. पिछले सत्र के बाद छह महीने से अधिक समय गुजर चुका है.
2- मणिपुर विधानसभा का बजट सत्र 10 फरवरी से ही प्रस्तावित था लेकिन इसके शुरू होने से एक दिन पहले मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह ने इस्तीफा दे दिया. सीएम के इस्तीफे के कारण छह महीने के भीतर दूसरा सत्र बुलाने के नियम का पालन नहीं हो सका.
3- सीएम चुनने के लिए बीजेपी ने बैठक पर बैठक की, पार्टी के पूर्वोत्तर प्रभारी संबित पात्रा इम्फाल में दो दिन डेरा डाले रहे लेकिन विधायक दल के नेता के लिए किसी एक नाम पर सहमति नहीं बन सके. संबित पात्रा ने राज्यपाल अजय कुमार भल्ला से 12 घंटे के भीतर दो बार मुलाकात भी की लेकिन विधायक दल के नेता का नाम तय कर सरकार बनाने का दावा पार्टी पेश नहीं कर पाई.
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4- बीजेपी जैसी पार्टी बहुमत में होकर भी मुख्यमंत्री के लिए एक चेहरा नहीं चुन पाई राज्य में राष्ट्रपति शासन की नौबत आ गई तो इसके पीछे जातीय हिंसा वजह है. मणिपुर में मैतेई और कुकी, दोनों ही समुदाय के बीच एक-दूसरे को लेकर विश्वास का संकट गहरा गया है. मैतेई विधायकों को न कूकी सीएम स्वीकार है और ना ही कूकी को मैतेई. यही वजह है कि कूकी संगठन हिंसा की शुरुआत से ही बीरेन सिंह को सीएम पद से हटाने की मांग करते आ रहे थे.
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5- संबित पात्रा ने विधानसभा स्पीकर सत्यव्रत सिंह के साथ ही बीरेन सिंह सरकार में मंत्री रहे विश्वजीत सिंह, खेमचंद और विधायक राधेश्याम, बसंत कुमार सहित कई नेताओं के साथ बैठकें कीं. बीजेपी की कोशिश थी कि किसी ऐसे चेहरे को सीएम की जिम्मेदारी दी जाए जो मैतेई और कूकी, दोनों समाज के साथ ही बीरेन सिंह और सत्यव्रत सिंह के खेमों में भी स्वीकार्य हो.
राष्ट्रपति शासन में कैसे चलता है प्रशासन
-राष्ट्रपति शासन लागू होते ही सरकार की शक्तियां और कार्य के संचालन की जिम्मेदारी राज्यपाल के पास चली जाती है.
-राज्यपाल, राष्ट्रपति के नाम पर राज्य के सचिव की सहायता या राष्ट्रपति की ओर से नियुक्त किए गए किसी सलाहकार की सहायता से शासन चलाते हैं.
-इस अवधि में राज्य की विधानसभा निलंबित रहती है और राष्ट्रपति यह घोषणा कर सकता है कि राज्य विधायिका की शक्तियों का उपयोग संसद करेगी.
-राष्ट्रपति शासन लागू होने के बाद राज्य के विधेयक और बजट प्रस्ताव भी संसद ही पारित करती है.
-संसद को यह अधिकार है कि वह संबंधित राज्य के लिए कानून बनाने की शक्ति राष्ट्रपति या उनकी ओर से नामित किसी अधिकारी को दे सकती है.
-जब संसद नहीं चल रही हो तब राष्ट्रपति, राष्ट्रपति शासन वाले राज्य के लिए कोई अध्यादेश जारी कर सकता है.