
जो तीन बेर खाती थीं, तीन बेर खाती हैं...हिंदी में रीतिकाल के कवि भूषण ने युद्ध के बाद दर-दर भटक रही हैं मुगल महारानियों की जिंदगी बतानी चाही तो उन्होंने एक ही बात को दो बार, दो अलग-अलग अर्थों में कह दिया. ऐसा लिख पाना भले ही कवि की खूबी-खूबसूरती रही हो, लेकिन असल में ये वाकया उस दर्द और टीस को बयां करता है, जब एक रात बसा-बसाया शहर नफरत की आग में जल जाए और बच जाए तो केवल राख, कालिख और इनकी बीच फिर से जीने की जद्दोजहद कर रही जिंदगी.
मणिपुर के हालात इससे अलग नहीं हैं.
किसी मंदिर के परिसर में एक लंबा हॉल है. बाहर से देखो तो अंदर सिर ही सिर नजर आते हैं. निगाहें चेहरों पर पहुंचे तो वहां बेबसी पहले ही दिख जाती है. बेबसी इस बात की, कि 800 लोगों की भीड़ यहां सिर छिपाने के लिए मजबूर है. इनमें पुरुष और महिलाएं दोनों हैं. कपड़े किस हाल में पहुंच चुके हैं, कह नहीं सकते. शरीर मटमैला सा रहता है, किसकने लगा है. लेटने-बैठने को किसी के पास गद्दे-चादर हैं तो किसी को ये भी मयस्सर नहीं, रात गहराती है तो मच्छरों का आतंक सताता है. सबसे बड़ी बात, महिलाओं और पुरुषों को एक ही शौचालय साझा करना पड़ रहा है. लेकिन क्या करें, कहां जाएं, इस परिसर से चेहरा निकाल कर बाहर देखो तो जिस जगह कभी अपना घर था, वह जगह राख हो चुकी है.
ऐसी है राहत शिविरों की हालत
इसी बात को 42 साल की अंगोम शांति जब मीडिया से कहने लगती हैं तो उनका गला रुंध जाता है. अंगोम शांति मणिपुर के बिष्णुपुर जिले में एक अस्थायी राहत शिविर में सैकड़ों अन्य लोगों के बीच पर रहने को मजबूर हैं. वह कहती हैं कि वह बस जीवित बचा ली गई हैं या बच गई हैं, लेकिन राज्य के ये हालात और उसके बाद राहत शिविर की जिंदगी, रोजमर्रा में जो जरूरी होना चाहिए, वह भी यहां नहीं है... पूछा गया क्या तो वह कहती हैं, कम से कम एक बॉथरूम.
दयनीय स्थिति में 800 लोग
थंगजिंग मंदिर और मोइरांग लमखाई के पास राहत शिविरों में बच्चों और बुजुर्गों सहित लगभग 800 लोग बेहद ही दयनीय स्थिति में रह रहे हैं. ये शिविर तीन संगठनों द्वारा चलाए जा रहे हैं, वह पूरी कोशिश कर रहे हैं, लेकिन इतने अधिक लोगों के लिए हर कोशिश वाकई नहीं के बराबर हो जा रही है. कर्फ्यू के कारण भी समस्या हो रही है. यहां रहने वाले परिवार कभी सदाबहार आंगनों, पेड़ों, पशुओं और अन्न भंडार से भरे हुए घरों में रहते थे. अब उनके हिस्से केवल पारंपरिक बांस की चटाइयां हैं, जो फर्श पर बिछी हैं. इन सभी ने चादरें लटका रखी हैं, जो दूसरे परिवारों से उन्हें अलग करती है और उनके लिए निजता की दीवार बन जाती हैं.
लौटने के लिए अब घर नहीं बचा- एक पीड़िता
तीन बच्चों की मां शांति ने कहा, कि "हमारा भविष्य अंधकारमय है. हमारे पास लौटने के लिए कोई घर नहीं है. हमारे घरों को राख में बदल दिया गया है. हमें नहीं पता कि हमारी गलती क्या थी. हम में से ज्यादातर लोग केवल वही कपड़े लेकर भागे जो हमने पहने हुए थे," वह टोरबंग बांग्ला इलाके में रहती थीं जो 'आदिवासी एकजुटता मार्च' के दौरान 3 मई को भड़की सांप्रदायिक हिंसा में सबसे पहले जद में आया था.
शांति एक कम्यूनिटी हॉल में 175 अन्य लोगों के साथ रह रही हैं. इस भीषण गर्मी में वह पसीने से लथपथ हैं और बिजली भी नहीं हैं. पास के ही गेस्ट हाउस में अन्य 365 लोगों को सिर छिपाने की जगह मिली हुई है. जबकि 112 और लोग पास के 'मंडप' में ठहरे हुए हैं. ये सभी गैर आदिवासी हैं.
क्या हुआ था 3 मई को
3 मई की घटना के बारे में बताते हुए, टोरबुंग गोविंदपुर के रहने वाले 72 वर्षीय बीरेन क्षेत्रीमयूम ने कहा, "लगभग 1,000 आदिवासियों ने लाठी और कुछ आग लगाने वाले उपकरणों से लैस होकर हम पर हमला करना शुरू कर दिया. उन्होंने हमारे घरों, दुकानों और हर उस चीज़ में तोड़फोड़ की और आग लगा दी, जो उनके सामने आईं. उन्होंने कहा कि टोरबुंग बांग्ला और टोरबंग गोविंदपुर पर हमले के बाद भीड़ कंगवई और फौगाकचौ की ओर बढ़ी और वहां भी जमकर तोड़-फोड़ की गई.
ये तीन संगठन चला रहे हैं राहत शिविर
जिन राहत शिविरों में वह रह रहे हैं, उन्हें तीन संगठन, बिष्णुपुर लीगल एड सर्विसेज, मताई सोसाइटी और श्री सत्य संगठन चला रहे हैं. उन्हें स्थानीय लोगों से सहायता मिल रही है जो भोजन दान कर रहे हैं, और संगठनों ने पीने योग्य पानी और कुछ चिकित्सा सुविधाओं की व्यवस्था की है. आयोजकों में से एक, सैंतालीस वर्षीय सखीतोम्बी मैब्रम ने सरकार से मदद की कमी की शिकायत की है. उन्होंने कहा, "हमें राज्य प्रशासन से ज्यादा मदद नहीं मिली. स्थानीय विधायक ने हमें पीने का पानी मुहैया कराया. हमारे पास दवाओं की भारी कमी है और बच्चे डायरिया और तेज बुखार की गंभीर समस्याओं का सामना कर रहे हैं."
कोई पूछता है क्या हुआ तो रो पड़ते हैं विस्थापित
विस्थापितों के चेहरों पर तनाव साफ झलक रहा था और उनमें से कई अपनी आपबीती सुनाते हुए रो पड़े. उन्हें नहीं पता कि वह अपने घरों में फिर कभी लौट पाएंगे या नहीं, क्योंकि घर जल चुके हैं और भविष्य अंधेरे में जा चुका है. इस आपाधापी में वे जैसे-तैसे भाग आए, लेकिन उन मवेशियों का क्या, जो उस रात वहीं रह गए. क्या वह भाग पाए, या जल मरे. अगर वह बचे होंगे तो शायद जंगल में भाग चुके होंगे. 3 और 4 मई की ये रात उनके लिए लुटेरी साबित हुई है और उनका सब कुछ लुट गया, जल गया, भस्म हो गया.
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सरकार से भी नाराज हैं पीड़ित
शिविर में जो भी हिंसा प्रभावित लोग मौजूद हैं, उनमें से अधिकांश लोग किसान या छोटे दुकानदार थे. उनमें से कई ने सरकार पर नाराजगी जताई जो उन्हें सुरक्षा नहीं दे सकी. उधर, पुलिस कर्मियों कहना है कि फौगकचौ इखाई व अन्य पहाड़ी इलाकों में पुलिस की गाड़ियों पर भी फायरिंग की गई है. जीपों पर गोलियों के निशान भी मौजूद हैं. उधर, अधिकारियों का कहना है कि मणिपुर में जातीय हिंसा में मरने वालों की संख्या बढ़कर 54 हो गई है, जबकि सूत्र बताते हैं कि मृतकों का आंकड़ा इससे कहीं बड़ा है और 150 से अधिक तो घायल ही हुए हैं.
...हालांकि पटरी पर लौट रही है जिंदगी
इंफाल घाटी में दुकानें और बाजार फिर से खुलने से जीवन थोड़ा बहुत पटरी पर आने लगा है. ऑल ट्राइबल स्टूडेंट यूनियन मणिपुर (एटीएसयूएम) द्वारा अनुसूचित जनजाति (एसटी) के दर्जे की मांग के विरोध में 3 मई को आयोजित 'आदिवासी एकजुटता मार्च' के दौरान मणिपुर के चुराचंदपुर जिले के टोरबुंग क्षेत्र में पहली बार हिंसा भड़की थी. मणिपुर उच्च न्यायालय ने पिछले महीने राज्य सरकार से मेइती समुदाय द्वारा एसटी दर्जे की मांग पर केंद्र को चार सप्ताह के भीतर सिफारिश भेजने के लिए कहा था, जिसके बाद आदिवासियों ने नागा और कुकी सहित मार्च का आयोजन किया था.
ऐसे शुरू हुई हिंसा और बदल गई तस्वीर
पुलिस ने कहा कि टोरबुंग में मार्च के दौरान, एक सशस्त्र भीड़ ने मेइती समुदाय के लोगों पर कथित तौर पर हमला किया, जिसके कारण घाटी के जिलों में जवाबी हमले हुए, जिससे पूरे राज्य में हिंसा भड़क गई. कई स्रोतों ने कहा कि समुदायों के बीच लड़ाई में कई लोग मारे गए और लगभग सौ घायल हो गए. हालांकि पुलिस इसकी पुष्टि करने को तैयार नहीं थी. मैतेई आबादी का लगभग 53 प्रतिशत हिस्सा है और ज्यादातर इंफाल घाटी में रहते हैं. इन जनजातीय में नागा और कुकी शामिल हैं, ये जनसंख्या का 40 प्रतिशत हिस्सा हैं और ज्यादातर पहाड़ी जिलों में रहते हैं.
आज कर्फ्यू में दी जाएगी ढील
मणिपुर के चुराचांदपुर जिले में कर्फ्यू के समय में ढील दी जा रही है. रविवार को सुबह 7 बजे से 10 बजे के बीच कर्फ्यू के समय में ढील दी जाएगी. सीएम एन बीरेन सिंह ने ट्वीट कर कहा कि "चुराचांदपुर जिले में कानून और व्यवस्था की स्थिति में सुधार के साथ और राज्य सरकार और विभिन्न हितधारकों के बीच बातचीत के बाद, मुझे यह बताते हुए खुशी हो रही है कि कर्फ्यू में आंशिक रूप से ढील दी जाएगी" असल में जैसे ही प्रारंभिक हिंसा भड़की थी, राज्य सरकार ने इंफाल पश्चिम, काकचिंग, थौबल, जिरिबाम, बिष्णुपुर, चुराचंदपुर, कांगपोकपी और तेंगनौपाल जिलों में कर्फ्यू लगा दिया था. कर्फ्यू के अलावा, पहले इंटरनेट सेवाएं बंद कर दी गईं, फिर मौजूदा स्थिति को देखते हुए ब्रॉडबैंड भी बंद कर दिया गया था.
सीएम धामी ने शोध छात्रा की वापसी के दिए आदेश
मणिपुर में उथल-पुथल के बीच, उत्तराखंड सीएम पुष्कर सिंह धामी ने देहरादून प्रशासन को इशिता सक्सेना को सुरक्षित वापस लाने का आदेश दिया है. इशिता सक्सेना केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, इम्फाल में एक शोध छात्रा हैं और वर्तमान में मणिपुर में गंभीर स्थिति में फंस गई हैं. उन्होंने अपने बचाव के लिए सहायता मांग की है. देहरादून डीएम ने कहा, रविवार को इशिता देहरादून लौटेंगी.
ट्रक में प्रदर्शनकारियों के होने की फैली अफवाह
मणिपुर में मौजूदा तनावपूर्ण स्थिति को देखते हुए असम राइफल्स एक्टिव है और इधर-उधर फैल रही झूठी अफवाहों से भी निपट रही है. असल में तनाव वाले इस हालात में झूठी अफवाहें व्याप्त हैं जो लोगों के बीच असुरक्षा को बढ़ावा दे रही हैं. 5 मई 2023 को मणिपुर में तनावपूर्ण स्थिति के बीच, असम राइफल्स को जिरिबाम शहर की ओर एक ट्रक में हथियारबंद लोगों के भरे होने की जानकारी मिली. अफवाह थी कि इसमें प्रदर्शनकारी हैं और कुछ प्लान कर रहे हैं. इंटरनल सिक्यूरिटी कॉलम (बल) ने तुरंत इस पर कार्रवाई की.
जान बचाने के लिए ट्रक में छिपे थे दिहाड़ी मजदूर
सामने आया है कि एक संदिग्ध ट्रक को जिरिबाम-तमेंगलोंग सीमा पर रोका गया जिसमें 51 स्थानीय लोग छिपे हुए थे. उनकी जांच में सामने आया कि वह नागरिक दिहाड़ी मजदूर और असम के निवासी थे जो मणिपुर में काम कर रहे थे और तनावपूर्ण सुरक्षा स्थिति से बचने की कोशिश कर रहे थे. सभी निर्दोष नागरिकों को असम राइफल्स के जवानों द्वारा सुरक्षित रूप से कछार पहुंचाया गया है. अगरतला सेक्टर में की गई त्वरित कार्रवाई से असम राइफल्स ने झूठी अफवाहों पर काबू पाया और नागरिकों को बचाया. सुरक्षा बल सक्रिय रूप से शांति और सद्भाव बनाए रख रहे हैं. मणिपुर के जिरिबाम जिले की ही तरह राज्य में झूठी अफवाहों को रोकने के लिए सभी कदम उठा रहे हैं.