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कैसे मणिपुर हिंसा से 2 फुटबॉल खिलाड़ियों का करियर दांव पर लगा!

देश का पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर तीन मई को अचानक जल उठा था. मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिए जाने की मांग के विरोध में निकाली गई रैली में हिंसा भड़क गई थी. अब तक 9 हजार से ज्यादा लोगों को विस्थापित किया जा चुका है.

फुटबॉल खिलाड़ी फुटबॉल खिलाड़ी
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 13 मई 2023,
  • अपडेटेड 3:09 PM IST

हिंसा की आग में जलते हुए मणिपुर को एक हफ्ते से ज्यादा हो गया है. लेकिन अभी तक राज्य में पूरी तरह से शांति बहाल नहीं हो पाई है. हिंसा में राज्य के दो युवा फुटबॉल खिलाड़ियों का करियर भी खतरे में पड़ गया है. ये दोनों खिलाड़ी अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं.

भारत के लिए खेलने वाले ये दोनों खिलाड़ी कोन्शाम चिंगलेनसाना सिंह और थॉन्गकोसेम सेम्बोई हाओकिप हैं. इनमें से एक चिंगलेनसाना सिंह मेतेई समुदाय से हैं, जो कुकी क्षेत्र में रहते हैं जबकि सेम्बोई हाओकिप कुकी समुदाय से ताल्लुक रखते हैं और मेतेई बाहुल्य क्षेत्र में रहते हैं. इस हिंसा की वजह से दोनों खिलाड़ियों को अपने घर छोड़ने पड़े और किराए के घरों में रहने को मजबूर होना पड़ा. 

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चिंगलेनसाना सिंह इंडियन सुपर लीग में हैदराबाद एफसी की ओर से खेलते हैं. जब उन्हें मणिपुर हिंसा की खबर मिली तो वह अपनी टीम के साथ थे. उन्हें घर पहुंचने में दिक्कतों का सामना करना पड़ा. सिंह ने कहा कि उन्हें 15 मई को इंडियन नेशनल फुटबॉल टीम कैंप में शामिल होना था. लेकिन हिंसा की वजह से उन्होंने घर पर ही रुकने का फैसला किया. 

ऑल इंडिया फुटबॉल फेडरेशन के मुताबिक, सिंह ने अपने हेड कोच इगोर स्टिमैक को इस समस्या के बारे में बताया था. उन्होंने कहा था कि वह जल्द ही टीम से जुड़ेंगे. वहीं, ईस्ट बंगाल एफसी के लिए खेलने वाले सेम्बोई हाओकिप को भी हिंसा की वजह से अपने परिवार के साथ रहना पड़ा.

कैसे शुरू हुई हिंसा?

- तीन मई को ऑल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन मणिपुर (ATSUM) ने 'आदिवासी एकता मार्च' निकाला. ये रैली चुरचांदपुर के तोरबंग इलाके में निकाली गई.

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- इसी रैली के दौरान आदिवासियों और गैर-आदिवासियों के बीच हिंसक झड़प हो गई. भीड़ को तितर-बितर करने के लिए पुलिस ने आंसू गैस के गोले दागे.

- तीन मई की शाम तक हालात इतने बिगड़ गए कि राज्य सरकार ने केंद्र से मदद मांगी. बाद में सेना और पैरामिलिट्री फोर्स की कंपनियों को वहां तैनात किया गया.

रैली क्यों निकाली गई थी?

- ये रैली मैतेई समुदाय की अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिए जाने की मांग के खिलाफ निकाली गई थी. मैतेई समुदाय लंबे समय से अनुसूचित जनजाति यानी एसटी का दर्जा देने की मांग हो रही है.

- पिछले महीने मणिपुर हाईकोर्ट के एक्टिंग चीफ जस्टिस एमवी मुरलीधरन ने एक आदेश दिया था. इसमें राज्य सरकार को मैतेई समुदाय को जनजाति का दर्जा दिए जाने की मांग पर विचार करने को कहा था. इसके लिए हाईकोर्ट ने सरकार को चार हफ्ते का समय दिया है.

- मणिपुर हाईकोर्ट के इस आदेश के बाद नगा और कुकी जनजाति समुदाय भड़क गए. उन्होंने 3 मई को आदिवासी एकता मार्च निकाला.

मैतेई क्यों मांग रहे जनजाति का दर्जा?

- मणिपुर में मैतेई समुदाय की आबादी 53 फीसदी से ज्यादा है. ये गैर-जनजाति समुदाय है, जिनमें ज्यादातर हिंदू हैं. वहीं, कुकी और नगा की आबादी 40 फीसदी के आसापास है.

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- राज्य में इतनी बड़ी आबादी होने के बावजूद मैतेई समुदाय सिर्फ घाटी में ही बस सकते हैं. मणिपुर का 90 फीसदी से ज्यादा इलाकी पहाड़ी है. सिर्फ 10 फीसदी ही घाटी है. पहाड़ी इलाकों पर नगा और कुकी समुदाय का तो घाटी में मैतेई का दबदबा है.

- मणिपुर में एक कानून है. इसके तहत, घाटी में बसे मैतेई समुदाय के लोग पहाड़ी इलाकों में न बस सकते हैं और न जमीन खरीद सकते हैं. लेकिन पहाड़ी इलाकों में बसे जनजाति समुदाय के कुकी और नगा घाटी में बस भी सकते हैं और जमीन भी खरीद सकते हैं.

- पूरा मसला इस बात पर है कि 53 फीसदी से ज्यादा आबादी सिर्फ 10 फीसदी इलाके में रह सकती है, लेकिन 40 फीसदी आबादी का दबदबा 90 फीसदी से ज्यादा इलाके पर है.

(रिपोर्ट: अनिर्बान सिन्हा रॉय)

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