
राजनैतिक आरोप-प्रत्यारोप के बीच मणिपुर की मौजूदा हालत के लिये जिम्मेदार कौन है? ये जानना बेहद जरूरी है. खासकर तब, जब कभी एक-दूसरे के खिलाफ रहे नागा और कुकी एक हो गए और मिलकर मैतेई समुदाय के खिलाफ लड़ रहे हैं. बीजेपी सांसद और कैबिनेट मंत्री ने तो इसके लिए पिछली कांग्रेस सरकार को जिम्मेदार ठहराया है. इतिहास में जाकर देखें तो मैतेई राजाओं ने ही कुकी को मणिपुर की पहाड़ियों में बसाया था, जिससे कि नागाओं के हमले में एक ढाल की तरह काम कर सकें. कहते हैं कि नगालैंड की इनसरजैंसी को खत्म करने में कुकी का काफी योगदान रहा.
कुकी समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा मिला है, लेकिन मैतेई अनूसूचित जनजाति का दर्जा मांग रहे हैं. नागा और कुकी का साफ मानना है कि सारी विकास की मलाई मूल निवासी मैतेई ले लेते हैं. कुकी ज्यादातर म्यांमार से आए हैं. मणिपुर के चीफ मिनिस्टर ने मौजूदा हालात के लिए म्यांमार से घुसपैठ और अवैध हथियारों को ही जिम्मेदार ठहराया है. करीब 200 सालों से कुकी को स्टेट का संरक्षण मिला. कई इतिहासकारों का मानना है कि अंग्रेज नागाओं के खिलाफ कुकी को लाए थे.
नागा अंग्रेजों पर हमले करते तो उसका बचाव यही कुकी करते थे. बाद में अधिकतर ने इसाई धर्म स्वीकार कर लिया जिसका फायदा मिला और एसटी स्टेटस भी मिला. जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी में स्पेशल सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ नॉर्थ ईस्ट इंडिया में असिसटेंट प्रफेसर खुरीजम बिजॉयकुमार सिंह ने बताया कि मणिपुर की हिंसा सिर्फ दो ग्रुप का ही झगड़ा नहीं है, बल्कि ये कई समुदायों से भी बहुत गहरे जुड़ा है. ये कई दशकों से जुड़ी समस्या है. अभी तक सिर्फ सतह पर ही देखी जा रही है.
ऐसे भारत में जाति बनती है जनजाति
साल 2002 में केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में कैबिनेट मे फैसला हुआ कि जब तक किसी राज्य सरकार या यूटी से किसी जाति को जानजाति में शामिल करने का रिकमेंडेशन नहीं आता तब तक नहीं किया जाएगा. मणिपुर के मामले में राज्य सरकार को मणिपुर हिल कमेटी की मंजूरी लेना भी जरूरी है. राज्य सरकार अगर रिकमेंड करती है तो ये पहले सेंसस कमिशन ऑफ इंडिया के रजिस्टार जनरल के पास ये प्रस्ताव जाएगा. ये दोनों ही होम मिनिस्ट्री में आते हैं. रजिस्टार जनरल अपनी रिकमेंडेशन नेशनल कमीशन फॉर शिड्यूल ट्राइब को भेजेगा, जो एक विशेषज्ञ समिति बनाएगा.
इस विशेषज्ञ कमेटी में सोसियोलॉजिस्ट, एंथ्रोपोलोजिस्ट और दूसरे विषयों के जानकर हर पहलू पर विचार करके जनसुनवाई करेगी, फिर रिपोर्ट तैयार करके जनजातीय मंत्रालय को भेजा जाएगा. मंत्रालय विचार के बाद एक कैबिनेट नोट तैयार करेगा और फिर मामला कैबिनेट को जाएगा. कैबिनेट विचार करके उचित समझती है तो संसद में प्रस्ताव लाएगी. संसद से प्रस्ताव पास करके अगर राष्ट्रपति मंजूरी देते तो कानून बनेगा तब वो जाति शेडयूल ट्राइब में शामिल होगी.
मणिपुर में उठी राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग, मैतेई समुदाय की अपील- कुकी से बातचीत न करे केंद्र
जनजातियों पर बनी क्या कहती है लोकुर समिति
साल 1965 में अनुसूचित जातियों की सूची में समुदायों को शामिल करने की समीक्षा के लिए लोकुर समिति का गठन हुआ, तब भी आशचर्यजनक रूप से मैतेई का उल्लेख नही मिलता है. हालांकि मणिपुर में खोनजाई, नागा, मारिंग्स और मिजोस जैसी जनजातियों को अनुसूचित जनजाति के रूप में अनुशंसित किया गया था. कहीं-कहीं पर उल्लेख मिलता है कि साल 1949 में भारत में विलय से पहले मैतेई जनजाति माने जाते थे.
मैतेई-कुकी में ST स्टेटस पर झगड़े की असल वजह
मौजूदा झगड़े की वजह असल में जॉब और एजुकेशन में मिलने वाला रिजर्वेशन है. वहीं, जनजाति की जमीन को सुरक्षा मिलती है जिसे कोई दूसरा खरीद नहीं सकता और प्रीवेंशन ऑफ एट्रोसिटीज एक्ट के तहत मजबूत कानूनी कवच भी. जनजातियों को होने वाली कमाई इनकम टैक्स फ्री होगी. मणिपुर का 90 फीसदी भूभाग पहाड़ी है जहां कुकी बसते हैं. वहां गैर जनजाति को जमीन खरीदने की इजाजत नहीं है. बाकी 10 फीसदी भूभाग पर मैतेई और दूसरी जाति बसी है.
मैतेई को शेडयूल ट्राइब का दर्जा नहीं मिले, इसे लेकर विवाद बना हुआ है. कुकी मैदान में आकर जमीन खरीद सकते हैं. बस सकते हैं. लेकिन मैतेई पहाड़ी एरिया में नहीं जा सकते. लिहाजा, वो आर-पार की लड़ाई लड़ रहे हैं. पूर्वोत्तर में 19 जगहों से अफस्पा हटा लिया गया है. पूर्वोत्तर के 7 राज्यों में 4 में बीजेपी की सरकार है. कुकी समुदाय से और सुप्रीम कोर्ट के वकील SiamPhai ने कहा कि जब दोनों समुदायों को ही आरोपी और पीड़ित बताया जा रहा है तो फिर इनके एक साथ रहने का क्या अर्थ, इससे पहले कि दोनों एक दूसरे को खत्म ही कर लें.
संविधान में एसटी वर्ग में ये है प्रावधान
इसके तहत सरकार की तरफ से नोटिफिकेशन होता है और जो विभिन्न शेड्यूल के तहत चलता रहता है और समय-समय इसमें बदलाव भी होता रहता है. चलता रहता है. संविधान के जानकार और सुप्रीम कोर्ट के वकील पीएस शारदा बताते हैं कि आर्टिकल 46, 342, 244 क्लाज 1, में एसटी के कल्याण को लेकर कई प्रोविजन हैं. आर्टिकल 338 ए में नेशनल कमीशन फॉर शेडूयल ट्राइब भी होती है जो इन सभी को रेगुलेट करने का काम करती है.
आर्टिकल 371 सी में स्पेशल प्रोविजन फॉर मणिपुर भी है. 5 शेडयूल ऑफ कंस्टीट्यूशन में इनके बारे में कवर्ड है. साल 1971 में एक्ट आया था तक एडवाइजरी काउंसिल के जरिए गवर्नर सलाह करके डील करते थे फिर ट्राइब एडवाइजरी काउँसिल का नाम बदलकर अटोनॉमस डिस्टिक्ट काउंसिल का नाम दिया. नागा और कुकी की जनसंख्या 50 प्रतिशत है. मैतेई ने हाईकोर्ट में बैनिफिट मांगा कि हम भी ट्राइबल हैं. फिर विरोध प्रदर्शन तेज हो गया. नेशनल कमीशन फॉर शेडयूल ट्राइब्स जैसी एजेंसियों के तहत आर्टिकल 46 में रेगुलेट किया जाता है, इनके इकोनॉमिक और दूसरे वेलफेयर के लिये सरकार को निर्देश दिया गया है. कुछ इस तरह की पावर सरकार को मिली है. आर्टिकल 342 बताता है कि शेडयूल ड्राइव क्या होती है. ड्राइव के अंदर भी कौन से ग्रुप हैं- कौन सी कास्ट हैं. आर्टिकल 244 क्लाज 1 के पांचवें शेडंयूल में ये कवर होते हैं.
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