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Manipur में नहीं थम रही हिंसा, उपद्रवियों के हमले में दो पुलिस कमांडो समेत तीन की मौत, सरकार ने गृह मंत्रालय को लिखी चिट्ठी

मणिपुर में हिंसा की ताजा घटना में पुलिस के दो कमांडो समेत तीन लोगों की मौत हो गई. वहीं मोरेह की घटना को लेकर इंफाल में महिलाओं ने मशाल लेकर विरोध मार्च निकाला. वहीं हालात को देखते हुए मणिपुर सरकार ने केंद्र को चिट्ठी लिखकर मदद मांगी है.

मणिपुर में ताजा हिंसा, 3 की मौत, महिलाओं ने किया प्रदर्शन मणिपुर में ताजा हिंसा, 3 की मौत, महिलाओं ने किया प्रदर्शन
बेबी शिरीन
  • इंफाल,
  • 18 जनवरी 2024,
  • अपडेटेड 9:34 AM IST

मणिपुर में बीते साल मई महीने से जल रहा है. यहां कुकी और मैतेई समुदाय के बीच तनाव है. हिंसा को रोकने के लिए जगह-जगह सुरक्षाबलों की चौकी बनाई गई हैं, लेकिन अब उपद्रवी सुरक्षाबलों को ही निशाना बना रहे हैं. बीते बुधवार को टेंगनौपाल जिले के मोरेह में उपद्रवियों ने पुलिस चौकी पर हमला कर दिया, जिसमें अबतक दो सुरक्षाकर्मियों समेत तीन लोगों की मौत हो गई. इसके अलावा दो अन्य सुरक्षाकर्मी गंभीर रूप से घायल हैं.  

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सुरक्षा चौकी पर ये हमला मणिपुर पुलिस और केंद्रीय सुरक्षा बलों की संयुक्त टीम द्वारा दो दिन पहले लिए गए एक एक्शन के बाद हुआ है, जिसमें कुकी समुदाय के उपद्रवियों को गिरफ्तार कर लिया गया था. गिरफ्तार किए गए लोगों में एक शख्स फिलिप खोंगसाई था, जो बीते साल नवंबर में एक पुलिस अधिकारी आनंद चोंगथम की हत्या का मुख्य आरोपी था. 

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आनंद की पिछले साल एक नवंबर को स्नाइपर की गोली से मौत हो गई थी, जब वह हेलीपैड के निर्माण के लिए मोरेह में जमीन की सफाई की निगरानी कर रहे थे. मोरेह में बुधवार सुबह करीब साढ़े तीन बजे हुए इस हमले में दो पुलिस कमांडो की मौत हो गई. 6वीं मणिपुर राइफल्स के जवान वांगखेम सोमरजीत और तखेल्लंबम शैलेश की गोली लगने से मौत हो गई. 

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इस हमले में सिद्धार्थ थोकचोइम (ASI) और कांस्टेबल भीम सिंह और 5वीं मणिपुर राइफल्स के एक राइफलमैन थोकचिओम नाओबिचा घायल हो गए. वहीं इसमें शहीद हुए सैनिकों को वायुसेना के हेलीकॉप्टर द्वारा लाया गया. इस बीच, केंद्रीय सुरक्षा एजेंसियों के खिलाफ एक विरोध प्रदर्शन के दौरान असम राइफल्स कैस्पर द्वारा कथित तौर पर हमला करने के बाद एक कुकी महिला की भी मौत हो गई.  

इंफाल में महिलाओं ने निकाला विरोध मार्च

वहीं मोरेह में हुई इस घटना के खिलाफ कई महिलाओं ने मणिपुर में सीएम सचिवालय के सामने देर रात प्रदर्शन किया. स्थानीय मीरा पैबी समूहों ने इस घटना की निंदा करते हुए मशाल रैली निकाली. हाथों में मशाल लिए महिला प्रदर्शनकारी मालोम, कीशमपत और क्वाकीथेल इलाकों से एकत्र हुईं और नारेबाजी करते हुए मशाल रैली निकाली.  

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मणिपुर पुलिस ने क्या बताया? 

मणिपुर पुलिस ने इस हमले को लेकर बताया था कि टेंगनौपाल जिला के मोरेह में उपद्रवियों ने राज्यबलों पर हमला किया था. इसमें 6वीं मणिपुर राइफल्स का एक कर्मचारी ड्यूटी के दौरान शहीद हो गए, जबकि उपद्रवियों के साथ गोलीबारी में तीन सैनिक गंभीर रूप से घायल हो गए, जिन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया है.  

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बीते 8 महीनों से जल रहा है मणिपुर  

बीते साल तीन मई को ऑल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन मणिपुर (ATSUM) ने 'आदिवासी एकता मार्च' निकाला. ये रैली चुरचांदपुर के तोरबंग इलाके में निकाली गई. ये रैली मैतेई समुदाय की अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिए जाने की मांग के खिलाफ निकाली गई थी. मैतेई समुदाय लंबे समय से अनुसूचित जनजाति यानी एसटी का दर्जा देने की मांग कर रही है.  

इसी रैली के दौरान आदिवासियों और गैर-आदिवासियों के बीच हिंसक झड़प हो गई. भीड़ को तितर-बितर करने के लिए पुलिस ने आंसू गैस के गोले दागे. शाम तक हालात इतने बिगड़ गए कि सेना और पैरामिलिट्री फोर्स की कंपनियों को वहां तैनात किया गया. 

मणिपुर सरकार ने केंद्र को लिखी चिट्ठी 

मोरेह शहर में हुए इस उपद्रवियों के हमले के बाद मणिपुर गृह विभाग ने केंद्रीय गृह मंत्रालय को चिट्ठी लिखी है, जिसमें मेडिकल इमरजेंसी के लिए हेलीकॉप्टर की मांग की है. इसके अलावा मोरेह में बिगड़े हालात को देखते हुए सैनिक और हथियारों को हवाई मार्ग के जरिए भेजने की मांग की है.   

मैतेई क्यों मांग रहे जनजाति का दर्जा? 

मणिपुर में मैतेई समुदाय की आबादी 53 फीसदी से ज्यादा है. ये गैर-जनजाति समुदाय है, जिनमें ज्यादातर हिंदू हैं. वहीं, कुकी और नगा की आबादी 40 फीसदी के आसापास है. राज्य में इतनी बड़ी आबादी होने के बावजूद मैतेई समुदाय सिर्फ घाटी में ही बस सकते हैं. मणिपुर का 90 फीसदी से ज्यादा इलाकी पहाड़ी है. सिर्फ 10 फीसदी ही घाटी है. पहाड़ी इलाकों पर नगा और कुकी समुदाय का तो घाटी में मैतेई का दबदबा है. 

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मणिपुर में कानून बना हिंसा की जड़? 

मणिपुर में एक कानून है. इसके तहत घाटी में बसे मैतेई समुदाय के लोग पहाड़ी इलाकों में न बस सकते हैं और न जमीन खरीद सकते हैं. लेकिन पहाड़ी इलाकों में बसे जनजाति समुदाय के कुकी और नगा घाटी में बस भी सकते हैं और जमीन भी खरीद सकते हैं. पूरा मसला इस बात पर है कि 53 फीसदी से ज्यादा आबादी सिर्फ 10 फीसदी इलाके में रह सकती है, लेकिन 40 फीसदी आबादी का दबदबा 90 फीसदी से ज्यादा इलाके में है. 

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