मराठा आरक्षण मामला: SC का राज्यों से सवाल- क्या आरक्षण सीमा 50 फीसदी से बढ़ाई जा सकती है?

मराठा आरक्षण से जुड़े इस मामले को पांच जजों की बेंच 18 मार्च तक लगातार सुनेगी. सर्वोच्च अदालत ने सोमवार को सुनवाई के दौरान कहा कि आरक्षण के मसले पर सभी राज्यों को सुना जाना जरूरी है, क्योंकि इसका असर व्यापक होगा.

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सुप्रीम कोर्ट में सुना गया मामला (फाइल फोटो) सुप्रीम कोर्ट में सुना गया मामला (फाइल फोटो)

संजय शर्मा

  • नई दिल्ली,
  • 08 मार्च 2021,
  • अपडेटेड 12:46 PM IST
  • मराठा आरक्षण मसले पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई
  • SC की टिप्पणी- सभी राज्यों की राय जरूरी

मराठा आरक्षण के मसले पर सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई शुरू हो गई. पांच जजों की बेंच इस मामले को 18 मार्च तक सुनेगी. सर्वोच्च अदालत ने सोमवार को सुनवाई के दौरान कहा कि आरक्षण के मसले पर सभी राज्यों को सुना जाना जरूरी है.

सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्य सरकारों को नोटिस जारी कर पूछा है कि क्या आरक्षण की सीमा को 50 फीसदी से बढ़ाया जा सकता है? इसी के साथ ही सुनवाई को अब 15 मार्च तक के लिए टाल दिया गया है. 

वकीलों ने उठाया मामला
सोमवार को सुनवाई के दौरान वकील गोपाल शकंरनारायण द्वारा बताया गया कि आरक्षण के मसले पर कई राज्यों द्वारा मुद्दे उठाए गए हैं, जो अलग-अलग विषयों के हैं. आरक्षण से जुड़े अलग-अलग केस हैं, जो इस मामले से जुड़े हैं. सुप्रीम कोर्ट में बताया गया कि 122वीं अमेंडमेंट, आर्थिक आधार पर 10 फीसदी आरक्षण, जातियों में क्लासिफिकेशन जैसे मसलों को भी उठाया गया है.

सुनवाई के दौरान वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी ने कहा कि इस मामले में आर्टिकल 342 A की व्याख्या भी शामिल है, जो सभी राज्यों को प्रभावित करेगा. इसलिए एक याचिका दाखिल की गई है, जिसमें सभी राज्यों को सुनना चहिए, सभी राज्यों को सुने बिना इस मामले में फैसला नहीं किया जा सकता है.

वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि मामले में सभी राज्यों से संवैधानिक सवाल किया गया, कोर्ट को सिर्फ केंद्र और महाराष्ट्र की सुनवाई नहीं करनी चाहिए, सभी राज्यों को नोटिस जारी करना चहिए.

क्या है विवाद?
गौरतलब है कि महाराष्ट्र में मराठाओं को आरक्षण देने की बात लंबे वक्त से होती रही है, साल 2018 में राज्य सरकार ने शिक्षा-नौकरी में 16 फीसदी आरक्षण देने का कानून बना दिया था. हालांकि, हाईकोर्ट ने अपने एक आदेश में इसकी सीमा को कम कर दिया था. 

लेकिन जब मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा, तो सर्वोच्च अदालत ने इसपर रोक लगा दी. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को बड़ी बेंच को सौंपा और विधिवत रुप से इसकी सुनवाई करने की बात कही. 

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