
कर्नाटक हाईकोर्ट राज्यपाल के आदेश को चुनौती देने वाली मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की याचिका पर मंगलवार को फैसला सुनाएगा. हाईकोर्ट ने 12 सितंबर को मामले की सुनवाई को पूरा कर अपने फैसले को सुरक्षित रख लिया था. 19 अगस्त को अपने अंतरिम आदेश में प्रतिनिधियों के लिए विशेष अदालत को निर्देश दिया था कि इस मामले में उनके खिलाफ शिकायतों की सुनवाई की जाए, ताकि याचिका को निपटाने तक इसकी कार्यवाही स्थगित की जा सके. ये मामला मंगलवार को न्यायमूर्ति एम नागप्रसन्ना की सिंगल बेंच के समक्ष फैसला सुनाने के लिए सूचीबद्ध है.
दरअसल, मैसूर शहरी विकास प्राधिकरण (एमयूडीए) साइट आवंटन मामले में मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के खिलाफ जांच के लिए राज्यपाल थावरचंद गहलोत की मंजूरी की वैधता को चुनौती देते हुए याचिका दायर की थी, जिस पर मंगलवार को हाईकोर्ट अपना फैसला सुना सकता है. वहीं, इस मामले में शिकायतकर्ता टीजे अब्राहम और अन्य लोगों ने पहले ही सुप्रीम कोर्ट में कैविएट दाखिल कर रहे हैं.
राज्यपाल ने 16 अगस्त को भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 की धारा 17ए और भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 218 के तहत कथित अपराधों के लिए मंजूरी दे दी थी. जैसा कि शिकायतकर्ता प्रदीप कुमार एसपी, टीजे अब्राहम और स्नेहमयी द्वारा उन्हें सौंपी गई याचिकाओं में उल्लेखित है.
वहीं, 19 अगस्त को सीएम सिद्धारमैया ने राज्यपाल के आदेश की वैधता को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट का रुख किया था. मुख्यमंत्री ने अपनी याचिका में कहा कि मंजूरी आदेश बिना सोचे-समझे, वैधानिक आदेशों का उल्लंघन करते हुए और मंत्रिपरिषद की सलाह समेत संवैधानिक सिद्धांतों के विपरीत जारी किया गया था जो भारत के संविधान के अनुच्छेद 163 के तहत बाध्यकारी है.
'सिद्धारमैया की आदेश रद्द करने की मांग'
सिद्धारमैया ने यह कहते हुए राज्यपाल के आदेश को रद्द करने की मांग की कि उनका फैसला कानूनी रूप से अस्थिर, प्रक्रियात्मक रूप से दोषपूर्ण और बाहरी विचारों से प्रेरित है.
सिद्धारमैया की ओर से अदालत में वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी और प्रोफेसर रविवर्मा पेश हुए थे, राज्यपाल की ओर से भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और महाधिवक्ता शशि किरण शेट्टी ने अपना पक्ष रखा था. वरिष्ठ अधिवक्ता मनिंदर सिंह, प्रभुलिंग के नवादगी, लक्ष्मी अयंगर, रंगनाथ रेड्डी, के जी राघवन सहित अन्य ने शिकायतकर्ताओं (प्रतिवादियों) की ओर से दलीलें दीं, जिन्होंने सिद्धारमैया के खिलाफ जांच की मंजूरी मांगी थी.
क्या है मामला
MUDA साइट आवंटन मामले में यह आरोप लगाया गया है कि सीएम सिद्धारमैया की पत्नी बी एम पार्वती को मैसूर के एक पॉश इलाके में प्रतिपूरक साइटें आवंटित की गईं, उनकी संपत्ति का मूल्य उनकी भूमि के स्थान की तुलना में अधिक था, जिसे MUDA द्वारा अधिगृहीत किया गया था.
MUDA ने पार्वती को उनकी 3.16 एकड़ जमीन के बदले 50:50 रेशियो योजना के तहत भूखंड आवंटित किए थे, जहां MUDA ने एक आवासीय लेआउट विकसित किया था.
विवादास्पद योजना के तहत, MUDA ने आवासीय लेआउट बनाने के लिए भूमि खोने वालों से अर्जित अविकसित भूमि के बदले में विकसित भूमि का 50 प्रतिशत आवंटित किया. कुछ विपक्षी नेताओं और कार्यकर्ताओं ने यह भी दावा किया है कि पार्वती के पास इस 3.16 एकड़ भूमि पर कोई कानूनी अधिकार नहीं था.