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कैसे बनेगी सहमति? वार्ता से पहले सरकार और किसान अपने-अपने रुख पर अड़े

किसानों के साथ सरकार की बातचीत का रास्ता फिर से खुलता दिख रहा है. किसानों के प्रस्ताव पर आज सरकार को फैसला करना है. हालांकि दोनों पक्ष अभी भी अपने पुराने रुख पर अड़े हुए हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि सरकार और किसानों के बीच बात कैसे बनेगी?

किसानों के समर्थन में प्रदर्शन करतीं महिलाएं (फाइल फोटो-PTI) किसानों के समर्थन में प्रदर्शन करतीं महिलाएं (फाइल फोटो-PTI)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 28 दिसंबर 2020,
  • अपडेटेड 1:08 PM IST
  • किसानों ने सरकार को भेजा है बातचीत का प्रस्ताव
  • किसानों के प्रस्ताव पर आज फैसला लेगी सरकार

किसानों के साथ सरकार की बातचीत का रास्ता फिर से खुलता दिख रहा है. किसानों के प्रस्ताव पर आज सरकार को फैसला करना है. अगर सबकुछ ठीक रहा तो प्रस्ताव के मुताबिक 29 दिसंबर यानि कल 7वें दौर की बातचीत होगी. हालांकि दोनों पक्ष अभी भी अपने पुराने रुख पर अड़े हुए हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि सरकार और किसानों के बीच बात कैसे बनेगी?

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8 दिसंबर के बाद से केंद्र सरकार किसानों से बार-बार बातचीत की टेबल पर लौटने की अपील कर रही थी, लेकिन आज सरकार को तय करना है कि बातचीत आगे कैसे बढ़े. वजह है किसानों का वो प्रस्ताव जो बातचीत के लिए केंद्र सरकार को भेजा गया है. दो-दो चिट्ठियों के जवाब में किसान नेताओं ने बातचीत पर लौटने की हामी तो भर दी लेकिन शर्तो के साथ.

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पहली शर्त ये है कि तीनों कृषि कानून रद्द करने की प्रक्रिया पर सबसे पहले चर्चा हो, MSP की कानूनी गारंटी की प्रक्रिया और प्रावधान पर बात हो, पराली जलाने पर दंड के प्रावधानों को बाहर करने पर चर्चा हो और बिजली कानून में जरूरी बदलाव किए जाएं. किसानों ने इन शर्तों के साथ 29 दिसंबर को बातचीत का प्रस्ताव सरकार को भेजा था साथ में ये चेतावनी भी है कि मांगें नहीं मानी तो आंदोलन खत्म होने की बात भूल ही जाएं.

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यानि अगर कल, 29 दिसंबर को बातचीत होनी है तो सरकार को ये आज ही तय करना होगा.लिहाजा आज किसानों की चिट्ठी पर जवाब देने के लिए केंद्रीय मंत्रियों की बैठक होगी. फैसला जो भी हो, मंत्रियों के बयान इशारा कर रहे हैं कि किसानों के नाम पर सियासी घेराबंदी के दबाव के आगे सरकार झुकने को तैयार नहीं है.

वहीं, उत्तर प्रदेश की कई जगहों से किसान दिल्ली रवाना होने की तैयारी में हैं. इन्हें समझाने के लिए योगी सरकार ने बड़े अफसरों की टीम तैनात कर दी है, जो किसान नेताओं को नए कानून के फायदे गिनाएगी और दिल्ली जाने से रोकने की कोशिश करेगी. इधर सिंघु बॉर्डर पर नए आंदोलनकारियों के स्वागत के लिए नया मंच तैयार कर लिया गया है.

इशारा साफ है कि किसान भी पीछे हटने के मूड में नहीं हैं. उधर सरकार भी एक नहीं कई बार जता चुकी है कि नए कानून वापस लेना करीब करीब नामुमकिन है.ऐसे में बातचीत का भविष्य क्या होगा, इसका कोई भी अनुमान लगा पाना फिलहाल मुश्किल है.

 

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