
राजस्थान के सवाई माधोपुर में बने रणथंभौर अभयारण्य में बाघों की संख्या 80 से ऊपर पहुंच गई है. आए दिन होने वाली वर्चस्व की लड़ाई में कई बाघ जान गवां चुके हैं. बाघों की बढ़ती संख्या और उनकी सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए अब राजस्थान के धौलपुर जिले के सरमथुरा और करौली को जोड़कर नया टाइगर रिजर्व बनाया जा रहा है.
इसके लिए वन विभाग ने कवायद शुरू कर दी है. इस टाइगर रिजर्व के बनने से बाघों के बीच टेरेटरी यानी इलाके को लेकर लड़ाई नहीं होगी. नए टाइगर रिजर्व के बनने से बाघों की मूवमेंट के लिए रामगढ़ विषधारी टाइगर रिजर्व और धौलपुर-सरमथुरा-करौली टाइगर रिजर्व का एरिया मिल जाएगा.
इस तरह धौलपुर-सरमथुरा-करौली टाइगर रिजर्व राजस्थान का छठवां और भरतपुर संभाग में दूसरा टाइगर रिजर्व होगा. इस बीच वन विभाग की टीम ने सरमथुरा के जंगलों में तीन साल से डेरा जमाए टाइगरों की निगरानी बढ़ा दी है. उनके मूवमेंट पर लगातार नजर रखी जा रही है.
टाइगर सफारी के लिए मिलेगी एक और डेस्टिनेशन
वन विभाग के उप वन संरक्षक किशोर गुप्ता ने बताया, "रणथंभौर में टाइगर्स की संख्या काफी ज्यादा है. इसीलिए उनमें अक्सर अपने इलाके के लिए संघर्ष होता रहता है. इसमें कई बार टाइगर्स की मौत तक हो जाती है."
उन्होंने आगे बताया, "कुछ टाइगर्स करौली के कैलादेवी अभयारण्य होते हुए सरमथुरा एवं धौलपुर तक और दूसरी ओर रामगढ़ विषधारी टाइगर रिजर्व की ओर मूवमेंट कर जाते हैं."
लिहाजा, यह सोचा गया है कि क्यों न धौलपुर-सरमथुरा और करौली को मिलाकर नया टाइगर रिजर्व बना दिया जाए. इससे यहां बाघों का ठीक से संरक्षण होगा. वहीं, पर्यटकों को टाइगर सफारी के लिए एक और डेस्टिनेशन मिल जाएगी.
पालतू पशुओं का कर रहे शिकार
धौलपुर जिले के सरमथुरा उप खंड के जंगलो में वर्तमान में चार टाइगर मौजूद हैं. मगर, बाघों के लिए प्रे-बेस (जंगली जानवर) नहीं मिलने पर वह पशु पालकों के पालतू पशुओं का शिकार कर अपना भोजन बना लेते है.
इस एरिया में विचरण कर रहे टाइगर पालतू जानवर जैसे- गाय, भैंस और बकरियों को अपना शिकार बना लेते हैं. इसकी वजह से पशु पालकों को सीधा नुकसान होता है.
बाघों की सुरक्षा और लोगों के साथ उनके पालतू पशुओं की सुरक्षा को लेकर ही यह फैसला किया गया है. वन विभाग के मुताबिक, पिछले साल बाघों ने चार भैंस, तीन दर्जन बकरियों का शिकार किया था. इस साल भी बाघ आधा दर्जन भैंसों का शिकार कर चुके हैं.
क्या है प्रे-बेस
प्रे-बेस का मतलब होता है 'जंगली जानवर'. बाघों की संख्या बढ़ रही है और सरमथुरा उप खंड के जंगलों में प्रे-बेस की मात्रा कम है. सरमथुरा क्षेत्र का जंगल घना है और यहां शांति है. इसलिए यहां टाइगरों का आना-जाना रहा है और टाइगरों ने इस क्षेत्र को अपना बना लिया है.
क्षेत्र में जंगली जानवरों की कमी के कारण बाघ जंगल में चरने वाले पशु पालकों के पशुओं को अपना शिकार बना लेते हैं. सरमथुरा के जंगलों में सबसे ज्यादा नील गाय हैं. मगर, नीलगाय को मारने में टाइगर काफी परेशानी होती है और वह अकेला इसका शिकार नहीं कर सकता.
सरमथुरा के जंगलों में चीतल, सांभर न के बराबर हैं. टाइगर का सबसे प्रिय भोजन चीतल और सांभर हैं, जिसका वे अधिक शिकार करते हैं.
यहां से उपलब्ध हो सकेगा प्रे-बेस
केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान कई टाइगर रिजर्व के लिए प्रे-बेस उपलब्ध करा रहा है. इसमें राजस्थान के मुकुंदरा, रामगढ़ विषधारी, रणथंभौर और जयपुर शामिल हैं. अगर वन विभाग द्वारा कवायद की जाए, तो धौलपुर सरमथुरा को प्रे-बेस केवलादेव घना उद्यान से मिल सकता हैं. इसके बाद टाइगर पालतू जानवरों का शिकार नहीं करेंगे.
पालतू पशुओं के शिकार पर मुआवजा
यदि बाघों द्वारा किसी पशु पालक के पशुओं का शिकार किया जाता है, तो उसे वन विभाग की ओर मुआवजा दिया जाता है. भैंस के शिकार किए जाने पर वन विभाग की ओर से 20 हजार रुपये, गाय के शिकार पर दस हजार रुपये, बकरी के लिए दो हजार रुपये मुआवजा दिया जाता है.
बाघ के हमले में किसी मनुष्य की मौत होने की स्थिति में चार लाख का मुआवजा दिया जाता है. बाघ के हमले में घायल होने पर दो लाख की आर्थिक सहायता मुआवजे के रूप में की जाती है.
दस ट्रैप कैमरों से निगरानी
उप वन संरक्षक किशोर गुप्ता ने बताया, "यहां टी-116 और टी-117 के साथ दो बाघ देखे जा रहे हैं. सरमथुरा के जंगलों में रह रहे टाइगर्स की सुरक्षा के लिए ट्रैप कैमरे लगाए जा रहे हैं. यहां पर हैबिटेट बढ़ाने, वाटर होल्स और सुरक्षा गार्ड लगाने के लिए रणथंभौर अभयारण्य से बजट मिला है. मूवमेंट की रिपोर्ट नियमित रूप से रणथंभौर अभयारण्य प्रशासन को भेजी जा रही है."
नए टाइगर रिजर्व से घटेगा रणथंभौर का दबाव
धाैलपुर-सरमथुरा रेंज में टाइगर्स न केवल स्थाई निवास बनाए हुए हैं, बल्कि कुनबा भी बढ़ा रहे हैं. धौलपुर-सरमथुरा-करौली टाइगर रिजर्व बनने के बाद रणथंभौर टाइगर रिजर्व से दबाव कम होगा. टारगर्स के बीच इलाके को लेकर होने वाली वर्चस्व की लड़ाई में भी कमी आएगी. टाइगर्स को मूवमेंट के लिए ज्यादा क्षेत्र मिलेगा और इससे पर्यटन भी बढ़ेगा.