
दिल्ली-एनसीआर में जानलेवा होते जा रहे वायु प्रदूषण पर चिंतित राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग यानी NHRC ने राज्य सरकार द्वारा उठाए गए कदमों से असंतुष्टि जताई है. आयोग ने पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और दिल्ली के मुख्य सचिवों को 10 नवंबर, 2022 को आयोग के सामने उपस्थित होने के लिए कहा है.
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग दिल्ली एनसीआर में वायु प्रदूषण के मुद्दे पर अब तक की गई विभिन्न कार्रवाइयों से संतुष्ट नहीं है. आयोग ने इस संबंध में विस्तृत चर्चा के लिए व्यक्तिगत रूप से या हाइब्रिड मोड पर 10 नवंबर, 2022 को उपस्थित होने का आदेश दिया है. NHRC ने इन राज्यों के मुख्य सचिवों को भेजी चिट्ठी में कहा है कि मुख्य सचिवों से ये अपेक्षा की जाती है कि वे इस चर्चा से पहले एक सप्ताह के भीतर आयोग को सरकारों द्वारा अपने राज्यो में पराली जलाने से रोकने के लिए उठाए गए कारगर कदमों और उनके असर के बारे में जानकारी दें.
NHRC ने कहा है कि राज्यों की रिपोर्ट में स्मॉग टावरों और एंटी-स्मॉग गन के प्रभाव के बारे में भी बताया जाना चाहिए. वो ये विस्तार से बताएं कि ऐसी कितनी एंटी स्मॉग गन काम कर रही हैं या नहीं. अगर हां, तो कितनी कारगर साबित हुई हैं? मानवाधिकार आयोग ने कहा है कि पंजाब और हरियाणा की रिपोर्ट में पराली के प्रबंधन की योजना के प्रभाव के बारे में भी विशेष रूप से NHRC को सूचित किया जाना चाहिए.
मीडिया रिपोर्ट पर स्वत: संज्ञान लेने के बाद NHRC की रिपोर्ट में आरोप लगाया गया है कि वायु प्रदूषण भारत में मानव स्वास्थ्य के लिए एक बड़ा खतरा है. इससे दिल्ली में लोगों का कुल औसत जीवन 5 साल और 9.7 साल कम हो गया है. आयोग ने राज्य सरकारों की ओर से अब तक किए गए उपायों को देखते हुए पाया है कि ये दिल्ली एनसीआर में प्रदूषण के स्तर को कम करने के लिए पर्याप्त नहीं हैं.
NHRC ने माना है कि अभी प्रदूषण के स्तर को तुरंत कम करने के लिए बहुत कुछ करने की जरूरत है. संविधान का अनुच्छेद 47 लोगों के जीवन स्तर को सुधारने और सार्वजनिक स्वास्थ्य में सुधार करने का अधिकार देता है. समय-समय पर कई निर्देशों के बावजूद प्रदूषण के स्तर में कुछ भी सुधार नहीं हुआ है. दिल्ली और एनसीआर क्षेत्र में वायु प्रदूषण के प्रमुख कारणों में से उद्योग, ईंट भट्ठे, परिवहन के अलावा एनसीआर के आसपास के राज्यों में फसल/पराली जलाना भी शामिल है.
NHRC ने कहा है कि आम नागरिकों के मानवाधिकार पर ऐसी भयानक स्थिति होने के बाद वो मूकदर्शक नहीं रह सकता है. सुप्रीम कोर्ट, नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल और अन्य प्राधिकरणों के कई निर्देशों के बावजूद, दिल्ली-एनसीआर में वायु गुणवत्ता में मानव-अनुकूल वातावरण के लिए आवश्यक सुधार नहीं देखा गया है.