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बाघ सैंक्चुअरी के कोर एरिया में निर्माण नहीं: SC ने जू और सफारी बनाने पर भी लगाई रोक

सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण यानी एनटीसीए को कहा कि वो सफारी और जू स्थापित करने की बाबत अपने विचार, सुझाव, आपत्ति दाखिल करें. सुप्रीम कोर्ट की पीठ ऐसी योजनाओं के नाम पर संरक्षित वन्य क्षेत्रों,  अभयारण और नेशनल पार्क में कथित अवैध तौर पर हो रहे निर्माण और हस्तक्षेप रोकने को लेकर दाखिल याचिका पर सुनवाई कर रही थी

सुप्रीम कोर्ट सुप्रीम कोर्ट
संजय शर्मा
  • नई दिल्ली,
  • 09 फरवरी 2023,
  • अपडेटेड 7:04 AM IST

देश के विभिन्न हिस्सों में बाघ अभयारण्य राष्ट्रीय उद्यान और संरक्षित वन्य क्षेत्रों के कोर एरिया या बिलकुल आंतरिक संवेदनशील क्षेत्रों में किसी भी किस्म का निर्माण करने से सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी है. बुधवार को कोर्ट ने इस मामले की सुनाई करते हुए कोर्ट में जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस विक्रम नाथ की पीठ ने कहा कि विशेषज्ञों की राय में भी कोर एरियाज में चिड़ियाघर यानी जू बनाने या टाइगर सफारी शुरू करने की योजना कतई उचित नहीं है.  

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पीठ ने राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण यानी एनटीसीए को कहा कि वो सफारी और जू स्थापित करने की बाबत अपने विचार, सुझाव, आपत्ति दाखिल करें. सुप्रीम कोर्ट की पीठ ऐसी योजनाओं के नाम पर संरक्षित वन्य क्षेत्रों,  अभयारण और नेशनल पार्क में कथित अवैध तौर पर हो रहे निर्माण और हस्तक्षेप रोकने को लेकर दाखिल याचिका पर सुनवाई कर रही थी. याचिका में कहा गया था कि जिम कॉर्बेट, राजाजी सहित उत्तराखंड के अधिसूचित वन्य क्षेत्रों और कई पार्कों में सफारी रेस्ट हाउस, जंगल हाउस और अन्य निर्माण सैंचुरी के कोर एरिया में कतई नहीं किए जा सकते.

पीठ को कोर्ट की ओर से नियुक्त की गई केंद्रीय वैधानिक अधिकृत समिति यानी सेंट्रल इंपावर्ड कमेटी (सीआईसी) की रिपोर्ट भी सौंपी गई. रिपोर्ट में कहा गया है कि केंद्रीय वन पर्यावरण मंत्रालय अपनी गाइड लाइंस में या तो संशोधन करे या फिर वापस ले जिसमें बाघ अभयारण्य या संरक्षित वन्य क्षेत्र में जहां बाघ और जंगली जानवर अमूमन नहीं दिखते वहां पर्यटन को बढ़ावा देने के मकसद से टाइगर सफारी और जू यानी चिड़ियाघर स्थापित करने की परियोजना शुरू करने का निर्णय लिया था. इसके तहत वहां निर्माण भी किए जाने की योजना पर काम होना था.

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परियोजना वापस लेने की रिपोर्ट पर पीठ ने भी कहा कि वो भी टाइगर रिजर्व और नेशनल पार्क के कोर एरिया में इस परियोजना के पक्ष में कतई नहीं है. रिपोर्ट में कहा गया है कि इस परियोजना के तहत वन्य जीवन के प्रति अत्यंत संवेदनशील माने जाने वाले कोर एरिया और इसके आसपास जू, सफारी, होटल, अतिथिगृह आदि बनवाने से बाघ संरक्षण के लिए किए जा रहे उपायों पर नकारात्मक असर पड़ेगा. ये ध्यान रखना चाहिए कि ऐसी चीजों से जानवरों के नैसर्गिक पर्यावास और जीवन चक्र, प्रजनन पर कोई खराब असर नहीं पड़े. इसके अलावा इको टूरिज्म और वन्यजीव शिक्षा पर भी नकारात्मक असर न पड़े. पहले से ही खतरे में पड़ी इन जानवरों की आबादी और आजादी पर खतरा बढ़ा हुआ है. ये सब करने से इनके लिए और मुश्किल बढ़ेगी. इन निर्माणों के नाम पर पेड़ों की भी अंधाधुंध कटाई की जा रही है.

याचिकाकर्ताओं में से एक वकील गौरव बंसल ने कोर्ट को बताया कि वैसे भी उत्तराखंड के कॉर्बेट पार्क के गुज्जर सोत, पखराऊ ब्लॉक, सोनानदी रेंज, कालागढ़ डिविजन में वैसे भी और ज्यादा संवेदनशील होने की जरूरत है. इन सभी क्षेत्रों में रेस्ट हाउस बनाए जा रहे हैं. इनके लिए पेड़ काटे जा रहे हैं. फिलहाल कोर्ट ने इसे रोकने को कहा है.

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