
केंद्र ने सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में दायर अपने हलफनामे में दावा किया कि कृषि कानूनों को जल्दबाजी में पारित नहीं किया गया बल्कि ये कानून देश में दो दशकों तक चले विचार-विमर्श का नतीजा हैं. हालांकि, कुछ सूचना अधिकार (आरटीआई) कार्यकर्ताओं ने इस दावे को खारिज करते हुए कहा है कि ये विचार-विमर्श बड़े सुधारों (reforms) के बारे में थे. ये मोदी सरकार द्वारा लाए गए तीन नए कृषि कानूनों के बारे में नहीं थे.
तीन नए कानूनों को पारित करने के पहले अनिवार्य पूर्व-विधायी परामर्श लिया गया था या नहीं, इस बारे में एक आरटीआई दाखिल की गई थी. इस आरटीआई के जवाब में कृषि, सहकारिता और किसान कल्याण विभाग ने बताया कि उनके पास इस बारे में कोई रिकॉर्ड नहीं है.
सुप्रीम कोर्ट में नरेंद्र मोदी सरकार ने दावा किया कि नए कृषि कानूनों को जल्दबाजी में नहीं बनाया गया, बल्कि ये कानून दो दशकों के विचार-विमर्श का परिणाम हैं. केंद्र सरकार ने किसानों की किसी भी तरह की गलतफहमी को दूर करने के लिए उनसे जुड़ने की पूरी कोशिश की है और किसी भी प्रयास में कमी नहीं पाई गई है. लेकिन आरटीआई कार्यकर्ताओं ने केंद्र के इस दावे पर सवाल उठा दिए हैं.
क्या बोलीं आरटीआई कार्यकर्ता?
इंडिया टुडे से बात करते हुए आरटीआई कार्यकर्ता अंजलि भारद्वाज ने कहा कि कोई कानून बनाने से पहले परामर्श के बारे में क्या नीति हो, इसके बारे में 10 जनवरी, 2014 को कमेटी ऑफ सेक्रेटरीज (CoS) की मीटिंग हुई थी. इसमें निर्णय लिया गया था कि कोई भी कानून बनाने से पहले हर विभाग को अनिवार्य रूप से कम से कम 30 दिनों के लिए प्रस्तावित कानून को पब्लिक डोमेन में रखना होगा.
अंजलि भारद्वाज ने अपना आरटीआई आवेदन कृषि, सहकारिता और किसान कल्याण विभाग को भेजा था. उन्होंने जानकारी मांगी थी कि तीन कृषि अध्यादेशों को विचार विमर्श के लिए क्या पब्लिक डोमेन में रखा गया? उन्होंने बताया, "हमारे आवेदन को विभाग में अलग-अलग लोगों को हस्तांतरित किया गया और अंततः बताया गया कि इस मामले में पेश करने के लिए उनके पास कोई रिकॉर्ड मौजूद नहीं है."
एक और आरटीआई में जानकारी मांगी गई थी कि जून 2020 में कृषि अध्यादेशों की घोषणा से पहले इन प्रस्तावित कानूनों पर परामर्श के बारे में विवरण उपलब्ध कराया जाए. इस आवेदन में किसानों और विशेषज्ञों के अलावा जो भी इसमें शामिल हुए हों, उन सबका विवरण भी मांगा गया था. इसमें ये भी पूछा गया था कि इस बारे में राज्यों के साथ क्या परामर्श हुआ.
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अंजलि भारद्वाज का कहना है कि "इस आरटीआई आवेदन के जवाब में कहा गया कि संबंधित विभाग के पास इस बारे में कोई रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं है. आरटीआई के जरिये मिले जवाब से पता चलता है कि कृषि कानूनों के मामले में पूर्व विधायी प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया और जो परामर्श हुआ वह सिर्फ बड़े स्तर पर सुधारों से संबंधित है."
आरटीआई कार्यकर्ता भारद्वाज ने कहा कि आखिरकार किसी कानून में क्या रहेगा, लोकतंत्र में इसका निर्णय लोगों के माध्यम से किया जाना चाहिए और तीन कृषि कानूनों के मामले में लोगों से परामर्श लेना चाहिए था. उन्होंने कहा, "दुर्भाग्यपूर्ण ये है कि केंद्र सरकार अब कह रही है कि वह कानून के हर पहलू पर चर्चा के लिए तैयार है, जबकि ये पहले किया जाना चाहिए था, सरकार अपनी ही प्रक्रियाओं का पालन नहीं कर रही है."
अंजलि ने कहा, "सीएए के साथ जो हुआ वह हर किसी ने देखा. ऐसी स्थिति तब पैदा होती है जब सरकार किसी विधेयक का ड्राफ्ट जनता के सामने परामर्श के लिए नहीं रखती."