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खड़गे की पीएम दावेदारी पर सिर्फ नीतीश ही नहीं पवार भी खफा, बोले- 1977 में भी PM चेहरा नहीं था

एनसीपी प्रमुख शरद पवार की यह टिप्पणी त आई, जब विपक्षी इंडिया गुट ने अभी तक आगामी 2024 चुनाव के लिए प्रधानमंत्री पद का चेहरा पेश नहीं किया है. हालांकि, इंडिया ब्लॉक के कुछ दलों ने कांग्रेस प्रमुख मल्लिकार्जुन खड़गे को विपक्षी गठबंधन के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में प्रस्तावित किया है.

NCP सुप्रीमो शरद पवार (File photo)
NCP सुप्रीमो शरद पवार (File photo)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 26 दिसंबर 2023,
  • अपडेटेड 3:06 PM IST

विपक्षी दलों के अलायंस इंडिया ब्लॉक में सब कुछ ठीक नहीं है. दिल्ली की चौथी बैठक में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को पीएम फेस घोषित करने के प्रस्ताव पर रार खत्म नहीं हो रही है. जदयू नेता नीतीश कुमार की नाराजगी की खबरों की बीच अब एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार के भी खफा होने की जानकारी सामने आई है. शरद पवार ने अपनी बात को इशारे में कहा है. उन्होंने कहा, 1977 के लोकसभा चुनाव (इमरजेंसी के बाद) के दौरान प्रधानमंत्री पद का फेस घोषित नहीं किया गया था.

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बता दें कि दिल्ली में इंडिया ब्लॉक की चौथी बैठक हुई थी. इस बैठक में सीट शेयरिंग के फॉर्मूले और पीएम फेस घोषित किए जाने पर चर्चा हुई. इस दौरान टीएमसी नेता ममता बनर्जी ने इंडिया ब्लॉक की तरफ से कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को पीएम फेस घोषित करने का प्रस्ताव रखा. इसका AAP संयोजक अरविंद केजरीवाल समेत 12 पार्टियों ने समर्थन कर दिया. हालांकि, ब्लॉक में शामिल 28 पार्टियों में से बाकी दलों के नेताओं ने तत्काल अपनी सहमति नहीं दी. ऐसे में यह प्रस्ताव आगे नहीं बढ़ सका. बाद में संयुक्त प्रेस वार्ता में नीतीश कुमार शामिल नहीं हुए. वे पहले ही बैठक छोड़कर चले गए थे. इसे नाराजगी से जोड़ा गया.

'लोग बदलाव के मूड में होंगे तो...'

अब राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी प्रमुख शरद पवार की प्रतिक्रिया आई है. पवार ने कहा, चुनाव के बाद विपक्ष की तरफ से मोराराजी देसाई को प्रधानमंत्री बनाया गया था. उस समय भी कहा गया था कि अगर कोई चेहरा सामने नहीं लाएंगे तो नतीजे भी पक्ष में नहीं होंगे. शरद पवार ने आगे कहा, अगर लोग बदलाव के मूड में हैं तो वे जरूर बदलाव लाने के लिए निर्णय लेंगे.

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'खड़गे जी के नाम कांग्रेस खुशी नहीं थी'

इस बीच, बीजेपी प्रवक्ता शहजाद पूनावाला ने शरद पवार की टिप्पणियों का हवाला दिया और कहा, यहां तक ​​कि कांग्रेस भी दीदी (पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी) द्वारा आगे बढ़ाए गए खड़गे जी के नाम से खुश नहीं थी. पूनावाला ने यह भी कहा, एक बार फिर विभाजन खुलकर देखा जा रहा है.

'1977 के लोकसभा चुनाव में क्या हुआ था?'

साल 1975 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल की घोषणा की थी, जिससे उन्हें तानाशाही शक्तियां मिल गईं थीं. 1975 और 1977 के बीच मोरारजी देसाई और जयप्रकाश नारायण समेत कई विपक्षी नेताओं और कई कार्यकर्ताओं को हिरासत में लिया गया और जेल में डाल दिया गया. आपातकाल की स्थिति ने प्रेस की स्वतंत्रता और नागरिक स्वतंत्रता पर सीमाएं लगा दी थीं. कांग्रेस के राजनीतिक विरोधियों पर कार्रवाई तेज कर दी गई थी.

मार्च 1977 में आपातकाल हटाए जाने से पहले ही इंदिरा गांधी ने जनवरी 1977 में नए सिरे से चुनाव की घोषणा कर दी. उन्होंने अन्य विपक्षी नेताओं को भी जेल से रिहा करने का आदेश दिया था. इसकी पृष्ठभूमि में जनवरी 1977 में नई दिल्ली में जनता पार्टी की स्थापना हुई, जिसके अध्यक्ष मोरारजी देसाई और उपाध्यक्ष चरण सिंह थे. भारतीय जनसंघ, ​​भारतीय लोक दल, कांग्रेस (ओ), और सोशलिस्ट पार्टी उन समूहों में से थे जो पार्टी की स्थापना के लिए एक साथ आए थे. मार्च 1977 में मतदान हुआ तो जनता गठबंधन ने जीत हासिल की और इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा था. दो महीने के अंदर ही चुनाव होने से विपक्ष को पीएम फेस भी घोषित करने का मौका नहीं मिला था. चुनाव बाद 81 साल के मोरारजी देसाई को सर्वसम्मति से नया प्रधानमंत्री चुन लिया गया था.
 

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