
हरियाणा में होने वाले आगामी विधानसभा चुनाव से ठीक पहले बलात्कार के दोषी और डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत राम रहीम सिंह को एक बार फिर फरलो मिल गई है और इस बार वह 21 दिनों के लिए जेल से बाहर आ गया है. यह पहली बार बार नहीं है जब राम रहीम को इस तरह से फरलो मिली है वह अभी तक 10 बार फरलो या पैरोल पर बाहर आ चुका है. ताकतवर लोगों को फरलो या पैरोल मिलने के मामले पहले भी सामने आए हैं और फिल्म अभिनेता संजय दत्त भी इसका एक उदाहरण हैं.
बाबा राम रहीम की तरह ही मुंबई बम धमाकों के दौरान हथियार रखने के दोषी अभिनेता संजय दत्त को भी सजा के दौरान लगातार फरलो या पैरोल मिलती रही थी. संजय दत्त भी 160 से अधिक दिनों तक इन फैसिलिटी के चलते जेल से बाहर रहे थे. इतना ही नहीं बाद में अच्छे बर्ताव के चलते सजा पूरी से 8 महीने पहले ही जेल से छोड़े गए थे.
क्या था संजय दत्त का मामला
12 मार्च 1993 को मुंबई में सीरियल बम धमाके हुए, जिनमें 257 लोगों की मौत हुई थी और 713 लोग घायल हुए थे. 19 अप्रैल 1993 को संजय दत्त को मुंबई धमाकों के लिए आए जखीरे में से एके-56 राइफल रखने के आरोप में गिरफ्तार किया गया, लेकिन 18 दिन के अंदर ही उनको जमानत भी मिल गई. इसके बाद मामला कोर्ट में पहुंचा जहां निचली अदालत से उन्हें 6 साल की सजा सुनाई गई और इसके बाद उन्हें 31 जुलाई, 2007 को पुणे की यरवदा जेल भेज दिया गया. हालांकि, 1993 से 2007 के बीच वह अलग-अलग समय पर 18 महीने (विचाराधीन कैदी के तौर पर) जेल में रहे और बाद में उन्हें जमानत मिल गई.
इसके बाद सजा के खिलाफ वह सुप्रीम कोर्ट पहुंचे थे. मार्च 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने संजय दत्त के खिलाफ एक सजा की सजा घटाकर इसे पांच साल कर दिया. 2013 से 2016 के बीच-सजायाफ्ता के तौर पर के तौर करीब 29 महीने की सजा काटी और तकरीबन 5 महीने से अधिक समय तक पैरोल और फरलो पर बाहर रहे.
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सजा के दौरान मिलती रही फरलो और पैरोल
अक्टूबर 2013: मार्च 2013 में सजा मिलने के बाद संजय दत्त को अक्टूबर 2013 में फरलो दिया गया था. पैर में दर्द होने की वजह से उन्हें तब 14 दिन की फरलो मिली.
दिसंबर 2013: इसके बाद दिसंबर 2013 में वह 28 दिनों की पैरोल पर रिहा हुए, जिसे बाद में पत्नी मान्यता दत्त के इलाज के कारण 28 दिन और बढ़ाया गया.
दिसंबर 2014: दिसंबर 2014 में, उन्हें अपने परिवार के साथ "नए साल का जश्न मनाने" के लिए 14 दिनों के लिए फरलो पर बाहर रहने की अनुमति दी गई. हालांकि बाद में उन्होंने 14 दिन की फरलो और मांगी थी जिसे कोर्ट ने ठुकरा दिया.
अगस्त 2015: बेटी की नाक की सर्जरी के लिए उन्हें 30 दिन की पैरोल फिर से मिल गई.
8 महीने पहले हुए थे रिहा
अच्छे बर्ताव के कारण इन्हें आठ महीने पहले ही संजय दत्त को जेल रिहा कर दिया गया. जेल में अच्छा बर्ताव होने के कारण यरवदा जेल प्रशासन ने 6 महीने पहले ही उन्हें रिहा करने का प्रस्ताव दिया था जिस पर राज्य सरकार ने मुहर लगा दी थी. कोर्ट ने संजय दत्त को जो पांच साल की सजा सुनाई थी उसमें से उन्होंने 18 महीने पहले ही जेल में गुजार लिए थे. फरवरी 2016 में फाइनली वह जेल से रिहा हो गए.
कोर्ट ने उठाए थे संजय दत्त की पैरोल और फरलो पर सवाल
संजय दत्त को बार-बार पैरोल और फरलो मिलने को लेकर लगातार सवाल उठे और कहा गया कि क्या उन्हें ये सुविधा उनके वीआईपी स्टेटस की वजह से मिली. मामला कोर्ट तक पहुंचा तो बॉम्बे हाईकोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार से संजय दत्त को जेल से जल्द रिहा करने को लेकर सवाल जवाब किया और पूछा है कि सरकार अपने फैसले की सफाई दे कि आखिर संजय दत्त को आठ महीने पहले जेल से कैसे रिहा कर दिया गया, जबकि वे ज्यादातर वक्त पैरोल पर बाहर थे. दरअसल पुणे के सामाजिक कार्यकर्ता प्रदीप भालेकर ने सजा भुगतने के दौरान संजय दत्त को कई बार मिले फरलो तथा पैरोल को चुनौती दी थी.
क्या होती है पैरोल
दरअसल, पैरोल भी फरलो की तरह ही एक छुट्टी है, जिसमें किसी विशेष कारण से कैदी को जेल से बाहर आने की इजाजत दी जाती है. ये अंडरट्रायल कैदियों की स्थिति में भी मिल जाती है. इसमें कैदी को एक खास कारण बताना होता है कि आपको बाहर क्यों जाना है. जैसे कैदियों को परिवार में किसी की मृत्यु हो जाने या मेडिकल कारणों को लेकर ये छूट दी जाती है, जिसे पैरोल कहते हैं. पैरोल भी दो तरह की होती है, जिसमें एक कस्टडी पैरोल है और रेगुलर पैरोल.
कस्टली पैरोल में कुछ विशेष परिस्थितियों में जेल से बाहर आने की इजाजत मिलती है, लेकिन वो पुलिस कस्टडी में ही रहता है. जैसे किसी से मिलने की इजाजत मिली है तो कैदी बाहर तो आ सकता है, लेकिन पुलिस साथ रहती है और उससे मिलाकर फिर पुलिस जेल में ले जाती है. जैसे मनीष सिसोदिया को एक बार अपनी पत्नी से हफ्ते में एक बार मिलने के लिए कस्टडी पैरोल दी गई थी.
इसके अलावा रेगुलर पैरोल होती है, जिसमें कैदी आजाद कहीं भी घूम सकती है. हालांकि, पेरौल और फरलो दोनों में कुछ शर्तें भी होती हैं, जिनके साथ ही कैदी को कुछ दिन के लिए रिहा किया जाता है.
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क्या होती है फरलो?
- फरलो एक तरह से छुट्टी की तरह होती है, जिसमें कैदी को कुछ दिन के लिए रिहा किया जाता है. फरलो की अवधि को कैदी की सजा में छूट और उसके अधिकार के तौर पर देखा जाता है.
- फरलो सिर्फ सजा पा चुके कैदी को ही मिलती है. फरलो आमतौर पर उस कैदी को मिलती है जिसे लंबे वक्त के लिए सजा मिली हो.
- इसका मकसद होता है कि कैदी अपने परिवार और समाज के लोगों से मिल सके. इसे बिना कारण के भी दिया जा सकता है.
- चूंकि जेल राज्य का विषय है, इसलिए हर राज्य में फरलो को लेकर अलग-अलग नियम है. उत्तर प्रदेश में फरलो देने का प्रावधान नहीं है.
फरलो और पेरोल में क्या अंतर होता है?
- फरलो और पेरोल दोनों अलग-अलग बातें हैं. प्रिजन एक्ट 1894 में इन दोनों का जिक्र है. फरलो सिर्फ सजा पा चुके कैदी को ही मिलती है. जबकि, पेरोल पर किसी भी कैदी को थोड़े दिन के रिहा किया जा सकता है.
- इसके अलावा फरलो देने के लिए किसी कारण की जरूरत नहीं होती. लेकिन पेरोल के लिए कोई कारण होना जरूरी है.
- पेरोल तभी मिलती है जब कैदी के परिवार में किसी की मौत हो जाए, ब्लड रिलेशन में किसी की शादी हो या कुछ और जरूरी कारण.
- किसी कैदी को पेरोल देने से इनकार भी किया जा सकता है. पेरोल देने वाला अधिकारी ये कहकर मना कर सकता है कि कैदी को छोड़ना समाज के हित में नहीं है.
कब नहीं मिलती पेरोल और फरलो?
सितंबर 2020 में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने पेरोल और फरलो के लिए नई गाइडलाइंस जारी की थी. इसमें गृह मंत्रालय ने बताया था कि किसी को पेरोल और फरलो कब नहीं दी जाएगी? इसके मुताबिक.
- ऐसे कैदी जिनकी मौजूदगी समाज में खतरनाक हो या जिनके होने से शांति और कानून व्यवस्था बिगड़ने का खतरा हो, उन्हें रिहा नहीं किया जाना चाहिए.
-ऐसे कैदी जो हमला करने, दंगा भड़काने, विद्रोह या फरार होने की कोशिश करने जैसी जेल हिंसा से जुड़े अपराधों में शामिल रहे हों, उन्हें रिहा नहीं किया जाना चाहिए.
-डकैती, आतंकवाद संबंधी अपराध, फिरौती के लिए अपहरण, मादक द्रव्यों की कारोबारी मात्रा में तस्करी जैसे गंभीर अपराधों के दोषी या आरोपी कैदी को रिहा नहीं किया जाना चाहिए.
- ऐसे कैदी जिनके पेरोल या फरलो की अवधि पूरा कर वापस लौटने पर संशय हो, उन्हें भी रिहा नहीं किया जाना चाहिए.
-यौन अपराधों, हत्या, बच्चों के अपहरण और हिंसा जैसे गंभीर अपराधों के मामलों में एक समिति सारे तथ्यों को ध्यान में रखकर पेरोल या फरलो देने का फैसला कर सकती है.
कौन तय करता है सजा में छूट?
पैरोल देने का अधिकार राज्य सरकार को होता है और हर राज्य में इसके अलग-अलग नियम होते हैं. फरलो को जेल में बंद कैदी आजादी के रूप में प्राप्त करता है और इसे कैदी का अधिकार माना जाता है. सरकार या जेल अधिकारी कैदी के व्यवहार और जेल की रिपोर्ट के आधार पर फरलो को मंजूर या नामंजूर कर सकते हैं.