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नूपुर शर्मा ने दोबारा क्यों खटखटाया सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा, ये है वजह

नूपुर शर्मा ने एक बार फिर से सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है. उन्होंने विवादित टिप्पणी के मामले में गिरफ्तारी पर रोक की मांग की है. वहीं सुप्रीम कोर्ट ने पिछली सुनवाई में उन्हें कड़ी फटकार लगाई थी.

नूपुर शर्मा (फाइल फोटो) नूपुर शर्मा (फाइल फोटो)
नलिनी शर्मा
  • नई दिल्ली,
  • 19 जुलाई 2022,
  • अपडेटेड 1:40 PM IST
  • नूपुर शर्मा ने दूसरी याचिका दाखिल की है
  • सुप्रीम कोर्ट ने पहली याचिका पर लगाई थी फटकार

पैगम्बर मोहम्मद पर विवादित टिप्पणी करने वाली बीजेपी से निलंबित नेता नूपुर शर्मा ने एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. इस बार उन्होंने पैगंबर टिप्पणी में गिरफ्तारी पर रोक लगाने की मांग की है. नूपुर शर्मा ने अपनी याचिका में यह भी कहा है कि सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी के बाद हत्या और रेप की धमकियों में इजाफा हो गया है. इससे पहले 1 जुलाई को इसी बेंच ने नूपुर शर्मा की पिछली याचिका पर सुनवाई की थी. तब बेंच ने सख्त टिप्पणी की थी.  

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नूपुर शर्मा की पहली याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि देशभर में बदतर हालात के लिए सिर्फ आप जिम्मेदार हैं. साथ ही कहा था कि नुपुर शर्मा को नेशनल टीवी पर पूरे देश से माफी मांगनी चाहिए. इस दौरान कोर्ट ने महज 2 लाइनों में अपना फैसला सुनाया था. 

बता दें कि इसी तरह 1977 में सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस वीआर कृष्णा अय्यर ने राजस्थान के एक 27 साल पुराने मामले में 2 लाइनों में फैसला सुनाया था. जस्टिस अय्यर ने 12 शब्दों में अपना फैसला सुनाते हुए लिखा था कि मूल नियम को शायद जमानत के रूप में रखा जा सकता है लेकिन जेल नहीं के रूप में नहीं. तब से यह नियम 'बेल, न कि जेल' के रूप में प्रचलित है. 

वहीं, पिछले सोमवार को सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस एमएम सुंदरेश की बेंच ने 45 साल पहले के जस्टिस कृष्णा अय्यर के शब्दों को दोहराया. पीठ ने कहा कि गिरफ्तारी एक कठोर कदम है, इससे स्वतंत्रता में कमी आती है. इसे संयम से इस्तेमाल किया जाना चाहिए. 4 दशक से अधिक समय के बाद भी सर्वोच्च न्यायालय के दोनों निर्णय एक ही सिद्धांत को दोहराते हैं कि किसी व्यक्ति की स्वतंत्रता पवित्र है, इस मौलिक अधिकार का उल्लंघन तब तक नहीं किया जाना चाहिए, जब तक कि बिल्कुल आवश्यक न हो.

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नूपुर की पहली याचिका पर क्या कहा सुप्रीम कोर्ट ने?

नूपुर शर्मा ने इससे पहले सुप्रीम कोर्ट में जो याचिका दायर की थी, उसमें भी जान का डर बताया था. साथ ही देश के अलग-अलग हिस्सों में दर्ज 9 FIR की एक जगह सुनवाई की गुहार लगाई थी. इस मामले में सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला ने नूपुर शर्मा और पैगंबर मोहम्मद पर उनकी टिप्पणी की आलोचना की थी. साथ ही पूछा था कि उन्हें अभी तक गिरफ्तार क्यों नहीं किया गया.

क्या रिकॉर्ड से हटाई जा सकती हैं टिप्पणियां?

सुप्रीम कोर्ट की इस टिप्पणी की सोशल मीडिया पर काफी चर्चा हुई. अब सवाल उठता है कि क्या जो टिप्पणियां केवल मौखिक थीं और रिकॉर्ड का हिस्सा नहीं थीं, उन्हें सर्वोच्च न्यायालय द्वारा हटाया जा सकता है? हाल के कुछ उदाहरणों से पता चलता है कि यह संभव है. जुलाई 2021 में बॉम्बे हाईकोर्ट के जस्टिस एसएस शिंदे ने दिवंगत पुजारी स्टेन स्वामी की प्रशंसा करते हुए अपनी मौखिक टिप्पणी वापस ले ली थी, क्योंकि एनआईए ने दावा किया था कि टिप्पणियों ने एजेंसी के खिलाफ नकारात्मक धारणा पैदा की थी. न्यायमूर्ति शिंदे ने स्पष्ट किया था कि स्टेन स्वामी के लिए उनकी प्रशंसा गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम के तहत उनकी कैद को लेकर नहीं थीं.

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