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ओडिशाः दोनों हाथ नहीं, फिर भी बनाता है भगवान जगन्नाथ की खूबसूरत पेंटिंग्स, बोतलों पर भी भरता है रंग

17 साल की उम्र में हादसे का शिकार होकर दोनों हाथ- एक पैर गंवाने वाले प्रभाकर प्रधान ने पेंटिंग के जुनून को जिंदा रखा और आज यही इनकी पहचान बन गई है. जो भी प्रभाकर प्रधान की कलाकृतियों को देखता है, उसकी तारीफ किए बिना नहीं रह पाता.

अपनी पेंटिंग्स के साथ प्रभाकर प्रधान अपनी पेंटिंग्स के साथ प्रभाकर प्रधान
मोहम्मद सूफ़ियान
  • भुवनेश्वर,
  • 15 सितंबर 2021,
  • अपडेटेड 12:03 AM IST
  • घर के सजावट के लिए इस्तेमाल होती हैं रंग भरी बोतलें
  • रेल हादसे में प्रभाकर प्रधान ने गंवा दिए थे दोनों हाथ, 1 पैर

धरती पर प्रतिभाओं की कमी नहीं. ओडिशा में भी एक विलक्षण प्रतिभा का धनी एक ऐसा कलाकार है जिसके दोनों हाथ और एक पैर नहीं हैं फिर भी वह भगवान जगन्नाथ की खूबसूरत पेंटिंग्स बनाता है. 17 साल की उम्र में हादसे का शिकार होकर दोनों हाथ- एक पैर गंवाने वाले प्रभाकर प्रधान ने पेंटिंग के जुनून को जिंदा रखा और आज यही इनकी पहचान बन गई है. जो भी प्रभाकर प्रधान की कलाकृतियों को देखता है, उसकी तारीफ किए बिना नहीं रह पाता.

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प्रभाकर प्रधान अभी 26 साल के हो चुके हैं और अपनी खूबसूरत पेटिंग्स की वजह से काफी चर्चित हैं. इन दिनों उनकी बनाई पेटिंग्स ही उनकी पहचान बन चुकी हैं. प्रधान राजधानी भुवनेश्वर के एक एनजीओ ओडिशा पतिता उद्धार समीति की ओर से संचालित एकामरा निलय (आश्रय केंद्र) में रहते हैं. आजतक से बातचीत में प्रधान ने कहा कि बचपन से ही पेंटिंग का शौक रहा है. पढ़ाई के दौरान स्कूल की पेटिंग प्रतियोगिता में मेरा प्रदर्शन सबसे अच्छा होता था. कई बार स्कूल में पेटिंग के लिए पुरस्कार भी मिला था. जिला स्तरीय पेंटिंग प्रतियोगिता में भी मेरी पेंटिंग को हर किसी ने सराहा था और जिलाधिकारी ने मेडल और पांच हजार रुपये का इनाम भी दिया था.

मिट्टी के बर्तन पर रंग भरते प्रभाकर प्रधान

प्रभाकर प्रधान बताते हैं कि गरीबी के कारण 10वीं तक पढ़ाई के बाद बीच में ही पढ़ाई छोड़नी पड़ी और घर चलाने के लिए एक दुकान पर काम करने लगा. उन्होंने बताया कि 2012 में एक रेल हादसे का शिकार हो गया जिसमें दोनों हाथ और एक पैर कट गया जिसके बाद जिंदगी बदल गई. इस हादसे ने मुझे शरीरिक रूप से दिव्यांग बनाया ही, आर्थिक रूप से भी तोड़ दिया लेकिन मैंने हौसला नहीं खोया.

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बगैर हाथ पेंटिंग बनाने में होती थी दिक्कत

प्रभाकर प्रधान ने कहा कि हादसे के बाद अपने पुराने हुनर को फिर से पहचान देना चाहता था लेकिन बिना हाथ के पेटिंग बनाना काफी चुनौतीपूर्ण था. शुरुआत में बिना हाथ के पेटिंग ब्रश पकड़ना मुश्किल हो रहा था. धीरे-धीरे मैंने मुंह के बल ब्रश को कटे हाथों में रखकर दोबारा पेटिंग करना शुरु किया. कुछ ही दिनों के बाद पेटिंग पहले की तरह खूबसूरत बनने लगी. अभी करीब 45 मिनट में एक पेटिंग तैयार कर लेता हूं.

उन्होंने कहा कि अभी तक दर्जनों पेटिंग्स तैयार कर चुका हूं जिसमें भगवान जगन्नाथ, उनके बड़े भाई बलभद्र और उनकी बहन सुभद्रा की मिट्टी के बर्तन पर बनाई गई तस्वीर भी शामिल है. मां सरस्वती, गणेशजी, हाथी, घोड़ा और चाय पीने वाले कप पर भी पेटिंग की है. उन्होंने साथ ही ये भी कहा कि घर को सजाने के लिए बोतल पर डेकोरेटिव पेटिंग भी किया है जिसमें तरह-तहर के डिजाइन हैं. दर्जनों गमलों पर भी चित्र उकेरे हैं.

इच्छाशक्ति मजबूत हो तो कुछ भी असंभव नहीं

प्रभाकर प्रधान ने कहा कि अपनी पेटिंग को देखकर दिल से खुश हो जाता हूं. उन्होंने कहा कि लोग कुछ भी करने से पहले हिम्मत हार जाते हैं. कोई काम असंभव नहीं है, बस इच्छाशक्ति मजबूत होनी चाहिए. प्रभाकर प्रधान ने कहा कि हमारे आसपास के लोग काम शुरु करने से पहले ही नहीं कर पाने की बात कर हार मान लेते हैं. यहीं कारण है कि सामान्य कार्य भी लोगों को असंभव लगता है.

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