
29 अक्टूबर, 1999 का दिन खोखन प्रमाणिक कभी नहीं भूल सकते. कारण, इसी दिन ओडिशा के जगतसिंहपुर जिले में उनके गांव में तेज लहरें आईं और उनके माता-पिता और भाई बह गए. खोकन तब 7 साल के थे. हालांकि पिछले दो दशकों में बहुत कुछ बदल गया है. एक के बाद एक घर बर्बाद होते चले गए. उस दिन सुपर साइक्लोन 260 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से पारादीप में लैंडफॉल बनाते हुए ओडिशा से टकराया था. इसमें लगभग 10,000 लोग मारे गए थे और हजारों लोग घायल हुए थे. इस सुपर साइक्लोन ने विनाश के ऐसे निशान छोड़े, जिसे आज भी लोग याद कर कांप उठते हैं.
गुजरात की ओर बढ़ रहे चक्रवात बिपरजॉय के कारण एक बार फिर ओडिशा में 1999 में हुई तबाही याद आने लगी है. हालांकि तब और अब के हालातों में काफी बदलाव हुए हैं. गुजरात में करीब एक लाख लोगों को सुरक्षित इलाकों में पहुंचाया गया है. सशस्त्र बल स्टैंडबाय पर हैं और राष्ट्रीय आपदा राहत बल (NDRF) और राज्य आपदा राहत बल (SDRF) की टीमों को तैनात किया गया है.
अक्टूबर 1999 में 7 वर्षीय खोकन अपनी दादी के साथ एक बरगद के पेड़ पर चढ़ गए थे. उनके पिता, जो बाद में समुद्र के चक्रवाती तूफान से बह गए थे. उन्होंने ही दोनों की पेड़ पर चढ़ने में मदद की थी. उस भयानक तूफान में खोकन ने लगभग अपना पूरा परिवार खो दिया था.
1999 का सुपर साइक्लोन
1999 में रिवाइंड करें तो उस सुपर साइक्लोन के चलते सरकारों ने कई सबक लिए और कई चीजों में बदलाव किए गए. दरअसल, ओडिशा में 1891 के बाद से 100 से अधिक चक्रवाती तूफान आए, जो कि देश में किसी सबसे अधिक है. 1999 का सुपर साइक्लोन, जिसे पारादीप साइक्लोन के रूप में भी जाना जाता है, काफी अलग था. इससे हुई तबाही आज भी लोग भूले नहीं हैं. इससे पहले इतनी बड़ी तबाही किसी तूफान में नहीं हुई. इसके पीछे का सबसे बड़ा कारण था कि 1999 में भारत के मौसम विभाग के पास आज की तरह मजबूत बुनियादी ढांचा नहीं था.
सरकार के सामने थीं ये दो चुनौती
तब की बात करें तो 26 अक्टूबर को, मौसम विज्ञान महानिदेशक (DGM), IMD ने ओडिशा (तब उड़ीसा) को एक चक्रवाती तूफान के बारे में सूचित किया, जो भारत के पूर्वी तट की ओर पश्चिम की ओर बढ़ रहा था. यह चक्रवात के राज्य के तट से टकराने से 48 घंटे पहले की बात थी. ओडिशा सरकार ने इसके बाद लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाने के लिए कड़ी मशक्कत की. हालांकि सरकार के सामने दो बड़ी चुनौतियां थीं. एक, लोगों अपना घर और सामान छोड़कर जाने को तैयार नहीं थे. दूसरा ओडिशा में तब पर्याप्त चक्रवात आश्रय स्थल नहीं थे. उस समय राज्य में केवल 21 आश्रय थे, प्रत्येक में 2,000 लोगों को समायोजित करने की क्षमता थी.
3.5 लाख घर हो गए थे तबाह
आधिकारिक रिकॉर्ड के अनुसार, उस भयंकर तूफान में लगभग 10,000 लोगों की मौत हुई थी. 3.5 लाख से अधिक घर नष्ट हो गए थे और कई गांव पूरी तरह से तूफान और बाढ़ के प्रभाव में बह गए थे. वहीं दो लाख से अधिक जानवर मारे गए थे और 25 लाख लोग बेघर हो गए थे. इस सुपर साइक्लोन में 14 जिले पूरी तरह तबाह हो गए थे और बड़ी संख्या में इमारतें नष्ट हो गई थीं.
सीएम को देना पड़ा था इस्तीफा
इतना ही नहीं, तूफान के कारण संचार सुविधाएं भी बाधित हो गई थीं, जिसके चलते 24 घंटे से अधिक समय तक ओडिशा को बाकी दुनिया से कनेक्शन एक तरह से कट गया था. तब बिजली गुल होने और बिजली के तार टूटने से पूरा प्रदेश अंधेरे में डूबा रहा. विभिन्न गांवों और जिलों के बीच संचार संपर्क टूट गया था और सड़कें समुद्र के पानी में बह गई थीं. दक्षिण रेलवे का रेल लिंक भी भी टूट गया था. साइक्लोन से हुई तबाही के स्तर और इसे रोकने में राज्य की लाचारी ने ओडिशा के तत्कालीन मुख्यमंत्री गिरिधर गमांग को अपने पद से इस्तीफा देने के लिए मजबूर कर दिया था.
ओडिशा ने आगे क्या किया?
2000 में बीजू जनता दल ओडिशा में सत्ता में आई और नवीन पटनायक मुख्यमंत्री बने. एक साल पहले आए सुपर साइक्लोन से तबाह हुआ राज्य अभी भी नुकसान से जूझ रहा था. तब नवीन पटनायक और उनकी सरकार ने माना कि वे राज्य की भौगोलिक स्थिति के कारण ऐसी प्राकृतिक आपदाओं का सामना करने से नहीं बच सकते. इसलिए उन्होंने नुकसान को कम करने और जीवन बचाने के लिए आवश्यक बुनियादी ढांचे का निर्माण करना अपनी प्राथमिकता बना लिया.
पूर्व विशेष राहत आयुक्त ने याद कीं सीएम की वो बातें...
मई 2021 में इंडिया टुडे के साथ एक इंटरव्यू में, ओडिशा के पूर्व विशेष राहत आयुक्त पीके जेना ने 2000 में नवीन पटनायक के साथ अपनी मुलाकात के बारे में बात की. उन्होंने बताया था कि सीएम ने उनसे कहा था कि एक तटीय राज्य होने के नाते ओडिशा पूरी तरह से चक्रवातों से नहीं बच सकता है. केवल एक चीज जो हम कर सकते हैं वह जीवन बचाना है और हर एक जीवन मेरे लिए कीमती है.
नवीन पटनायक सरकार ने उठाए ये अहम कदम
1999 के सुपर साइक्लोन के बाद ओडिशा की सरकार ने एक मजबूत आपदा प्रबंधन तंत्र बनाने के लिए कई इंतजाम किए. इसमें ओडिशा राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण की स्थापना, जिला और ब्लॉक-स्तरीय आपदा प्रबंधन योजना समितियां, प्राकृतिक आपदाओं के बारे में चेतावनी देने के लिए एक प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली और तटीय क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के लिए पक्के घरों का निर्माण शामिल है. अप्रैल 2018 में ओडिशा ने अपने 480 किलोमीटर लंबे तट के साथ रहने वालों के लिए चक्रवात और सुनामी जैसी प्राकृतिक आपदाओं के बारे में लोगों को सचेत करने के लिए एक प्रारंभिक चेतावनी प्रसार प्रणाली (EWDS) की स्थापना की. ओडिशा ने ओडिशा डिजास्टर रैपिड एक्शन फोर्स (ओडीआरएएफ) की 20 से अधिक इकाइयां भी बनाई हैं, जिनमें उच्च प्रशिक्षित और बहु-आपदा से निपटने की क्षमताओं से लैस कर्मियों को शामिल किया गया है.
सरकार के फैसलों से क्या रिजल्ट मिला?
ओडिशा सरकार द्वारा उठाए गए अहम कदमों से प्राकृतिक आपदाओं के कारण होने वाली जनहानि को कम किया गया. पिछले कई वर्षों के आंकड़ों से ये साफ नजर आता है. ओडिशा में पिछले पांच चक्रवाती तूफानों में मरने वालों की संख्या पर एक नजर-
साइक्लोन यास (2021): 10 से कम
चक्रवात अम्फान (2020): 3
चक्रवात फानी (2019): 64
चक्रवात तितली (2018): 77
चक्रवात फैलिन (2013): 44
आपदा प्रबंधन में ओडिशा की सफलता की सभी ने सराहना की है. 2013 में चक्रवात फैलिन के राज्य के प्रबंधन की संयुक्त राष्ट्र द्वारा सराहना की गई, जिसने इसे "ऐतिहासिक सफलता की कहानी" कहा. राज्य का तंत्र अब दूसरों के अनुसरण के लिए एक उदाहरण बन गया है.