
Manipur violence: हिंसाग्रस्त मणिपुर में अब तक शांति बहाली नहीं हो सकी है. इस समय पूर्वोत्तर में सबसे खराब जातीय हिंसा देखने को मिल रही है. राज्य में नगा, कुकी और मैतेई समुदाय के बीच इस संघर्ष के पीछे तमाम तरह के फैक्ट सामने आए हैं. इनमें छोटी-छोटी शिकायतें भी मानी जा रही है. फिलहाल, ये खूनी रंजिश खतरनाक मोड़ पर पहुंच गई है. विशेषज्ञों और यहां के आम लोगों का मानना है कि हिंसा की वजह राज्य में भूमि अधिकारों, सांस्कृतिक प्रभुत्व और ड्रग तस्करी भी है.
मणिपुर में मैतेई समुदाय मुख्य रूप से इंफाल घाटी में रहते हैं और वो इस हिंसा के लिए कुकी आदिवासियों को दोषी ठहराते हैं. जबकि कुकी समुदाय के ज्यादातर लोग पहाड़ी इलाकों में रहते हैं. हिंसा के लिए मैतेई समुदाय के लोग कुकी पर आरोप ला रहे हैं. उनके अनुसार, अफीम की खेती, उग्रवाद और मैतेई को एसटी का दर्जा देने की मांग का विरोध किया जा रहा है.
मैतेई, कुकी और नगा के बीच उलझा विवाद
दूसरी ओर, कुकी आदिवासियों का आरोप है कि मैतेई अनुसूचित जनजाति का दर्जा मांग कर उनकी जमीन हड़पने की कोशिश कर हमारे अस्तित्व को ही खतरे में डाल रहे हैं. वर्तमान में प्रथागत कानून के तहत जनजातीय क्षेत्रों में आदिवासियों के पास भूमि का स्वामित्व हो सकता है. इस विवाद में मैतेई और कुकी के अलावा तीसरा पक्ष नगा भी है.
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अफीम की खेती करता था कुकी समुदाय
मणिपुर विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अंगोम दिलीप कुमार सिंह ने न्यूज एजेंसी को बताया कि कुकी समुदाय लंबे समय से अफीम की खेती करते आ रहे हैं, जिसकी वजह से मणिपुर में एक बड़ा ड्रग कल्चर खड़ा हुआ है. लेकिन, जब सरकार ने उसे नष्ट कर दिया तो समुदाय में आक्रोश पैदा हो गया और हिंसा शुरू हो गई. इतना ही नहीं, कुकी लोगों के बीच बेचैनी का एक अन्य कारण भी है.
NRC भी जनजाति समाज के भड़कने का कारण?
बीजेपी सरकार का नेशनल रजिस्टर फॉर सिटिजनशिप (NRC) का प्रस्ताव पेश करना भी एक वजह है. चूंकि पूर्वोत्तर राज्यों में अन्य जनजातियों के लोग और म्यांमार के लोग अक्सर यहां की सीमाओं के पार आते-जाते रहते हैं. राज्य में हथियारों की मुफ्त उपलब्धता से भी पूरी स्थिति जटिल हो गई है. दशकों से चली आ रही उग्रवाद की विरासत है, जिसमें तीनों प्रमुख समुदाय- मैतेई, नागा और कुकी शामिल हैं.
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'हथियारों के साथ घूम रहे कुकी समुदाय के लोग'
मैतेई नेताओं का दावा है कि कुकी उग्रवादियों ने सरकार के साथ ऑपरेशन समझौते के तहत सस्पेंशन पर हस्ताक्षर किए थे और केंद्रीय बलों द्वारा संरक्षित शिविरों में रहने के लिए सहमत हुए थे. वे अब हथियारों के साथ खुलेआम घूम रहे हैं. हालांकि, इससे असम राइफल्स सहमत नहीं है.
'वन भूमि से हटाने का अभियान भी नहीं आया रास'
असम राइफल्स के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि हथियारों को डबल लॉक के तहत रखा जाता है, जिसमें एक ग्रुप लीडर के पास और दूसरी पुलिस के पास लॉक खोलने का अधिकार होता है. इसके अलावा, अतिक्रमित आरक्षित वन भूमि से कुकी को हटाने का अभियान भी उन आदिवासियों को रास नहीं आया है, जो अनादि काल से वनों को अपना क्षेत्र मानते हैं.
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'पहाड़ियों में फैलना चाह रहे हैं मैतेई'
कुकी समुदाय के एक सेवानिवृत्त सिविल सेवक एस अथांग हाओकिप ने बताया कि मणिपुर की समस्या इसलिए जटिल हो गई है, क्योंकि राज्य में मैतेई समुदाय की 60 फीसदी आबादी हैं, लेकिन प्रदेश की 8 परसेंट जमीन पर ही उनका फैलाव है. ये जमीन इंफाल घाटी की सबसे उपजाऊ है. अब वे पहाड़ियों में भी बढ़ना चाह रहे हैं. लेकिन मणिपुर में मौजूदा कानून उन्हें पहाड़ी इलाकों में जमीन खरीदने की इजाजत नहीं देते हैं. इसलिए वे एसटी दर्जे की मांग कर रहे हैं.
'अफीम की खेती रोकने का स्वागत, लेकिन...'
हालांकि, उन्होंने अफीम की खेती को रोकने के सरकार के फैसले का स्वागत किया है, लेकिन सवाल किया कि प्रशासन कैसे और क्यों पूरे दक्षिण पूर्व एशिया से ड्रग्स को मणिपुर में आने देता है और यहां से देश के अन्य हिस्सों में जाने दे रहा है. इस तरह माना जा रहा है कि विवाद की जड़ में अफीम की खेती को बंद करना और प्रशासन की कार्रवाई खतरनाक रोल निभा रहे हैं.
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'गलतफहमियों से भड़की हिंसा?'
वहीं, मेडिकल छात्रा मैतेई शरणार्थी देविया निंगथौजम बातचीत में हिंसा को लेकर किसी विशेष समुदाय को दोष नहीं देना चाहती हैं. उनके अनुसार, छोटी-छोटी गलतफहमियों ने इस स्थिति को जन्म दिया है. हमारे गांव के किसी भी बूढ़े से पूछो तो कुकी को दोष देंगे. किसी भी कुकी से पूछो तो कहेंगे हमारी गलती है. सच तो यह है कि यह टकराव किसी समुदाय विशेष ने शुरू नहीं किया. उन्होंने कहा कि यह छोटी-छोटी शिकायतों और गलतफहमियों के कारण झड़प हुई.