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निजी अस्पताल पर एक करोड़ का हर्जाना, डिलीवरी के बाद हो गई थी महिला की मौत

प्रसव के बाद महिला की मौत मामले में राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग ने फैसला सुनाया है. आयोग ने दोषी पाए गए बेंगलुरु के निजी अस्पताल को एक करोड़ एक लाख रुपए हर्जाना अदा करने का आदेश दिया है. महिला की नाबालिग बेटी ने उपभोक्ता आयोग का दरवाजा खटखटाया था. आयोग ने अस्पताल प्रबंधन को नाबालिग बेटी को 90 लाख रुपए और याचिकाकर्ता बच्ची के नाना को 10 लाख रुपए मुआवजा और मुकदमा खर्च देने के आदेश दिए.

राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग ने मामले में फैसला सुनाया है. (फाइल फोटो) राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग ने मामले में फैसला सुनाया है. (फाइल फोटो)
संजय शर्मा
  • नई दिल्ली,
  • 29 जून 2023,
  • अपडेटेड 12:10 PM IST

डिलीवरी के बाद महिला की मौत मामले में राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग ने बड़ा निर्णय सुनाया है. आयोग ने निजी अस्पताल की लापरवाही पाए जाने पर एक करोड़ रुपए का हर्जाना दिए जाने के आदेश दिए हैं. अस्पताल को 90 लाख रुपए महिला की बेटी को देना होंगे. जबकि 10 लाख रुपए महिला के पिता को दिए जाने के लिए कहा है. आयोग ने कहा है कि सर्जरी के जरिए बच्चा जन्म लेता है तो अस्पताल प्रबंधन आनन-फानन में जच्चा (मां) को उसकी इच्छा के खिलाफ डिस्चार्ज नहीं कर सकता है. मामला कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु का है.

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आयोग ने इस बाबत दिए आदेश में कहा है कि अगर जच्चा को परेशानी है तो अस्पताल को कम से कम 96 घंटे तक उसकी और बच्चे की सेहत पर निगरानी रखनी होगी. अस्पताल ने उच्च रक्तचाप (High Blood Pressure) और अन्य परेशानी के बावजूद जच्चा की तीसरे दिन ही छुट्टी कर अस्पताल से घर भेज दिया. महिला खुद एक डॉक्टर थी. प्रसव के बाद चिकित्सीय लापरवाही की वजह से बाद में महिला डॉक्टर की मृत्यु हो गई. 

'बेटी ने आयोग में लगाई थी याचिका'

उसकी नाबालिग बेटी ने उपभोक्ता आयोग का दरवाजा खटखटाया था. आयोग ने अस्पताल प्रबंधन को महिला की नाबालिग बेटी को 90 लाख रुपए और याचिकाकर्ता बच्ची के नाना को 10 लाख रुपए मुआवजा और मुकदमा खर्च और मानसिक प्रताड़ना को लेकर एक लाख रुपए अदा करने का आदेश दिया है. आयोग ने निजी अस्पताल के प्रबंधन को लापरवाही और मनमानी का दोषी पाया है.

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'मां की मौत के बाद पिता ने कर ली दूसरी शादी'

याचिकाकर्ता बच्ची को जन्म के कुछ हफ्ते बाद से ही नाना-नानी ने पाला, क्योंकि मां के निधन के बाद उसके पिता ने दूसरी शादी कर ली थी. घटना 9 दिसंबर 2013 की है. बेंगलुरु में एक गर्भवती महिला प्रसव के लिए निजी अस्पताल में एडमिट हुई. गायनोलॉजिस्ट ने कहा कि सर्जरी से ही प्रसव हो सकता है. प्रसव हुआ. बच्ची पैदा हुई. महिला को उच्च रक्तचाप और चीरे में दिक्कत के बावजूद अस्पताल प्रबंधन ने प्रसव के तीसरे दिन यानी पचास घंटे के दौरान ही छुट्टी देकर घर भेज दिया. 

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'हादसे के लिए अस्पताल प्रबंधन जिम्मेदार'

घर में दिक्कत बढ़ने पर 12 दिसंबर को फिर महिला को अस्पताल लाया गया. मामूली चेकअप के बाद आधे घंटे में ही उसे फिर घर भेज दिया. आयोग के सदस्य डॉक्टर एमएस कानितकर की अगुआई वाली बेंच ने अपने आदेश में कहा है कि अस्पताल प्रबंधन इस हादसे के लिए स्पष्ट तौर पर जिम्मेदार है. आयोग की बेंच ने आदेश में साफ कहा है कि सामान्य प्रसव में कम से कम 48 घंटे और सर्जरी से हुए प्रसव में 96 घंटे जच्चा-बच्चा की निगरानी जरूरी है.

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