
मथुरा के शाही ईदगाह परिसर के सर्वेक्षण की अनुमति देने के इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए AIMIM सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि मुसलमानों से उनकी गरिमा को लूटना ही अब एकमात्र लक्ष्य है. उन्होंने कहा कि मथुरा विवाद दशकों पहले मस्जिद समिति और मंदिर ट्रस्ट के बीच आपसी सहमति से सुलझाया गया था.
ओवैसी ने X (पहले ट्विटर) पर पोस्ट किया कि प्लीज गिव एंड टेक वाला उपदेश न दें. एक पक्ष लगातार मुसलमानों को निशाना बनाने में रुचि रखता है, लेकिन कानून अब कोई मायने नहीं रखता है. मुसलमानों से उनकी गरिमा को लूटना ही अब एकमात्र लक्ष्य है. ओवैसी ने कहा कि बाबरी मस्जिद फैसले के बाद मैंने कहा था कि इससे संघ परिवार की शरारतें बढ़ेंगी. यह सब तो प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट के बावजूद ऐसी मुकदमेबाजी पर रोक लगाने के बावजूद हो रहा है.
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गुरुवार को उत्तर प्रदेश के मथुरा में श्री कृष्ण जन्मभूमि मंदिर से सटे शाही ईदगाह परिसर का अदालत की निगरानी में एडवोकेट कमिश्नरों की तीन सदस्यीय टीम द्वारा प्राथमिक सर्वेक्षण की अनुमति दी है. सर्वेक्षण के तौर-तरीके 18 दिसंबर को तय किए जाएंगे, जब अदालत सुनवाई फिर से शुरू करेगी.
ओवेसी ने पोस्ट में कहा कि चाहे वह काशी हो, मथुरा हो या लखनऊ की टाइल वाली मस्जिद. यह एक ही हैं. कोई भी यहां समझौते को पढ़ सकता है, जिसे अदालत के समक्ष तय किया गया था. उन्होंने कहा कि प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट अभी भी लागू है, लेकिन इस समूह ने कानून और न्यायिक प्रक्रिया का मजाक बना दिया है. सुप्रीम कोर्ट को इस मामले पर 9 जनवरी को सुनवाई करनी थी, तो ऐसी क्या जल्दी थी कि सर्वेक्षण कराना पड़ा.
वहीं, हिंदू पक्ष का दावा है कि ईदगाह मस्जिद का निर्माण मुगल बादशाह औरंगजेब ने भगवान कृष्ण के जन्मस्थान की 13.37 एकड़ जमीन पर एक मंदिर को तोड़कर किया था. यह मूल वाद उच्च न्यायालय में लंबित है.