
इस बार देश 26 जनवरी को 74वां गणतंत्र दिवस मना रहा है. इस मौके पर भारत सरकार द्वारा पद्म पुरस्कारों का भी ऐलान किया गया है. इस साल 106 हस्तियों में से 6 को पद्म विभूषण, 9 को पद्म भूषण और 91 को पद्म श्री से सम्मानित किया जाएगा. इनमें 19 महिलाएं भी शामिल हैं. पद्म पुरस्कारों की लिस्ट में गुजरात स्थित गिर सोमनाथ जिले के तलाला तहसील के जांबुर गांव की रहने वाली अफ्रिकी मूल के सीद्दी समाज की महिला हीरबाई लोधी का भी नाम शामिल है. इनका नाम शायद ही पहले किसी ने सुना हो, लेकिन इनके योगदान की वजह से मोदी सरकार ने इन्हें पद्म श्री से नवाजा है.
दरअसल, सैकड़ों साल पहले हैदराबाद के जूनागढ़ के नवाब ने अफ्रिका की इस आदिवासी जाती के लोगों को भारत में लाकर बसाया था, जो आज सीद्दी समुदाय के तौर पर जाने जाते हैं और गुजरात के गीर के जंगल में रहते हैं. हीरबाई लोधी भी इसी समाज से आती हैं. वह खुद काफी कम पढ़ी लिखी हैं, लेकिन सीद्दी समुदाय के लोगों के उथान के लिए उन्होंने काफी काम किया है.
उन्होंने अपने समाज में शिक्षा के प्रमाण को बढ़ाने के लिए काम किया है. वह खुद यहां के लड़के और लड़कियों को शिक्षा दिलाने के लिए लगातार प्रयास करती रहीं. इसके अलावा उन्होंने सीद्दी महिलाओं को रोजगार दिलाने और सामाजिक कार्यों के जरिए समाज में बदलाव लाना ही अपने जीवन का मकसद बनाया. इसी कार्य के लिए अब केन्द्र सरकार उन्हें सम्मानित करने जा रही है.
14 साल की उम्र में हो गई थी शादी
14 साल की उम्र में हीरबाई की शादी होने के बाद उनका जीवन काफी कठनाईओं से भरा हुआ था. बस तभी से उन्होंने सीद्दी समाज को आगे बढ़ाने का प्रयास शुरू कर दिया था. जिसमें उनके लिए प्रेरणा का स्त्रोत बना रेडियो. रेडियो कार्यक्रम के जरिए सरकार की योजनाओं की जानाकरी और विकास के कार्यक्रमों की जानकारी हासिल कर उन्होंने अपनी मुहिम की शुरुआत की. पढ़ी-लिखी ना होने के बावजूद सरकार की योजनाओं की जानकारी लिए वे गांधीनगर स्थित सचिवालय के चक्कर लगाती. समाज के पुरुषों के जरिए कई बार हीरबाई का विरोध भी किया गया. लेकिन महिलाओं के लिए कुछ करने की उनकी चाह ने आज इस पूरे इलाके में शिक्षा की एक नई ज्योति जलाई है.
समाज की महिलाओं के बैंक खाते खुलवाने को किया संघर्ष
उन्होंने गांव की महिलाओं की छोटी-छोटी बचत से महिलाओं के लिए एक मंडली की शुरुआत भी की थी. जिसमें महिलाओं की तादाद बढ़ने के बाद उन्होंने महिलाओं का बैंक में खाता खुलवाने के लिए काफी महनत की. कारण, यहां की महिलाएं पढ़ी-लिखी नहीं थीं, वो बैंक के बारे में कुछ नहीं जानती थीं. जिसके बाद हीराबाई ने बैंकों के चक्कर काट-काटकर अपने समाज की महिलाओं के खाते बैंक में खुलवाए. हालांकि इसके लिए उन्हें काफी संघर्ष करना पड़ा था.