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परमवीर जोगिंदर सिंहः बुमला पास पर चीनियों के उड़ा दिए थे होश, गोली लगने के बावजूद सैकड़ों को मारा

1962 Indo-China War: जांघ में गोली लगने के बाद भी सूबेदार जोगिंदर सिंह ने हार नहीं मानी खुद हल्की मशीन-गन से चीन के कई सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया था. जानिए इस परमवीर की कहानी...

1962 के भारत-चीन युद्ध में बहादुरी से लड़कर शहीद हुए थे सूबेदार जोगिंदर सिंह. (फोटोः KC Velaga/Wiki) 1962 के भारत-चीन युद्ध में बहादुरी से लड़कर शहीद हुए थे सूबेदार जोगिंदर सिंह. (फोटोः KC Velaga/Wiki)
ऋचीक मिश्रा
  • नई दिल्ली,
  • 16 जून 2022,
  • अपडेटेड 8:30 PM IST
  • जब 200 चीनी सैनिकों के सामने सिर्फ 27 भारतीय जवान थे
  • 3 बार 200-200 चीनी सैनिकों ने किया था हमला

सूबेदार जोगिंदर सिंह के लिए जंग कोई बड़ी बात नहीं थी. द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान बर्मा की तरफ से लड़ाई लड़ी. 1947-48 में भारत-पाकिस्तान युद्ध लड़ा. कई पाकिस्तानी फौजियों को मौत के घाट उतारा. कइयों को वापस उनके मुल्क खदेड़ दिया. लेकिन उनकी असली बहादुरी की कहानी पता चली 1962 में हुए भारत-चीन युद्ध के दौरान. 

20 अक्टूबर 1962 को चीन की सेना ने एक साथ कई इलाकों पर हमला शुरु कर दिया. इससे नमखा चू सेक्टर समेत पूर्वी सीमा के कई सारे इलाके चीन के कब्जे में जा चुके थे. अब चीनियों की सबसे बड़ी लालच तवांग पर कब्जा करना था. चीन को पता नहीं था की आगे की तरफ भारतीय सेना की पहली सिख बटालियन के जवान खड़े हैं.  

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200 सैनिकों के सामने सिर्फ 27 सैनिक

बुमला पास के पास सूबेदार जोगिंदर सिंह की टुकड़ी मौजूद थी, इसमें कुल 27 जवान थे. इनके पास गोला बारूद की भारी कमी थी पर हौसलों को नहीं. कुछ ही देर में इस फ्रंट पर लड़ाई शुरू हो गई. करीब 200 चीनी सैनिकों ने हमला किया. इस हमले में कई चीनी सैनिक मारे गए. कुछ घायल हो गए जितने चीनी सैनिक बचे वह भाग गए. 

परम योद्धा स्थल पर लगी परमवीर चक्र विजेता सूबेदार जोगिंदर सिंह की मूर्ति. (फोटोः रक्षा मंत्रालय/विकिपीडिया)

चीनियों के दो हमले पूरी तरह फेल हुए 

भारतीय जवानों का जवाब इतना करारा था की चीनी हमला नाकाम हो गया. 200 चीनी सैनिक दोबारा तैयार होकर हमला करने आए. इस हमले को भी भारतीय फौज ने नाकाम कर दिया. इसमें भारतीय सेना को भी नुकसान पहुंचा. इसी बीच सूबेदार जोगिंदर सिंह को मशीन गन की एक गोली जांघ में लगी. वे एक बंकर में घुसे. पट्टी बांधी. फिर लड़ने के लिए मैदान में उतर गए. अपने सैनिकों का हौसला बढ़ाते रहे. चीनियों का बुरा हाल कर दिया था.

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तीसरा और आखिरी हमला भयावह था

कुछ देर की शांति के बाद 200 सैनिकों की एक चीनी टुकड़ी फिर हमला करने आ गई. सूबेदार सिंह के घायल जवान इस टुकड़ी से टकरा गए. उस समय भारतीय जवानों के पास गोला बारूद लगभग खत्म हो चुका था. सूबेदार जोगिंदर सिंह भी घायल हो चुके थे. सूबेदार जोगिंदर सिंह ने बचे हुए सैनिकों को तैयार करके खंजर का उपयोग करने को कहा. राइफलों की नोक पर खंजर लगाए गए. ‘जो बोले सो निहाल, सत श्री अकाल’ का उद्धघोष करते हुए चीनी सैनिकों पर हमला कर दिया. जब सूबेदार जोगिंदर सिंह के गनर शहीद हो गए, तब उन्होंने 2-इंच वाली मोर्टार खुद फायर करनी शुरु की. कई राउंड दुश्मन पर चलाए. कई चीनी सैनिकों को मौत की नींद सुला दिया. लेकिन बुरी तरह से घायल सूबेदार जोगिंदर सिंह को चीनियों ने युद्ध बंदी बना लिया. वहां से तीन भारतीय सैनिक बच निकले थे, जिन्होंने जा कर सूबेदार जोगिंदर सिंह की बहादुरी की कहानी लोगों को बताई. 

युद्धबंदी बनाए जाने के कुछ घंटों बाद हो गए शहीद 

पीपुल्स लिबरेशन आर्मी ने जब उन्हें बंदी बना लिया तो कुछ घंटे बाद ही वो शहीद हो गए. सर्वोच्च बलिदान देने, सैनिकों को युद्ध के दौरान प्रेरित करने और अंत तक लड़ने के लिए भारत सरकार ने उन्हें 1962 में परम वीर चक्र से सम्मानित किया.  चीन ने उनकी अस्थियां उनकी बटालियन को दे दी थीं. जोगिंदर सिंह का जन्म 26 सितंबर 1921 पंजाब के छोटे से गांव मेहकालन में हुआ था. आरंभिक शिक्षा गांव में हुई 10वीं पास कर के बाद सिख रेजीमेंट में शामिल हो गए थे. तब उनकी उम्र मात्र 15 वर्ष थी. उनका सेना में जाने का सपना था, जो उन्होंने 28 सितंबर 1936 को पूरा किया. 

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