
पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति जनरल परवेज मुशर्रफ का निधन हो गया है. उनका इलाज संयुक्त अरब अमीरात के अमेरिकी अस्पताल में चल रहा था. वह अमाइलॉइडोसिस बीमारी से जूझ रहे थे. 11 अगस्त 1943 को दिल्ली के दरियागंज में जन्मे परवेज मुशर्रफ की छवि एक शोमैन वाली थी. तख्तापलट में नवाज शरीफ को हटाकर वह अपने देश के राष्ट्रपति बने थे.
इतना ही नहीं, कारगिल के कर्ता-धर्ता भी मुशर्रफ ही थे. वह अपने राष्ट्रपति के कार्यकाल के दौरान आगरा में हुए शिखर सम्मेलन में शिरकत करने आए थे. उन दिनों अटल बिहारी वाजपेयी भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री थे. लेकिन इस यात्रा के दौरान ऐसा क्या हुआ कि अजमेर में ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह पर जाने की चाहत मन में लेकर आए मुशर्रफ को दौरा बीच में ही छोड़कर आनन-फानन में पाकिस्तान लौटना पड़ा था.
वो साल 2001 का था. 14 से 16 जुलाई तक आगरा में बैठकों का कार्यक्रम तय किया गया था. आगरा में बैठक का चुनाव अटल बिहारी वाजयेपी ने किया था. इस जगह के चुनाव के पीछे की बड़ी वजह भी यही थी कि मुगलों की राजधानी बातचीत के लिए उपयुक्त रहेगी. हालांकि शुरुआत में बैठक के लिए गोवा को चुना गया था, लेकिन अटलजी ने उसे बदल दिया. हालांकि जल्द ही यह साफ हो गया था कि मुशर्रफ अपनी ही राह चलने पर तुले हुए हैं. मीटिंग की शुरुआत में ही उन्होंने कश्मीरी अलगाववादियों के साथ मुलाकात कर विवाद खड़ा कर दिया. इतना ही नहीं, मुशर्रफ के दिल्ली आने से कुछ घंटे पहले ही भारत-पाकिस्तान बॉर्डर पर दोनों देशों के सैनिकों के बीच गोलीबारी हुई थी.
लेखक किंगशुक नाग अपनी किताब 'जननायक अटलजी' में लिखते हैं कि 2001 में ऐसा पहली बार हो रहा था कि इस महत्वपूर्ण दौरे के दूसरे दिन हिंसक वारदातें हुईं. आतंकियों और भारतीय सैनिकों के बीच मुठभेड़ में 18 लोग मारे गए थे. इस बीच आगरा में जनरल परवेज मुशर्रफ अपना खेल खेल रहे थे. जनरल की जुबान लगातार आग उगल रही थी. हैरानी की बात ये थी जनरल परवेज मुशर्रफ ने ऑफ द रिकॉर्ड नाश्ते की बैठक के लिए वरिष्ठ भारतीय पत्रकारों को बुलाया था, जिसका सीधा प्रसारण किया गया था. इस बैठक में जनरल ने अपने दिल की बात सामने रख दी. इसके चलते अटल बिहारी वाजपेयी और उनके मंत्री नाराज हो गए थे.
कुल मिलाकर भारतीय और पाकिस्तानी पक्ष के बीच विवाद उभर आए थे. क्योंकि भारत सीमा पार से आतंकवाद के मुद्दे पर बातचीत के लिए जोर डाल रहा था, जिसने नई सदी की शुरुआत के साथ गंभीर मोड़ ले लिया था. जबकि पाकिस्तान के लिए कश्मीर मुख्य मुद्दा था. इतना ही नहीं, मुशर्ऱफ के लिए सीमा पार से होने वाला आतंकवाद कोई मुद्दा ही नहीं था. क्योंकि मुशर्रफ उन्हें कश्मीरी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी कहते थे, जो कि भारतीय सुरक्षाबलों से लड़ रहे थे.
इसके बाद दोनों पक्षों में इतने मतभेद हो गए थे कि एक साझा बयान भी अंतिम रूप नहीं ले सका था. मुशर्रफ को अजमेर में ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह पर जाना था, लेकिन वह दौरा बीच में छोड़कर ही आनन-फानन में पाकिस्तान लौट गए. बाद में उन्होंने इस बातचीत के विफल होने का ठीकरा लालकृष्ण आडवाणी पर फोड़ा था, उन्होंने दावा किया कि मैंने आगरा (2001 में) छोड़ते समय वाजपेयी साहब को बताया था कि आज आप और मैं दोनों ही अपमानित किए गए हैं, क्योंकि कोई है जो हमसे ऊपर है, हम से ऊपर बैठकर हम जो तय करते हैं, उस पर वीटो लगा सकता है. लेकिन कुछ साल बाद यानी 2010 में उन्होंने आडवाणी को नहीं, बल्कि भारत के विदेश मंत्रालय के संयुक्त सचिव विवेक काटजू को जिम्मेदार ठहराया था.
.ये भी देखें