
सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका (PIL) दायर की गई है, जिसमें सभी मंदिर-मस्जिद विवादों से जुड़े मामलों पर रोक लगाने की मांग की गई है. कांग्रेस नेता आलोक शर्मा और प्रिया मिश्रा ने यह याचिका दाखिल की है. उनका कहना है कि काशी, मथुरा, संभल, अजमेर और अन्य स्थानों से जुड़े ये विवाद सांप्रदायिक सद्भाव को प्रभावित कर रहे हैं.
याचिका में सुप्रीम कोर्ट से अपील की गई है कि केंद्र और राज्य सरकारों को निर्देश दिए जाएं कि वे किसी भी धार्मिक स्थल या मस्जिद के सर्वेक्षण आदेश को लागू न करें, जो Places of Worship Act 1991 के खिलाफ हो. इन विवादित मामलों के चलते समाज में तनाव और सांप्रदायिक ध्रुवीकरण बढ़ रहा है. साथ ही, इन मामलों पर अदालतों में चल रही कानूनी प्रक्रियाएं भी विवाद को और बढ़ा सकती हैं.
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सुप्रीम कोर्ट इस याचिका पर सुनवाई करेगा. अब देखना यह है कि क्या अदालत इसपर क्या फैसला सुनाता है. यह याचिका ऐसे समय में आई है जब संभल और अजमेर से जुड़े विवाद एक बार फिर चर्चा में हैं.
अजमेर दरगाह में शिव मंदिर होने का दावा
बता दें कि राजस्थान के अजमेर की कोर्ट उस याचिका पर सुनवाई के लिए तैयार हो गई है, जिसमें ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह में शिव मंदिर होने का दावा किया गया है. ये याचिका हिंदू सेना के नेता विष्णु गुप्ता की ओर से दाखिल की गई थी. मामले में अजमेर कोर्ट ने अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय, दरगाह कमेटी और आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (ASI) को नोटिस भी जारी किया है. इस मामले पर 20 दिसंबर को अगली सुनवाई होगी.
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याचिका सितंबर में दाखिल की गई थी. इसमें कहा गया है कि अजमेर शरीफ की दरगाह में शिव मंदिर है. याचिका में फिर से पूजा शुरू करने के निर्देश देने की मांग की गई है.
संभल के जामा मस्जिद को लेकर तनाव
दूसरी ओर संभल स्थित जामा मस्जिद को लेकर तनाव जारी है. यहां मुगल शासक बाबर के समय में बनी जामा मस्जिद पर इस बात को लेकर विवाद है कि यहां पहले 'हरि हर मंदिर' था, जहां पर मस्जिद का निर्माण कराया गया था. इसको लेकर हिंदू पक्ष की तरफ से एक वकील ने कोर्ट सर्वे की मांग के साथ स्थानीय कोर्ट में याचिका दायर की थी.
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बाद में कोर्ट ने सर्वे का आदेश जारी किया था, जिसको लेकर इलाके में तनाव पैदा हो गया था. अब इस मामले में ASI ने जो सर्वे किया उस आधार पर विभिन्न संशोधनों और हस्तक्षेपों को लेकर हलफनामा पेश किया है. इसके मुताबिक, जामा मस्जिद को 1920 में संरक्षित स्मारक घोषित किया गया था.
क्या है Places of Worship Act 1991
यह कानून 1991 में लागू किया गया था, जिसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि धार्मिक स्थलों की स्थिति वही रहे जो 15 अगस्त 1947 को थी. इस कानून के तहत किसी भी धार्मिक स्थल की स्थिति को बदला नहीं जा सकता. यह कानून सांप्रदायिक सद्भाव और धार्मिक स्थलों को लेकर विवादों को रोकने के लिए लाया गया था.
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इस कानून के मुख्य प्रावधानों में धार्मिक स्थलों की स्थिति में बदलाव पर रोक है. 15 अगस्त 1947 के बाद किसी भी धार्मिक स्थल (मंदिर, मस्जिद, चर्च, गुरुद्वारा आदि) की स्थिति को बदला नहीं जा सकता. साथ ही इस कानून के तहत किसी भी धार्मिक स्थल की स्थिति को चुनौती देने के लिए नए मुकदमे दर्ज नहीं किए जा सकते. जो मुकदमे पहले से चल रहे थे, उन्हें भी खत्म करने का प्रावधान है.
इस कानून में अयोध्या राम जन्मभूमि विवाद को इससे बाहर रखा गया था. इस कानून का उल्लंघन करने वालों को जेल की सजा और जुर्माने का प्रावधान है. 1991 में इसे लाने का मुख्य उद्देश्य धार्मिक विवादों को रोकना और देश में सांप्रदायिक सौहार्द बनाए रखना था.