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'PM की डिग्री राजनीतिक मकसद वालों को नहीं दिखाएंगे', DU का HC को जवाब

पीएम नरेंद्र मोदी की डिग्री सार्वजनिक करने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है. दिल्ली यूनिवर्सिटी की ओर से कोर्ट में सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट से कहा कि हम रिकॉर्ड कोर्ट को दिखा सकते हैं, लेकिन उन लोगों के सामने उजागर नहीं करेंगे जो केवल प्रचार या राजनीतिक मकसद से पीएम की डिग्री को सार्वजनिक करने की मांग कर रहे हैं.

पीएम मोदी. पीएम मोदी.
संजय शर्मा
  • नई दिल्ली,
  • 27 फरवरी 2025,
  • अपडेटेड 4:58 PM IST

दिल्ली हाईकोर्ट ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की डिग्री को सार्वजनिक करने की मांग वाली याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है. दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद जस्टिस सचिन दत्ता ने दोनों पक्षों के तर्क सुने लिए गए हैं और फैसला सुरक्षित रख लिया गया है.

दिल्ली विश्वविद्यालय की तरफ से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट से कहा कि हम रिकॉर्ड कोर्ट को दिखा सकते हैं, लेकिन उन लोगों के सामने उजागर नहीं करेंगे जो केवल प्रचार या राजनीतिक मकसद से पीएम की डिग्री को सार्वजनिक करने की मांग कर रहे हैं.

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हमें रिकॉर्ड दिखाने में आपत्ति नहीं: DU

उन्होंने बताया कि दिल्ली विश्वविद्यालय को हाईकोर्ट को पीएम की डिग्री और संबंधित रिकॉर्ड दिखाने में कोई आपत्ति नहीं है. PM ने साल 1978 में बैचलर ऑफ आर्ट की डिग्री की है. जबकि केंद्र सरकार ने हाईकोर्ट में कहा कि अगर आरटीआई के नियम को याचिकाकर्ता की मांग के अनुसार, लागू किया गया तो सार्वजनिक प्राधिकरणों के लिए काम करना मुश्किल हो जाएगा. दिल्ली हाईकोर्ट ने इस मामले में फैसला सुरक्षित कर लिया है.

'रद्द होने चाहिए CIC का आदेश'

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि सीआईसी का आदेश रद्द किया जाना चाहिए. हालांकि, मेहता ने कहा कि डीयू को अदालत को रिकॉर्ड दिखाने में कोई आपत्ति नहीं है.

बता दें कि नीरज नामक व्यक्ति द्वारा आरटीआई आवेदन के बाद, केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) ने 21 दिसंबर, 2016 को 1978 में बीए की परीक्षा पास करने वाले सभी छात्रों के रिकॉर्ड के निरीक्षण की अनुमति दी थी. जिस वर्ष प्रधानमंत्री मोदी ने भी यह परीक्षा पास की थी. हालांकि, हाईकोर्ट ने 23 जनवरी 2017 को सीआईसी के आदेश पर रोक लगा दी थी.

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डीयू ने 11 फरवरी को तर्क दिया कि उसके पास सूचना एक जिम्मेदारी की क्षमता में है और जनहित के अभाव में केवल जिज्ञासा के कारण किसी को आरटीआई कानून के तहत निजी जानकारी मांगने का अधिकार नहीं है. उसने कहा कि आरटीआई अधिनियम को मजाक बना दिया गया है, जिसमें प्रधानमंत्री समेत 1978 में बीए की परीक्षा पास करने वाले सभी छात्रों के रिकॉर्ड मांगे गए हैं.

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