
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चीन के साथ भारत के संबंधों पर बात की. उन्होंने स्वीकार किया कि जब दो पड़ोसी होते हैं तो मतभेद स्वाभाविक होते हैं और इस बात पर जोर दिया कि बातचीत ही यह सुनिश्चित करने का एकमात्र तरीका है कि मतभेद विवाद में न बदल जाएं. अमेरिकी पॉडकास्टर लेक्स फ्रीडमैन से अपने पॉडकास्ट में बात करते हुए पीएम मोदी ने आशा व्यक्त की कि चीन के साथ द्विपक्षीय संबंधों में विश्वास, उत्साह और ऊर्जा धीरे-धीरे वापस आएगी.
फ्रीडमैन ने पीएम मोदी से सवाल किया कि आप और शी जिनपिंग (चीनी राष्ट्रपति) एक-दूसरे को दोस्त मानते हैं. हाल के तनावों को कम करने और चीन के साथ संवाद और सहयोग को फिर से शुरू करने में मदद करने के लिए उस दोस्ती को कैसे फिर से मजबूत किया जा सकता है? इसके जवाब में प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत और चीन के बीच संबंध कोई नई बात नहीं है. दोनों देशों की संस्कृतियां और सभ्यताएं प्राचीन हैं. आधुनिक दुनिया में भी, दोनों की महत्वपूर्ण भूमिका है. यदि आप ऐतिहासिक अभिलेखों को देखें, तो सदियों से भारत और चीन ने एक-दूसरे से सीखते रहे हैं. और दोनों मिलकर दुनिया की भलाई के लिए काम करते रहे हैं.
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प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि पुराने रिकॉर्ड बताते हैं कि एक समय पर, भारत और चीन दुनिया के जीडीपी का 50% से अधिक हिस्सा थे. इतना बड़ा योगदान भारत का रहा है. और मैं मानता हूं कि इतने सशक्त संबंध हमारे रहे हैं. इतने गहरे सांस्कृतिक संबंध रहे हैं. पहले की सदियों में हमारे बीच में संघर्ष का इतिहास नहीं है. हमेशा एक-दूसरे से सीखने और एक-दूसरे को समझने के बारे में इतिहास रहा है. एक समय में, बौद्ध धर्म का चीन में गहरा प्रभाव था. हम भविष्य में भी इन संबंधों को मजबूत रखना चाहते हैं. बेशक, मतभेद स्वाभाविक हैं, जब दो पड़ोसी देश होते हैं, तो कभी-कभी मतभेद होना लाजिमी है. यहां तक कि एक परिवार में भी होता है. लेकिन हमारा ध्यान यह सुनिश्चित करने पर है कि ये मतभेद विवाद में न बदले. हम इसी दिशा में सक्रिय रूप से काम करते हैं. कलह के बजाय, हम बातचीत पर जोर देते हैं, क्योंकि केवल बातचीत के माध्यम से ही हम एक स्थिर, सहयोगी संबंध बना सकते हैं.
उन्होंने कहा कि यह सच है कि हमारे बीच सीमा विवाद चल रहे हैं. 2020 में, सीमा पर हुई घटना के कारण हमारे बीच स्थितियां काफी दूरी की बन गई. लेकिन अभी राष्ट्रपति शी के साथ मेरी हाल की बैठक हुई. इसके बाद, सीमा पर स्थिति सामान्य पर चुकी है. 2020 से पहले की स्थितियों में हम काम कर रहे हैं. अब धीरे-धीरे वो विश्वास, उत्साह, उमंग और ऊर्जा वापस आ जाएगी. उसमें कुछ समय लगेगा, क्योंकि पांच साल का अंतराल हो गया है. हमारा साथ होना न सिर्फ फायदेमंद है, बल्कि वैश्विक स्थिरता और समृद्धि के लिए भी जरूरी है. और चूंकि 21वीं सदी एशिया की सदी है, इसलिए हम चाहते हैं कि भारत और चीन स्वस्थ और स्वाभाविक तरीके से प्रतिस्पर्धा करें. प्रतिस्पर्धा कोई बुरी चीज़ नहीं है, लेकिन संघर्ष नहीं होना चाहिए.