
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शुक्रवार को पहला स्वदेशी विमानवाहक युद्धपोत INS Vikrant नौसेना को सौंपेंगे. पीएम मोदी सुबह 9.30 बजे कोचीन शिपयार्ड लिमिटेड कोच्चि में यह युद्धपोत भारतीय नौसेना में कमीशन करेंगे. INS Vikrant की खास बात ये है कि यह एक स्वदेशी युद्धपोत है. इसे 2009 में बनाना शुरू किया गया था. अब 13 साल बाद ये नौसेना को मिलने जा रहा है. इसके साथ ही पीएम मोदी नौसेना के नए Ensign (निशान) का भी अनावरण करेंगे. नौसेना का नया Ensign औपनिवेशिक अतीत से दूर होगा और भारतीय मैरिटाइम हैरिटेज से परिपूर्ण होगा.
4 एफिल टावर के वजन के बराबर लगा लोहा-स्टील
INS Vikrant का वजन 45000 टन है. यानी इसे बनाने में फ्रांस स्थित एफिल टावर के वजन से चार गुना ज्यादा लोहा और स्टील लगा है. इतना ही नहीं इसकी लंबाई 262 मीटर और चौड़ाई 62 मीटर है. यानी यह फुटबॉल के दो मैदान के बराबर है. पहले स्वदेशी युद्धपोत में 76% स्वदेशी उपकरण लगे हैं. इस पर 450 किमी मारक क्षमता वाली ब्रह्मोस मिसाइल भी तैनात रहेगी. इसमें 2400 किमी केबल लगी है. यानी कोच्चि से दिल्ली तक केबल पहुंच सकती है.
एक साथ 30 विमान हो सकेंगे तैनात
IAC Vikrant (Indigenous Aircraft Carrier) में 30 एयरक्रॉफ्ट तैनात हो सकते हैं. इसके अलावा इससे मिग 29K फाइटर जेट भी उड़ान भरके एंटी-एयर, एंटी-सरफेस और लैंड अटैक में भूमिका निभा सकता है. इससे Kamov 31 हेलिकॉप्टर भी उड़ान भर सकता है. Vikrant के नौसेना में शामिल होने के बाद अब भारत उन देशों में शामिल हो गया है, जिनके पास स्वदेशी विमानवाहक पोत के डिजाइन और निर्माण की क्षमता है.
विक्रांत से हल्के हेलिकाप्टर (ALH) और हल्के लड़ाकू विमान (LCA) के अलावा MIG-29 लड़ाकू जेट, Kamov-31, MH-60R और मल्टी रोल हेलिकाप्टरों समेत 30 विमानों से युक्त एयर विंग के संचालन की क्षमता है. शॉर्ट टेक-ऑफ बट, आरेस्टेड लैंडिंग जैसे नए विमान चालन मोड का इस्तेमाल भी इसमें किया गया है.
28 (नौट) समुद्री मील है स्पीड
IAC विक्रांत में 2,300 कंपार्टमेंट के साथ 14 डेक हैं जो लगभग 1,500 जवानों को ले जा सकती और इनकी भोजन की जरूरत को पूरा करने के लिए, इसकी रसोई में लगभग 10,000 रोटियां बनाई जा सकती हैं. इस युद्धपोत में 88 मेगावाट बिजली की चार गैस टर्बाइनें लगी हैं और इसकी अधिकतम गति 28 (नौट) समुद्री मील है. यह 20,000 करोड़ की लागत से बना है. यह पूरी परियोजना रक्षा मंत्रालय और सीएसएल के बीच डील के तीन चरणों में आगे बढ़ी है. यह मई 2007, दिसंबर 2014 और अक्टूबर 2019 में पूरी हुई हैं. यह "आत्मनिर्भर भारत" का आदर्श उदाहरण है, जो 'मेक इन इंडिया' पहल पर जोर देता है.