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मणिपुर: चुराचांदपुर में दारोगा की हत्या, स्नाइपर ने सिर में मारी गोली

मृतक पुलिसकर्मी की पहचान ओंखोमांग के रूप में हुई है, जिसे दोपहर 1 बजे से 1.30 बजे के बीच एक स्नाइपर ने सिर में गोली मार दी. अधिकारियों के मुताबिक घटना में दो अन्य लोगों को भी गोली लगी है. हालांकि ये कौन हैं, इस बारे में अभी जानकारी सामने नहीं आई है.

मृत पुलिसकर्मी की पहचान ओंखोमांग हाओकिप (35) के रूप में हुई है मृत पुलिसकर्मी की पहचान ओंखोमांग हाओकिप (35) के रूप में हुई है
इंद्रजीत कुंडू
  • चुराचांदपुर,
  • 13 सितंबर 2023,
  • अपडेटेड 10:50 PM IST

मणिपुर के चुराचांदपुर जिले में चिंगफेई बंकर नंबर 1 पर ड्यूटी पर तैनात दारोगा की बुधवार दोपहर गोली मारकर हत्या कर दी गई. न्यूज एजेंसी के मुताबिक मृत पुलिसकर्मी की पहचान ओंखोमांग हाओकिप (35) के रूप में हुई है, जिसे दोपहर 1 बजे से 1.30 बजे के बीच एक स्नाइपर ने सिर में गोली मार दी. अधिकारियों के मुताबिक घटना में दो अन्य लोगों को भी गोली लगी है. हालांकि ये कौन हैं, इस बारे में अभी जानकारी सामने नहीं आई है.

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जानकारी के मुताबिक घाटी स्थित विद्रोही समूह (वीबीआईजी) के एक स्नाइपर ने बिष्णुपुर और लम्का (चुराचांदपुर) को अलग करने वाले सैन्य बफर जोन के पास कुकी-ज़ो समुदाय के सब-इंस्पेक्टर की गोली मारकर हत्या कर दी. मीतेई समुदाय के लोगों ने सोशल मीडिया हत्या के बाद जश्न मनाया. ऐसे ही सोशल मीडिया हैंडल ने स्नाइपर की तस्वीर दिखाते हुए कैप्शन दिया: हमारा हीरो जिसने एसआई ओंखोमांग को मार डाला. 

दरअसल, यह हमला मंगलवार सुबह कांगपोकपी जिले में अज्ञात लोगों द्वारा तीन आदिवासियों की गोली मारकर हत्या किए जाने के एक दिन बाद हुआ है. इससे पहले 8 सितंबर को टेंगनौपाल जिले के पल्लेल में तीन अन्य लोग मारे गए और 50 से अधिक घायल हो गए थे.

मणिपुर में कब भड़की थी हिंसा? 

गौरतलब है कि मणिपुर में 3 मई को सबसे पहले जातीय हिंसा की शुरुआत हुई थी. मैतेई समुदाय की अनुसूचित जनजाति (एसटी) में शामिल किए जाने की मांग के विरोध में पहाड़ी जिलों में 'आदिवासी एकजुटता मार्च' आयोजित किया था. तब पहली बार मणिपुर में जातीय झड़पें हुईं. हिंसा में अब तक 150 लोगों की जान चली गई और सैकड़ों लोग घायल हो गए. मणिपुर की आबादी में मैतेई समुदाय की संख्या लगभग 53 प्रतिशत है और वे ज्यादातर इम्फाल घाटी में रहते हैं. कुकी और नागा समुदाय की आबादी 40 प्रतिशत से ज्यादा है. ये लोग पहाड़ी जिलों में रहते हैं.

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मणिपुर में क्या है हिंसा की असली वजह? 

कुकी समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा मिला है, लेकिन मैतेई अनूसूचित जनजाति का दर्जा मांग रहे हैं. नागा और कुकी का साफ मानना है कि सारी विकास की मलाई मूल निवासी मैतेई ले लेते हैं. कुकी ज्यादातर म्यांमार से आए हैं. मणिपुर के चीफ मिनिस्टर ने मौजूदा हालात के लिए म्यांमार से घुसपैठ और अवैध हथियारों को ही जिम्मेदार ठहराया है. करीब 200 सालों से कुकी को स्टेट का संरक्षण मिला. कई इतिहासकारों का मानना है कि अंग्रेज नागाओं के खिलाफ कुकी को लाए थे. नागा अंग्रेजों पर हमले करते तो उसका बचाव यही कुकी करते थे. बाद में अधिकतर ने इसाई धर्म स्वीकार कर लिया जिसका फायदा मिला और एसटी स्टेटस भी मिला.

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