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पीएम मोदी का बर्थडे और चीता प्रोजेक्ट का एक साल, जानिए कूनो नेशनल पार्क में अब तक क्या-क्या हुआ

कूनो नेशनल पार्क में अभी तक 20 चीते लाए जा चुके हैं. इनमें से 14 जीवित हैं. 6 की अलग-अलग कारणों से मृत्यु हो चुकी है. 7 मादा और 7 सात नर चीते कूनो में मौजूद हैं. मादा चीता साशा ने चार शावकों को जन्म दिया था. इनमें से भी तीन की मृत्यु हो चुकी है एक शावक जीवित है.

भारत में चीता प्रोजेक्ट का एक साल पूरा (Photo Aajtak). भारत में चीता प्रोजेक्ट का एक साल पूरा (Photo Aajtak).
गौरव सेन
  • नई दिल्ली,
  • 17 सितंबर 2023,
  • अपडेटेड 9:38 PM IST

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का आज 73वां जन्मदिन है. बीते साल जन्मदिन के मौके पर उन्होंने देश को खास सौगात दी थी. देश की धरती पर 70 साल बाद चीतों ने कदम रखा था. चीता प्रोजेक्ट के तहत नामीबिया से 8 चीतों को विशेष विमान से विशेषज्ञों की निगरानी में एमपी के श्योपुर जिले स्थित कूनो नेशनल पार्क में लाया गया था. खास कार्यक्रम आयोजित किया गया था, जिनमें पीएम मोदी ने खुद शिरकत की थी. उन्होंने चीतों को बाड़े में रिलीज किया था. इस तरह से साल 1952 में देश में विलुप्त घोषित किए गए चीतों ने दोबारा रफ्तार भरी थी. 

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चीता प्रोजेक्ट का एक साल पूरा हो गया है. इस एक साल में यह प्रोजेक्ट काफी उतार-चढ़ाव भरा रहा है. कई चीतों की मौत हो गई. इससे कूनो नेशनल पार्क प्रबंधन पर भी सवाल खड़े हुए. कूनों में अब तक दो खेपों में 20 चीते लाए जा चुके हैं. इनमें से 14 चीते जीवित हैं. चार शावकों का जन्म भी कूनो में हुआ था, लेकिन उनमें से तीन की मौत हो गई और अब एक मादा शावक जीवित है. कुल मिलाकर 15 चीते मौजूदा समय में कूनो में हैं.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कूनो में रिलीज किए थे चीते (Photo Aajtak).

17 सितंबर 2022 से 17 सितंबर 2023 तक प्रोजेक्ट चीता की स्थिति

- 17 सितंबर 2022 को नामीबिया से शुरुआत में 8 चीते लाए गए, सभी को 70 दिन से ज्यादा क्वारंटीन रखा गया था. इसके बाद 7 अक्टूबर को चीता स्टाफ फोर्स का गठन किया गया था. अक्टूबर महीने में सभी चीतों को बड़े बाड़ों में शिफ्ट किया गया. 

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- 18 फरवरी 2023 को 12 चीतों की दूसरी खेप दक्षिण अफ्रीका से भारत आई, शुरुआत में इनको भी क्वारंटीन में रखा गया. 11 मार्च बड़े बाड़ों से खुले जंगल में चीतों को छोड़ने का क्रम चालू किया गया. इसके बाद 24  मार्च को मादा चीता ज्वाला ने 4 शावकों को जन्म दिया. 

- 27 मार्च को कूनो में चीतों की मौतों का सिलसिला शुरु हुआ और मादा चीता साशा की मौत हो गई. 23 अप्रैल को नर चीता उदय की मौत हुई. 9 मई को मादा चीता दक्षा की मौत से एक बार फिर कूनो में हंगामा मचा.

- 25 मई को दो चीता शावकों की मौत हुई.  25 मई को चीता स्टीयरिंग कमेटी का गठन किया गया.

- 11 जुलाई को नर चीता तेजस की मौत हुई. 14 जुलाई को नर चीता सूरज की जान गई. 15 जुलाई को 11 चीते खुले जंगल में थे, जिन्हें बाड़ों में वापस शिफ्ट किया गया.

- 13 अगस्त मादा चीता निर्वा को बाड़े में शिफ्ट करने के साथ ही सभी चीते बाड़े में पहुंचाए गए.

 

कूनो नेशनल पार्क.


विश्व पटल पर श्योपुर ने पाई पहचान

कूनो नेशनल पार्क में पहले शेरों को बसाने की कवायद जारी थी. मगर, यहां पर शेरों की जगह चीतों को लाया गया. देश की धरती पर 70 बाद चीतों की आमद हुई. कूनो नेशनल पार्क को इसलिए सिलेक्ट किया गया था क्योंकि यहां की आवोहवा को चीतों के अनुकूल पाया गया था. चीता प्रोजेक्ट के कूनो में आने से श्योपुर को पहचान मिली. यहां पर जमीनों के दाम बढ़ गए हैं. भविष्य में पर्यटन क्षेत्र बनने पर श्योपुर और भी डेवलप होगा.

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70 फीसदी चीते हैं जीवित

कूनो नेशनल पार्क में 17 सितंबर 2022 को नामीबिया से 8 चीते लाए गए थे, जिसने में दो की मौत हुई है. अभी 6 चीते पार्क में मौजूद हैं. 18 फरवरी 2023 को दक्षिण अफ्रीका से 12 चीते लाए गए थे जिनमें से 4 की मौत हुई है. इनमें 8 चीते जीवित हैं. यानी कि कुल 20 चीते लाए गए  जिनमें से 14 चीते बचे हुए हैं. इनमें 7 नर और 7 मादा हैं. वहीं मादा चीता ज्वाला के 4 शावकों में से एक मादा शावक जीवित है.

चीतों के नए घर किए जा रहे तैयार

कूनों में 20 चीतों को रखे जाने की क्षमता है. वर्तमान में यहां पर 14 वयस्क और 1 मादा शवक मौजूद है. अब चीतों की तीसरी खेप लाने की तैयारी की जा रही है साथ ही चीतों को अन्य वन्यजीव अभ्यारणों में बसाने की भी तैयारी जारी है. पर्यावरण मंत्रालय में अतिरिक्त वन महानिदेशक एसपी यादव ने जानकारी देते हुए कहा था कि चीतों के दो नए स्थानों को चिन्हित किया गया है. इनमें गांधी सागर अभयारण्य और नौरादेही का नाम शामिल है.

उन्होंने बताया था कि गांधी सागर वन्यजीव अभयारण्य में तैयारियां जोरों पर चल रही हैं. उम्मीद है कि यह नवंबर या दिसंबर के अंत तक पूरी हो जाएंगी. काम पूरा होने की रिपोर्ट मिलने पर साइट विजिट की जाएगी. पहले हर तरीके से साइट का मूल्यांकन किया जाएगा. इसके बाद दिसंबर महीने के बाद दक्षिण अफ्रीका से चीतों को लाने पर फैसला लेंगे.

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चीतों के नाम.

चीतों की ब्रीडिंग पर फोकस

परियोजना के दूसरे वर्ष में फोकस के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा था कि पहली बात जो मेरे दिमाग में आती है वह चीतों का प्रजनन है. भारतीय धरती पर पैदा होने वाले शावक बेहतर तरीके से माहौल में ढल सकते हैं. एक बार प्रजनन होता है तो हम समझेंगे कि हमारे देश में जनसंख्या कैसे व्यवहार करेगी. मुख्य बात यह है कि अगले वर्ष भारत की धरती पर अधिक शावक होंगे. 

वहीं, चीतों की मौत होने पर भी उन्होंने बात की थी. यादव ने स्वीकार किया है कि भारत में चीतों के प्रबंधन के पहले वर्ष में सबसे बड़ी चुनौतियों में से मौसम को समझ पाना भी रहा है. अफ्रीकी सर्दियों (जून से सितंबर) के मुकाबले भारतीय गर्मी और मानसून के दौरान कुछ चीतों का अप्रत्याशित विकास हुआ. इसकी अफ्रीकी विशेषज्ञों को भी उम्मीद नहीं थी.

यादव ने बताया कि इस मौसम में सर्दियों से बचाव के लिए निकले कोट में उच्च आर्द्रता और तापमान के साथ मिलकर खुजली पैदा करता है, जिससे जानवरों को पेड़ के तने या जमीन पर अपनी गर्दन खुजलाने की कोशिश करते हैं. इससे चोट लगती है और जहां मक्खियों ने अपने अंडे दिए, वहां कीड़ों का संक्रमण हुआ. अंततः, जीवाणु संक्रमण और सेप्टीसीमिया हुआ, जिससे चीतों की मृत्यु हो गई.

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मादा चीता ज्वाला ने दिया था चार शावकों को जन्म (Photo Aajtak).

इसलिए चुना गया था कूनो नेशनल पार्क

कूनो नेशनल पार्क का मौसम सटीक है चीते (Cheetah) को ग्रासलैंड यानी थोड़े ऊंचे घास वाले मैदानी इलाकों में रहना पसंद है. खुले जंगलों में. घने नहीं. वातावरण में ज्यादा उमस न हो. थोड़ा सूखा रहे. इंसानों की पहुंच कम हो. तापमान बहुत ठंडा न हो. बारिश ज्यादा न होती हो. सभी बातों का ध्यान से विश्लेषण करने के बाद पता चला कि कूनो नेशनल पार्क अफ्रीकन चीतों के लिए सबसे उपयुक्त जगह है. यहां पर चीतों के सर्वाइव करने की संभावना सबसे ज्यादा है.

कूनो नेशनल पार्क 748 वर्ग किलोमीटर का इलाका है. जिसमें इंसानों का आना-जाना बेहद कम है. यहां इंसान नहीं रहते. इस नेशनल पार्क का बफर एरिया 1235 वर्ग किलोमीटर है. पार्क के बीच में कूनो नदी (Kuno River) बहती है. पहाड़ियां हैं, जो बहुत तेज ढाल की नहीं हैं.

दक्षिण-पूर्वी इलाके में पन्ना टाइगर रिजर्व से बाउंड्री जुड़ती है. साथ ही शिवपुरी के जंगल हैं. इस इलाके के पास ही चंबल नहीं बहती है. यानी चीतों के पास कुल मिलाकर 6800 वर्ग किलोमीटर का इलाका रहेगा. अधिकतम औसत तापमान 42.3 डिग्री सेल्सियस रहता है. सबसे न्यूनतम तापमान 6 से 7 डिग्री सेल्सियस रहता है. इलाके में सालभर में 760 मिलिमीटर बारिश होती है.

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कूनो नेशनल पार्क में खाने की कमी नहीं

कूनो नेशनल पार्क (Kuno National Park) में कोई इंसानी बस्ती या गांव नहीं है. न ही खेती-बाड़ी. चीतों के लिए शिकार करने लायक बहुत कुछ है. जैसे- चीतल, सांभर, नीलगाय, जंगली सुअर, चिंकारा, चौसिंघा, ब्लैक बक, ग्रे लंगूर, लाल मुंह वाले बंदर, शाही, भालू, सियार, लकड़बग्घे, ग्रे भेड़िये, गोल्डेन सियार, बिल्लियां, मंगूज जैसे कई जीव. यानी चीता जमीन पर हो या पहाड़ी पर. घास में हो या फिर पेड़ पर, उसे खाने की कमी किसी भी हालत में नहीं होगी. नेशनल पार्क में सबसे ज्यादा चीतल मिलते हैं, जिनका शिकार करना चीतों को पसंद आएगा. नेशनल पार्क के अंदर चीतल की आबादी 38.38 से लेकर 51.58 प्रति वर्ग किलोमीटर है. यानी चीतों के लिए खाने की कोई कमी नहीं है.

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