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अमित शाह ने बताया नक्सलवाद के खात्मे का मास्टरप्लान, अर्बन नक्सल को लेकर कही ये बात

केंद्रीय गृह मंत्री ने कहा कि हमारी पहली कोशिश नक्सलियों को हिंसा छोड़कर मुख्यधारा में शामिल होने के लिए राजी करना है. उनका खात्मा ऐसा विकल्प है जिसका इस्तेमाल हम सिर्फ बेकसूर आदिवासी लोगों के जीवन को बंदूकधारी अपराधियों से बचाने के लिए करते हैं जो सरेंडर करने के बजाय लोगों के लिए गंभीर खतरा बने हुए हैं.

नक्सलवाद के खात्मे के लिए सरकार का प्लान नक्सलवाद के खात्मे के लिए सरकार का प्लान
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 20 मार्च 2025,
  • अपडेटेड 5:07 PM IST

अमित शाह ने जब साल 2019 में केंद्रीय गृह मंत्री का पदभार संभाला था, तब वामपंथी उग्रवाद को जम्मू-कश्मीर से भी बड़ी चुनौती माना जा रहा था. लेकिन अमित शाह ने इस चुनौती को स्वीकार किया और उनका दावा है कि मार्च 2026 तक देश नक्सली खतरे से पूरी तरह मुक्त हो जाएगा. इंडिया टुडे के ग्रुप एडिटोरियल डायरेक्टर राज चेंगप्पा और सीनियर एसोसिएट एडिटर राहुल नरोन्हा ने अमित शाह से नक्सली खतरे से निपटने की मोदी सरकार की रणनीति के बारे में विस्तार से बातचीत की है.

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कैसे तय की मार्च 2026 की डेडलाइन?

पिछले पांच दशक से देश के लिए समस्या बन चुके नक्सलियों के खात्मे के लिए इतनी सख्त डेडलाइन रखने का आत्मविश्वास उनमें कैसे आया? इस सवाल पर अमित शाह ने कहा कि महज आत्मविश्वास से नक्सलवाद का खात्मा होने से रहा. मैंने पहले से ही कर लिए काम के बूते पर यह बयान दिया है. रणनीति के बारे में बात करते हुए अमित शाह ने कहा कि 2019 केंद्रीय गृह मंत्री की कुर्सी संभालने के बाद मुझे बताया गया कि नक्सल या वामपंथी उग्रवाद का मुद्दा कश्मीर से भी बड़ा है. एक मायने में विकास की कमी से उपजा असंतोष नक्सलवाद की वजह माना जा सकता है. आजादी के बाद से 1990 के दशक तक हमारे देश में संसाधनों की कमी थी. व्यवस्थित विकास संभव न था, लिहाजा ये इलाके प्रगति में पिछड़े रहे. वामपंथी विचारधारा ने लोगों के मन में यह बात बैठाने के लिहाज से इस इलाके को खासी उपजाऊ जमीन पाया कि हिंसा से विकास का रास्ता खुलता है.

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उन्होंने कहा कि नक्सलियों के खिलाफ मोदी सरकार के मास्टरप्लान का पहला पहलू बंदूक उठाने वालों और हिंसा के लिए जिम्मेदार लोगों के खिलाफ सख्त और निर्मम कार्रवाई करना था. हमने इलाके में तैनात राज्य पुलिस बलों और केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों (सीएपीएफ) के प्रशिक्षण, एकीकरण और क्षमता निर्माण के जरिए अधिकतम बल का इस्तेमाल किया. हमने दबदबे के लिए अधिक रेंज वाली आधुनिक असाल्ट राइफलों और इसी तरह के दूसरे हथियारों का इस्तेमाल किया.

7500 नक्सलियों ने किया सरेंडर

अमित शाह ने कहा कि पिछले 10 साल में लगभग 7,500 नक्सलियों ने सरेंडर किया है, जिसका मुख्य कारण हमारे ऑपरेशन में इजाफा है. बदले में वे भविष्य में होने वाले सरेंडर में भूमिका निभाते हैं. इनमें आत्मसमर्पण करने वाले कई नक्सली जिला रिजर्व गार्ड समेत राज्य पुलिस में आ गए हैं. वे इलाके और नक्सली रणनीति को अच्छी तरह जानते हैं और हमारे लिए ताकत बन गए हैं. सरेंडर करने वाले नक्सलियों का उपयोग बड़ी योजना में जनशक्ति के अनोखे इस्तेमाल की मिसाल है और इसका एक मॉडल के रूप में विश्लेषण और अध्ययन किया जाना चाहिए.

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उन्होंने कहा कि नक्सलियों के पोलित ब्यूरो और केंद्रीय समिति के सदस्यों के प्रति हमारा नजरिया उनका पता लगाना, उन्हें निशाने पर लेना और खत्म करना है. हमने पिछले पांच साल में 15 बड़े नक्सली नेताओं को खत्म किया है. उनके अलावा, पिछले एक साल में ही हमने एक जोनल कमेटी सदस्य, पांच सब जोनल कमेटी सदस्य, दो राज्य कमेटी सदस्य, 31 संभागीय कमेटी सदस्य और 59 एरिया कमेटी सदस्यों को मार गिराया है.

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नक्सली भर्ती पर कसी नकेल

केंद्रीय गृह मंत्री ने कहा कि हमारी पहली कोशिश नक्सलियों को हिंसा छोड़कर मुख्यधारा में शामिल होने के लिए राजी करना है. उनका खात्मा ऐसा विकल्प है जिसका इस्तेमाल हम सिर्फ बेकसूर आदिवासी लोगों के जीवन को बंदूकधारी अपराधियों से बचाने के लिए करते हैं जो सरेंडर करने के बजाय लोगों के लिए गंभीर खतरा बने हुए हैं. उन्होंने बताया कि मोदी सरकार की रणनीति नक्सलियों को पैसे और हथियारों की सप्लाई पर अंकुश लगाना था. तेंदू पत्ता तोड़ने वालों से अवैध वसूली और सड़क ठेकेदारों से जबरन उगाही उनके पैसे का मुख्य सोर्स था. हमने जो कुछ किया, उनमें एक ऑनलाइन भुगतान प्रणाली शुरू करना था, जिससे नक्सलियों के पास जाने वाले धन पर लगाम लगी.

अर्बन नक्सल और नक्सली समर्थकों से जुड़े एक सवाल पर अमित शाह ने कहा कि ऐसे लोगों की पहचान करना बहुत मुश्किल है. पहचान तभी होती है जब एजेंसियों के हाथ में डिवाइस लग जाती है, जैसा कि महाराष्ट्र में हुआ. सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि कोई भी व्यक्ति दूर से नक्सलियों की भर्ती नहीं कर सकता और इसके लिए उसे गांवों में जाना होगा. हमने आश्वस्त किया है कि वे रंगरूटों की भर्ती के लिए गांवों में न जा सकें.

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ऐसे इलाकों में विकास को आगे बढ़ाया

नक्सलवाद का प्रसार इन राज्यों के सबसे पिछड़े इलाकों में विकास की कमी के कारण हुआ. मोदी सरकार ने इसे बदलने के लिए क्या किया है? इसके जवाब में अमित शाह ने कहा कि यह हमारी कार्ययोजना की रणनीति है. जैसे ही कोई इलाका नक्सलवादियों से मुक्त हुआ, हमने विकास योजनाओं को आगे बढ़ाया. हमारा मकसद यह तय करना था कि लोगों के पास नक्सलवाद की ओर लौटने का कोई कारण न हो. जब लोगों को इन योजनाओं का लाभ मिलना शुरू हो जाता है, तो वे अपने गांवों में भी नक्सलियों से मुंह मोड़ लेते हैं. हमने जो काम किए, उनमें इन दूरदराज के इलाकों में लंबे समय से जरूरी बुनियादी ढांचे का विकास करना भी शामिल है.

उन्होंने कहा कि मोदी सरकार के पिछले 10 साल में हमने 11,503 किलोमीटर से ज्यादा सड़कें बनाई हैं. अब हमने आने वाले वर्षों में 17,589 किलोमीटर अतिरिक्त सड़कें बनाने के लिए 20,815 करोड़ रुपये मंजूर किए हैं. हमने सेलुलर संचार सुविधाओं के लिए मोबाइल टावर लगाने का काम भी शुरू कर दिया है और अब तक 4,080 करोड़ रुपये की लागत से करीब 2,343 टावर लगाए जा चुके हैं.

राज्यों के साथ कैसे बैठाया तालमेल?

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अमित शाह ने कहा कि मोदी सरकार मानती है कि गरीबी के दुष्चक्र को तोड़ने के लिए युवाओं को हुनरमंद बनाना सबसे अच्छा तरीका है. इसलिए हमने पिछले सात दशकों के नुकसान की भरपाई के लिए नक्सल प्रभावित इलाकों में युवाओं को हुनरमंद बनाने पर खास जोर दिया है. ऐसे 48 जिलों में 48 औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थानों  (आइटीआई) को 495 करोड़ रुपये आवंटित किए गए, 61 कौशल विकास केंद्रों की मंजूरी दी गई है.

नक्सल प्रभावित राज्यों के साथ केंद्र ने कैसे तालमेल बनाया? इसके जवाब में अमित शाह ने कहा कि मोदी सरकार ने समन्वय की तीन स्तरीय प्रणाली अपनाई. केंद्र और राज्यों के मंत्री स्तर पर तालमेल था, फिर राज्य और जिला स्तरों पर तालमेल था और तीसरा पहलू केंद्रीय एजेंसियों और राज्य स्तर की लॉ एंड ऑर्डर एजेंसियों के बीच तालमेल था. 2019 में जब मैंने काम संभाला, मैंने वामपंथी उग्रवाद प्रभावित राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ 11 समीक्षा बैठकें कीं, जिनमें केंद्रीय मंत्री भी शामिल थे और एजेंसियों के साथ 83 रणनीतिक बैठकें कीं.

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उन्होंने कहा कि इन बैठकों में हमने रणनीतियां तैयार कीं और तुरंत समाधान दिए, जिनमें केंद्रीय सुरक्षा बलों की तैनाती करना और हथियार सरीखे जरूरी संसाधन देना शामिल था. हमें विपक्ष शासित राज्यों से पूरा सहयोग मिला, सिवा छत्तीसगढ़ के जब वहां कांग्रेस का शासन था, जहां हमें ढेरों परेशानियां थीं. उन्होंने कहा कि वे सुरक्षाबलों के खिलाफ नहीं थे लेकिन बहुत उत्साही भी नहीं थे. राज्य की पुलिस, वन और आदिवासी विभागों समेत राज्य प्रशासन के जैसे पूरे समर्थन की हमें जरूरत थी, वह नहीं मिल रहा था. छत्तीसगढ़ में बीजेपी के सत्ता में आने के बाद पिछले 15 महीनों में हमने अभियान में नई जान फूंकी. जनवरी 2024 से मैंने नए मुख्यमंत्री, उनके संबंधित कैबिनेट मंत्रियों और (अभियान में) शामिल केंद्र सरकार के शीर्ष विभागों के साथ विस्तृत समीक्षा बैठकें कीं और एक्शन प्लान तैयार किया.

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नक्सलवाद के खात्मे को लेकर दी गई डेडलाइन पर अमित शाह ने कहा कि अगर किसी इलाके के 98 फीसद पुलिस थानों में पूरे साल नक्सलवाद की एक भी घटना नहीं होती, तो उस इलाके को नक्सल मुक्त घोषित किया जाएगा. उन्होंने कहा कि विश्वास होने भर से नक्सली खत्म नहीं होते. काफी काम कर लिया. उस किए हुए काम के आधार पर यह बयान दिया है.

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