
CAA लागू होने के बाद भारत के अलग-अलग कोनों में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गया है. मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में CAA के खिलाफ याचिका दायर करने के बाद ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन ने गुवाहाटी में मशाल मार्च निकाला. एएएसयू के सलाहकार समुज्जल भट्टाचार्य ने आजतक से बात करते हुए कहा, ''सीएए असंवैधानिक, उत्तर-पूर्व विरोधी, असम विरोधी अधिनियम है.''
उन्होंने कहा कि असम में पांच साल तक चले हिंसक विरोध के बाद 1985 में कांग्रेस की राजीव गांधी सरकार में असम समझौते पर हस्ताक्षर किये गये थे. CAA का विरोध कर रहे अन्य 30 संगठनों के मुताबिक यह असम समझौते का उल्लंघन है. हमने सीएए को चुनौती देते हुए अपना पहला पक्ष सुप्रीम कोर्ट में दाखिल किया. हमें कानून पर पूरा भरोसा है और हम शांतिपूर्वक विरोध करेंगे. असम प्रवासियों के लिए डंपिंग ग्राउंड नहीं है. हम देश के अन्य हिस्सों की तरह अच्छे नागरिक की तरह रहना चाहते हैं."
वहीं AASU के अध्यक्ष उत्पल सरमा ने भी केंद्र सरकार पर हमला बोला. उन्होंने कहा, "हमने हमेशा सीएए के खिलाफ मोर्चा संभाला है. शीर्ष अदालत में हमने सीएए पर रोक लगाने की मांग की. हम पहले ही असम में प्रवासियों का अवैध बोझ उठा चुके हैं. असम समझौते के अनुसार निर्वासन वर्ष 1971 निर्धारित किया गया था और अब CAA के अनुसार 2014 है. हम सीएए के खिलाफ अपना विरोध जारी रखेंगे, जब तक यह खत्म नहीं हो जाता, हमारा संघर्ष जारी रहेगा. हम अब परवासियो अतिरिक्त बोझ नहीं उठा सकते."
सीएए के कार्यान्वयन पर सीएम हेमंत बिस्वा शर्मा के बयान के बारे में पूछे जाने पर कि अगर किसी को एनआरसी के बिना भारतीय नागरिक दिया गया तो मैं इस्तीफा दे दूंगा, एएएसयू नेता ने कहा, "सीएम हेमंत बिस्वा सरमा प्रवासियों को स्वीकार करने के लिए तैयार हैं, लेकिन एएएसयू तैयार नहीं है. यह बुनियादी अंतर है सीएम और AASU के बीच. यह कानून जनसांख्यिकी को बदल देगा और असम संस्कृति और भाषा को प्रभावित करेगा.