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पंजाब में सुखबीर सिंह बादल की अगुवाई वाली पार्टी शिरोरमणि अकाली दल में फूट के आसार हैं. 2022 के विधानसभा और 2024 के आम चुनाव में पार्टी के खराब प्रदर्शन के बाद पार्टी के नेता चीफ सुखबीर बादल से अध्यक्ष का पद छोड़ने की अपील कर रहे हैं. पार्टी के 60 नेताओं ने मंगलवार को एक मीटिंग की थी और बाद में प्रेस कॉन्फ्रेंस भी किया था, जहां उन्होंने अपनी राय खुलकर मीडिया के सामने रखी थी.
प्रकाश सिंह बादल के करीबी समेत पार्टी के दर्जनों नेताओं ने सुखबीर सिंह बादल के नेतृत्व पर सवाल खड़े किए थे, और उन्हें पद से हटाकर पार्टी की कमान संभावित नए अध्यक्ष को सौंपने की बात कही थी.
प्रकाश सिंह बादल के करीबी भी अध्यक्ष बदलने के पक्ष में
प्रेस कॉन्फ्रेंस में असंतुष्ट नेताओं में शामिल जागीर कौर ने कहा, "इस बारे में चर्चा हुई कि हमने पूर्व में क्या खोया और क्या पाया. पार्टी कार्यकर्ता और शुभचिंतक इस बात को लेकर चिंतित हैं कि हम जिस हालात में हैं, उससे कैसे उबरें. पार्टी अध्यक्ष हमारी बात नहीं सुनते और कमियों को दूर करने की कोशिश नहीं करते."
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हालांकि, बात सिर्फ जागीर कौर की ही नहीं है, बल्कि प्रकाश सिंह बादल के करीबियों में शामिल रहे सुखदेव सिंह ढींडसा, प्रेम सिंह चंडूमाजरा और सिकंदर सिंह मलूका जैसे नेताओं ने भी सुखबीर बादल से पार्टी की अध्यक्षता छोड़ने की अपील की.
असंतुष्ट नेता कमेटी बनाकर कर सकते हैं नए अध्यक्ष का चुनाव
अकाली दल के नाराज नेताओं ने अध्यक्ष सुखबीर बादल को पद से हटाने की अपील करते हुए कहा कि उनकी भावनाओं का सम्मान किया जाना चाहिए. साथ ही यह भी ऐलान किया कि वे एक कमेटी का गठन करेंगे जो नए अध्यक्ष का चुनाव करेगी. पार्टी के एक वरिष्ठ नेता प्रेम सिंह चंडूमाजरा ने जालंधर के प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि वे 1 जुलाई को अकाल तख्त साहिब सेक्रिटेरियट में मुलाकात करेंगे और फिर पार्टी की साख को बचाने के लिए 'शिरोमणि अकाली दल बचाओ अभियान' लॉन्च करेंगे.
सुखबीर सिंह बादल को अकाली दल के अध्यक्ष पद से हटाने की मांग नई नहीं है. यह मांग सबसे पहले 2022 में उठी थी. तब इकबाल सिंह झूंडा की अगुवाई वाली 13 सदस्यीय झूंडा कमेटी ने अध्यक्ष बदलने का सुझाव दिया था. साथ ही पार्टी के अध्यक्ष पद के लिए दो साल की समयसीमा तय करने का सुझाव दिया था.
अकाली दल के विभाजन का इतिहास
अकाली दल में विभाजन की मांग ऐसा नहीं है कि पहली बार उठा है. पार्टी की स्थापना 1920 में हुई थी और तबसे पार्टी के विभाजन और विलय का एक लंबा इतिहास है. 1999 में गुरु चरण सिंह तोहरा ने अकाली दल से सस्पेंड कर दिए जाने के बाद सर्व हिंद अकाली दल का गठन कर लिया था. हालांकि, बाद में 2003 में इस पार्टी का फिर से अकाली दल में विलय हो गया.
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2004 में सुरजीत कौर बरनाला ने शिरोमणि अकाल दल (लोंगोवल) बना ली थी. प्रेम सिंह चंडूमाजरा भी टिकट नहीं मिलने से नाराज होकर इस पार्टी में शामिल हो गए थे. बाद में 2007 में वह अकाली दल में वापस आ गए और फिर SAD (लोंगोवल) का अकाली दल में विलय हो गया. हालांकि, बाद में विभाजन करने वाले ग्रुप ने अकाली दल से किनारा कर लिया था और अपनी पार्टी का कांग्रेस में विलय कर लिया था.
रणजीत सिंह ब्रह्मपुरा, रतन सिंह अजनाला और सेवा सिंह सेखवां ने दिसंबर 2018 में शिरोमणि अकाली दल (टकसाली) का गठन कर लिया था, जब पार्टी ने नवंबर 2018 में उन्हें पार्टी से निकाल दिया था. बाद में प्रकाश सिंह बादल के एक अन्य करीबी सुखदेव सिंह ढींडसा और उनके बेटे परमिंदर सिंह ढींडसा ने 2020 में शिरोमणि अकाली दल (डेमोक्रेटिक) का गठन कर लिया था. ढींडसा बादल परिवार से नाराज थे और उनपर पार्टी को नष्ट करने का आरोप लगाया था.
असंतुष्टों पर की जाएगी कड़ी कार्रवाई
सुखबीर सिंह बादल कैम्प के नेताओं का कहना है कि वह अब भी पार्टी में अपनी मजबूत स्थित रखते हैं और उनके समर्थन का ऐलान भी किया है. दलजीत सिंह चीमा समेत पार्टी के कुछ नेताओं ने पार्टी अध्यक्ष की तरफ से असंतुष्टों पर कड़ी कार्रवाई के संकेत भी दिए हैं.
सुखबीर सिंह बादल की सांसद पत्नी हरसिमरत कौर बादल ने अपने एक बयान में आरोप लगाया कि पार्टी के नाराज नेता अध्यक्ष बदलने की मांग इसलिए कर रहे हैं, क्योंकि वे बीजेपी को मौका देना चाहते हैं. उन्होंने (बीजेपी ने) महाराष्ट्र में (जिस तरह से पार्टी को तोड़ा) वो ही काम पंजाब में करना चाहते हैं. हरसिमरत कौर बादल ने पार्टी के 117 क्षेत्रीय इकाइयों में 112 के सुखबीर बादल के साथ रहने का दावा किया है. उन्होंने सिंकदर सिंह मलूका और जागीर कौर जैसे नेताओं पर एक तरह से बीजेपी से सांठगांठ करने के आरोप लगाए हैं.