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मोदी सरकार की 2015 में कतर से हुई वो डील, जिसके तहत भारत लाए जा सकते हैं 8 नेवी वेटरन

कतर में गिरफ्तार किए गए भारतीय नौसेना के पूर्व अधिकारियों की फांसी की सजा को बदल दिया गया है. अब उन्हें वहां फांसी नहीं होगी. ऐसे में अब भारत और कतर के बीच हुई उस संधि के बारे में चर्चा शुरू हो गई है, जो दोनों देशों के बीच 2015 में साइन की गई थी.

aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 29 दिसंबर 2023,
  • अपडेटेड 12:57 PM IST

कतर में अरेस्ट हुए भारतीय नौसेना के पूर्व अधिकारियों फांसी की सजा पर रोक लग गई है. लेकिन अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या इन पूर्व भारतीय नेवी अफसरों की किसी तरह से भारत वापसी हो सकती है. इस बात पर मुहर फिलहाल मुश्किल है, लेकिन भारत की तरफ से इसकी कोशिशें की जा सकती हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि साल 2015 में भारत और कतर के बीच एक करार पर हस्ताक्षर हो चुके हैं, जिसके तहत कतर की जेल में बंद भारतीय कैदियों को भारत और भारत की जेलों में बंद कतर के कैदियों को कतर भेजे जाने की मांग की जा सकती है. आइए आपको बताते हैं आखिर यह कानून क्या है और कब भारत और कतर के बीच यह समझौता हुआ था.

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पहले फांसी फिर बदली सजा

कतर में गिरफ्तार किए गए भारतीय नौसेना के पूर्व अधिकारियों को पहले वहां फांसी की सजा दी गई थी. तब मुश्किल यह थी कि अगर कतर की कोर्ट अपने इस फैसले पर कायम रहती तो पूर्व अफसरों को भारत वापस ला पाना काफी मुश्किल हो जाता. हालांकि, अब कतर की अदालत ने अपने फैसले को बदलते हुए फांसी की सजा पर रोक लगा दी है. लेकिन सभी पूर्व नेवी अफसर कतर की जेल में ही बंद हैं. 
 
समझौते का क्या मिलेगा लाभ

दरअसल, भारत में नरेंद्र मोदी सरकार बनने के बाद 2 दिसंबर 2014 को मोदी कैबिनेट की बैठक हुई. इस बैठक में कतर के साथ कैदियों की अदला-बदली संधि (Treaty on transfer of Sentenced Persons) पर मुहर लगाई गई. संधि पर मुहर लगने के बाद अगले ही साल 24 मार्च 2015 को कतर के अमीर शेख तमीम बिन हमद अल थानी भारत के दौरे पर आए. इस दौरान भारत और कतर के बीच कैदियों के प्रत्यर्पण को लेकर करार किया गया. इस संधि के मुताबिक अगर कतर की जेल में कोई भारतीय कैदी बंद है तो भारत उसे बाकी की सजा भुगतने के लिए भारत भेजने की मांग कर सकता है. ठीक ऐसा ही भारत को भी करना होगा. जैसे अगर कतर का कोई कैदी भारत में बंद है तो कतर उसे भेजने की मांग कर सकता है.

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तस्वीर मार्च 2015 की है, जब कतर के अमीर शेख तमीम बिन हमद अल थानी भारत के दौरे पर आए थे.

भारत की किन देशों के साथ है ये संधि?

भारत सरकार की अब तक कई मुल्कों के साथ इस तरह का संधि समझौता कर चुकी हैं. इन देशों में ब्रिटेन, मॉरीशस, बुल्गारिया, ब्राजील, कंबोडिया, मिस्र, फ्रांस, बांग्लादेश, दक्षिण कोरिया, सऊदी अरब ईरान, कुवैत, श्रीलंका, यूएई, मालदीव, थाईलैंड, तुर्की, इटली, बोस्निया और हर्जेगोविना, इजरायल, रूस, वियतनाम और ऑस्ट्रेलिया है. इसके साथ ही कनाडा, हॉन्गकॉन्ग, नाइजीरिया और स्पेन के साथ इस संधइ को लेकर बातचीत पूरी हो गई है.

क्या है पूरा मामला?

पिछले साल 25 अक्टूबर को मीतू भार्गव नाम की महिला ने ट्वीट कर बताया था कि भारतीय नौसेना के आठ पूर्व अफसर 57 दिन से कतर की राजधानी दोहा में गैरकानूनी तरीके से हिरासत में हैं. मीतू भार्गव कमांडर पूर्णेंदु तिवारी की बहन हैं. इन अफसरों पर कथित तौर पर इजरायल के लिए जासूसी करने का आरोप है. कतर की न्यूज वेबसाइट अल-जजीरा के रिपोर्ट के मुताबिक इन अफसरों पर कतर के सबमरीन प्रोजेक्ट से जुड़ी जानकारियां इजरायल को देने का आरोप है. नौसेना से रिटायर्ड ये सभी अफसर दोहा स्थित अल-दहरा कंपनी में काम करते थे. ये कंपनी टेक्नोलॉजी और कंसल्टेसी सर्विस प्रोवाइड करती थी. साथ ही कतर की नौसेना को ट्रेनिंग और सामान भी मुहैया कराती थी. इस कंपनी को ओमान की वायुसेना से रिटायर्ड स्क्वाड्रन लीडर खमीस अल आजमी चलाते थे. पिछले साल उन्हें भी इन भारतीयों के साथ गिरफ्तार कर लिया गया था. हालांकि, नवंबर में उन्हें रिहा कर दिया गया था.

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कौन हैं ये भारतीय?

नेवी के इन आठ पूर्व अफसरों के नाम कैप्टन सौरभ वशिष्ठ, कमांडर पूर्णेंदू तिवारी, कैप्टन बीरेंद्र कुमार वर्मा, कमांडर सुगुनाकर पकाला, कमांडर संजीव गुप्ता, कमांडर अमित नागपाल और राजेश हैं. इन सभी पूर्व अफसरों ने भारतीय नौसेना में 20 साल तक सेवा दी थी. नेवी में रहते हुए उनका कार्यकाल बेदाग रहा है और अहम पदों पर रहे हैं.

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