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अमेरिकी प्रीडेटर ड्रोन की कीमतों पर क्यों उठ रहे सवाल, पढ़ें- कांग्रेस के आरोप और सरकार-नेवी का जवाब

भारत और अमेरिका के बीच 31 MQ-9 Predator ड्रोन खरीदने को लेकर डील हुई है. कांग्रेस ने इस डील में भ्रष्टाचार के आरोप लगाए हैं. कांग्रेस का आरोप है कि मोदी सरकार चार गुना ज्यादा कीमत पर ड्रोन खरीदने जा रही है. इसी तरह के आरोप टीेएमसी ने लगाए हैं. हालांकि, सरकार का कहना है कि अभी इन ड्रोन्स की कीमत तय नहीं हुई है.

अमेरिका से भारत खरीद रहा MQ-9 Predator ड्रोन अमेरिका से भारत खरीद रहा MQ-9 Predator ड्रोन
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 29 जून 2023,
  • अपडेटेड 1:38 PM IST

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका यात्रा के दौरान भारत और US के बीच दुनिया के सबसे खतरनाक MQ-9 Predator ड्रोन  को खरीदने की डील हुई है. कांग्रेस ने इस डील पर सवाल उठाते हुए भ्रष्टाचार का आरोप लगाया है. कांग्रेस ने दावा किया है कि भारत इन ड्रोन्स को चार गुना ज्यादा कीमत (880 करोड़ प्रति ड्रोन) में खरीद रहा है. हालांकि, कांग्रेस के आरोपों पर भारत सरकार और नौसेना प्रमुख एडमिरल आर हरि कुमार का जवाब भी आया है. आइए जानते हैं कि आखिर ये पूरा मामला क्या है?

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भारत और अमेरिका के बीच क्या हुई डील?

- PM मोदी की अमेरिका में स्टेट विजिट के दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन और PM मोदी की तरफ से एक संयुक्त बयान जारी कर ड्रोन डील के बारे में बताया गया था. साझा बयान में कहा गया था कि ड्रोन भारत में असेंबल किए जाएंगे और इन्हें बनाने वाली जनरल एटॉमिक्स, भारत में एक MRO (मेंटेनेंस, रिपेयर एंड ऑपरेशन्स) सेंटर स्थापित करेगी. हालांकि, इस बयान में ड्रोन की संख्या और मूल्य के बारे में कुछ नहीं बताया गया.

- पीएम मोदी के इस दौरे से एक हफ्ते पहले रक्षामंत्री राजनाथ सिंह की अध्यक्षता वाली रक्षा खरीद समिति (DAC) 31 MQ-9B ड्रोन्स की खरीद के लिए एक्सेप्टेंस ऑफ नेसेसिटी (AoN) जारी की थी. तब रक्षा मंत्रालय की ओर से कहा गया था कि भारतीय सेनाओं को इन ड्रोन्स की जरूरत है. इसलिए इन्हें खरीदा जा रहा है. 31 में से 15 ड्रोन सी गार्डियन होने वाले थे. यानी ये नौसेना को मिलेंगे. जबकि बाकी 16 ड्रोन सेना और वायुसेना को दिए जाएंगे.  

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कितने का खरीदा जा रहा ड्रोन? 

- PIB ने हाल ही में प्रेस रिलीज जारी की है, इसमें मुताबिक, 31 ड्रोन्स के सौदे के लिए अमेरिकी सरकार द्वारा प्रदान की गई 3,072 मिलियन अमेरिकी डॉलर यानी करीब 25 हजार 203 करोड़ रुपए की अनुमानित लागत रखी गई. इस हिसाब से एक ड्रोन की कीमत करीब 813 करोड़ रुपए बैठती है. 

कांग्रेस ने क्या आरोप लगाए?

कांग्रेस के प्रवक्ता पवन खेड़ा ने इस डील के सामने आने पर कहा, जो राफेल डील में हुआ. वह अब प्रीडेटर ड्रोन की खरीद में दोहराया जा रहा है. जिस ड्रोन को बाकी देश चार गुना कम कीमत में खरीदते हैं. उसी ड्रोन को हम 880 करोड़ रुपये प्रति ड्रोन खरीद रहे हैं. 25 हजार करोड़ रुपये में हम 31 ड्रोन खरीद रहे हैं.

- पवन खेड़ा ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि हम 25 हजार करोड़ रुपये में 31 ड्रोन खरीद रहे हैं. हम उन्हीं ड्रोन को चार गुना अधिक कीमत पर खरीद रहे हैं. इस सुरक्षा को लेकर कैबिनेट समिति की कोई बैठक नहीं हुई. पहले हमने देखा कि किस तरह पीएम मोदी के दोस्त किस तरह देश का पैसा लूटकर फरार हो गए. अब वह खुद भारत का पैसा बाहर भेज रहे हैं. एक पिक्चर बनी थी, हम आपके हैं कौन, यह नई पिक्चर बन रही है, हम आपके हैं ड्रोन. हमारी वायुसेना ने 18 ड्रोन की मांग की थी. हम उन्हें 31 क्यों दे रहे हैं. क्यों ज्यादा पैसे दे रहे हैं. हम चाहते हैं कि इस पूरे मामले में पारदर्शिता लाई जाए. यह राफेल की तरह बड़ा घोटाला साबित होता जा रहा है.

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टीएमसी ने भी उठाए सवाल

तृणमूल कांग्रेस (TMC) नेता साकेत गोखले ने भी ड्रोन की कीमतों पर सवाल उठाए. उन्होंने ट्वीट कर कहा, मोदी सरकार ने 3.1 बिलियन डॉलर से ज्यादा में 31, प्रिडेटर ड्रोन की खरीद के समझौते पर साइन किए हैं. यानी प्रति ड्रोन 110 मिलियन डॉलर. ड्रोन की असली कीमत से इस आंकड़े की तुलना करें तो अमेरिका प्राइवेट कंपनियों से 56.5 मिलियन डॉलर प्रति ड्रोन के हिसाब से खरीद करता है.

 - उन्होंने लिखा, साल 2016 में UK ने भी जनरल एटॉमिक्स से यही ड्रोन खरीदे थे. तब UK ने 16 ड्रोन, 200 मिलियन डॉलर में खरीदे थे. जो उसे 2024 तक मिल जाएंगे. इस हिसाब से एक ड्रोन करीब 12.5 मिलियन डॉलर का है. 

- साकेत गोखले ने कहा, ऑस्ट्रेलिया ने भी 130 मिलियन डॉलर प्रति ड्रोन के हिसाब से 12 ड्रोन का ऑर्डर दिया था. लेकिन इन ड्रोन के साथ कई और दूसरे सिस्टम भी थे, जो भारत वाले 110 मिलियन डॉलर के ड्रोन के साथ नहीं आएंगे. और फिर ऑस्ट्रेलिया ने ये डील महंगी होने के चलते कैंसिल भी कर दी. 

- साकेत ने कहा,  ''राफेल डील की ही तरह, ऐसा लगता है कि मोदी सरकार फिर से 'सुपर ओवरप्राइज्ड' कॉस्ट (बहुत ज्यादा कीमत) पर अमेरिकी ड्रोन खरीद रही है.'' साकेत उन दावों को भी खारिज कर दिया, जिनमें कहा गया है कि मोदी सरकार ऊंची कीमतों पर सौदा इसलिए कर रही है क्योंकि डील में ट्रांसफर ऑफ टेक्नोलॉजी भी शामिल है. साकेत ने कहा, ''साल 2017 में सरकार ने संसद में बताया था कि ड्रोन, Buy (Global) केटेगरी के तहत खरीदे जा रहे हैं और इनमें तकनीक का ट्रांसफर नहीं किया जा रहा है.''  
- दरअसल, ट्रांसफर ऑफ टेक्नोलॉजी के तहत हथियारों की बिक्री के साथ-साथ उसकी तकनीक भी दूसरे देशों से साझा की जाती है. 

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सरकार ने आरोपों पर क्या जवाब दिया? 

साकेत के आरोपों को PIB फैक्ट चेक ने भ्रामक बताया. इसी बीच रक्षा मंत्रालय ने भी एक प्रेस रिलीज कर विपक्ष के आरोपों का जवाब दिया. रक्षा मंत्रालय की ओर से कहा गया, ''एक्सेपटेंस ऑफ नेसेसिटी' (AoN) में 3 हजार 72 मिलियन डॉलर की कीमत का अनुमान है. अमेरिकी सरकार से पॉलिसी अप्रूवल मिलने के बाद कीमत पर मोलभाव किया जाएगा. रक्षा मंत्रालय, खरीद की लागत की तुलना उन कीमतों से करेगा जिसपर जनरल एटॉमिक्स ने दूसरे देशों को ड्रोन बेचे हैं.''

- ''इसके बाद भारत की तरफ से अमेरिकी सरकार को एक लैटर ऑफ रिक्वेस्ट (LOR) भेजा जाएगा. इसमें ड्रोन, बाकी जरूरी उपकरण और सौदे की शर्तें शामिल होंगी. इसी LOR के आधार पर अमेरिकी सरकार और भारत का रक्षा मंत्रालय लैटर ऑफ ऑफर एंड एक्सेप्टेंस (LOA) तय करेंगे. इस LOA में सौदे की कीमत और बाकी शर्तों पर मोलभाव होगा.'' 

- ''सौदे की कीमत को लेकर सोशल मीडिया पर कुछ अटकलों वाली रिपोर्ट्स सामने आई हैं. ये खरीद प्रक्रिया को पटरी से उतारना चाहते हैं. कीमत और सौदे की बीकी चीजें अभी तय नहीं हुई हैं. बातचीत चल रही है.''

नौसेना चीफ बोले- ड्रोन से रक्षाबलों को मिलेगी मजबूती?

- इंडियन नेवी चीफ एडमिरल आर हरि कुमार ने आजतक से बातचीत में कहा कि प्रीडेटर ड्रोन के इस्तेमाल से रक्षा बलों को मजबूती मिलती है. नौसेना प्रमुख ने चुनौतियों का जिक्र करते हुए कहा कि हिंद महासागर की निगरानी के लिए 2500 से 3000 मील तक उड़ान भरनी होती है. जिससे पता चल सके कि समंदर में कौन किस जगह पर तैनात होकर काम कर रहा है? सामने वाला वहां क्यों है और क्या कर रहा है? इसलिए नेवी ने दो नवंबर 2020 से दो ड्रोन लीज पर ले लिए थे. तब से इनका संचालन किया जा रहा था. नौसेना ने अपने ऑपरेशन के दौरान इन ड्रोन्स से 12 हजार घंटे से ज्यादा समय तक उड़ान भर चुकी है.

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क्यों पड़ी इन ड्रोन्स की जरूरत?

नौसेना प्रमुख ने बताया कि बेहतर निगरानी और समुद्री क्षेत्र में जागरुकता बढ़ाने के लिए यह ड्रोन जरूरी है. इसके जरिए बड़े-बड़े इलाकों को कवर किया जा सकता है. उन्होंने कहा कि जब शांति का समय होता है, तब खुफिया मिशन, निगरानी और टोही मिशन यानी ISR के लिए इन ड्रोन्स का इस्तेमाल किया जाता है. वहीं, जब जंग के हालात होते हैं तब इन ड्रोन्स के जरिए दुश्मन की स्थिति का पता लगाया जा सकता है. इससे किसी को टारगेट करने की भी संभावना रहती है. उन्होंने ड्रोन की स्ट्राइक क्षमता के बारे में भी बताया.

दुनिया के सबसे घातक ड्रोन्स में एक है प्रीडेटर ड्रोन

- एमक्यू 9 प्रीडेटर दुश्मनों पर चुपके से नजर रखता है. जरुरत पड़ते ही मिसाइल से हमला कर देता है. अमेरिका इसे हंटर-किलर यूएवी कहता है. एमक्यू 9 प्रीडेटर लॉन्ग रेंज एंड्योरेंस ड्रोन है. जो हवा से जमीन पर मार करने वाली मिसाइलों से लैस रहता है. इसमें लगे R9X Hellfire Missile से जवाहिरी के अड्डे पर हमला किया गया था.

- एमक्यू 9 प्रीडेटर को रिमोट से उड़ाया जाता है. इसे अमेरिकी कंपनी जनरल एटॉमिक्स (General Atomics) बनाती है. यह किसी भी तरह के मिशन के लिए भेजा जा सकता है. जैसे- सर्विलांस, जासूसी, सूचना जमा करना या फिर दुश्मन के ठिकाने पर चुपके से हमला करना.

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- एमक्यू 9 प्रीडेटर ज्यादा समय तक और ज्यादा ऊंचाई से निगरानी करने में सक्षम हैं. इसकी रेंज 1900 किलोमीटर है. यह अपने साथ 1700 किलोग्राम वजन का हथियार लेकर जा सकता है. इसे चलाने के लिए दो कंप्यूटर ऑपरेटर्स की जरूरत होती हैं, जो ग्राउंड स्टेशन पर बैठकर वीडियो गेम की तरह इसे चलाते हैं. 

- इस ड्रोन की लंबाई 36.1 फीट, विंगस्पैन 65.7 फीट, ऊंचाई 12.6 फीट होती है. ड्रोन का खाली वजन 2223 किलोग्राम होता है. जिसमें 1800 किलोग्राम ईंधन की क्षमता होती है. इसकी गति 482 किलोमीटर प्रतिघंटा होती है. जो 50 हजार फीट की ऊंचाई से दुश्मन को देखकर उसपर मिसाइल से हमला कर सकता है. आमतौर पर 25 हजार फीट की ऊंचाई पर उड़ाया जाता है.

- इस ड्रोन के अंदर खास तरह के राडार लगे हैं. पहला राडार है AN/DAS-1 MTS-B Multi-Spectral Targeting System जो किसी भी तरह के टारगेट को खोजकर उसपर हमला करने में मदद करता है. दूसरा है- AN/APY-8 Lynx II radar, यह निगरानी और जासूसी में मदद करता है. तीसरा है Raytheon SeaVue Marine Search Radar जिसके जरिए यह ड्रोन समुद्र की गहराई में छिपी पनडुब्बियों को भी खोज लेता है.

 

 

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