
पिछले लोकसभा चुनाव में राजनीतिक संग्राम की वजह बनी राफेल विमान की डील का जिन्न एक बार फिर बाहर निकला है. नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) के द्वारा संसद में पेश की गई रिपोर्ट में सौदे की कई कमियों को उजागर किया गया है. जहां पर दावा किया गया है कि दसॉल्ट की ओर से सौदे की कई प्रतिबद्धताओं को पूरा नहीं किया गया है. इनमें टेक्नोलॉजी ट्रांसफर जैसे भी कई बातें अहम हैं. इसी मसले पर एक बार फिर राजनीतिक बवाल शुरू हो गया है.
राफेल डील पर मुख्य रूप से सवाल उठाते हुए कैग रिपोर्ट में कहा गया है कि 60 हजार करोड़ रुपये की इस डील में मुख्य बात टेक्नोलॉजी ट्रांसफर की थी, जो कि 2015 में ही तय हो गया था. लेकिन दसॉल्ट एविएशन और MBDA ने इनमें से किसी भी बात को पूरा नहीं किया है. DRDO को कावेरी जेट इंजन बनाने के लिए इन टेक्नोलॉजी की जरूरत है.
कैग की इस रिपोर्ट में किन मसलों पर सवाल किया गया है, एक नज़र डालिए..
- रिपोर्ट के मुताबिक, विदेशी कंपनियों ने कई समझौतों में ऑफसेट को लेकर बात कही थी. लेकिन अबतक काफी ऐसे मसले हैं जिनमें इनका पालन नहीं हुआ है. 36 MMRCA के लिए जो समझौता हुआ था, उसमें दसॉल्ट ने भारत को 30 फीसदी तक टेक्नोलॉजी साझा करने की बात कही थी. लेकिन 2015 से लेकर अबतक DRDO को ये नहीं मिल पाई.
- राफेल सौदे में ऑफसेट पॉलिसी पर CAG ने सवाल किया. रिपोर्ट में कहा गया कि अब जब टेक्नोलॉजी इतनी लेट हो गई है, तो पॉलिसी में ऐसा कुछ भी नियम नहीं है जिसके मुताबिक विदेशी कंपनी पर कोई जुर्माना लगाया जा सके. वो भी तब जब ऑफसेट का समझौता पूरा करने की समय सीमा काफी पहले खत्म हो गई है.
- 2005 से 2018 तक विदेशी कंपनियों से 66 हजार करोड़ रुपये के कुल 46 ऑफसैट साइन हुए. दिसंबर 2018 तक कंपनियों को 20 हजार करोड़ रुपये का ऑफसैट डिस्चार्ज करना था, लेकिन अबतक सिर्फ 11 हजार करोड़ रुपये का ही हुआ है.
- CAG के मुताबिक, कुछ मामलों में वेंडर के द्वारा इनवॉयस डेट और खरीद की तारीख पूरी तरह अलग है. कई जगह इन डील में वेंडर ने शिपिंग बिल, लैंडिंग बिल, ट्रांजैक्शन का प्रूफ साझा ही नहीं किया है.
- भारत में FDI के क्षेत्र में डिफेंस सेक्टर का नंबर 63 में से 62वां है. 90 फीसदी मामलों में कंपनियों ने ऑफसैट के बदले में सिर्फ सामान खरीदा है, किसी भी केस में टेक्नॉलॉजी ट्रांसफर नहीं किया गया है.
दसॉल्ट को ऑफसेट प्रतिबद्धताओं के तहत भारतीय कंपनियों से 30 हजार करोड़ रुपये के सौदे करने थे. कैग के मुताबिक दसॉल्ट ने ऑफसेट प्रतिबद्धताओं का करीब 30 फीसदी ही अब तक निर्वहन किया है.
कैग की यह रिपोर्ट 23 सितंबर को संसद में पेश हुई है, जिसमें राफेल समेत नेवी के कुछ अन्य सौदों पर सवाल किया गया है. राफेल को लेकर CAG की ये रिपोर्ट तब आई है, जब कुछ दिन पहले ही राफेल को वायुसेना में शामिल किया गया है.
आपको बता दें कि मनमोहन सरकार ने राफेल खरीदने की प्रक्रिया शुरू की थी. लेकिन मोदी सरकार आने के बाद भारत और फ्रांस के बीच गवर्नमेंट टू गवर्नमेंट समझौता हुआ, जिसके तहत भारत को 2021 तक 36 राफेल विमान मिलने हैं. अबतक पांच राफेल विमान भारत पहुंच गए हैं, जबकि पांच और विमान इसी साल भारत पहुंचेंगे.
कैग की इसी रिपोर्ट में भारतीय रेलवे की भी खिंचाई की गई है. रिपोर्ट में कहा है कि पिछले पांच साल में रेलवे बोर्ड के द्वारा नए प्रोजेक्ट पर ध्यान नहीं दिया गया, जिसके कारण ये सभी लेट हो रहे हैं. ना तो जोन ने और ना ही केंद्रीय बोर्ड ने इनकी ओर ध्यान दिया. रेलवे की ओर से ऑपरेटिंग में ज्यादा खर्च किया जा रहा है इसी वजह से प्रोफिट नहीं दिख रहा है.